सोमवार, 29 नवंबर 2021

रम्यान्तरः कमलिनीहरितैः सरोभि- .../ अभिज्ञान शाकुन्तलम् / महाकवि कालिदास

शकुन्तला-आज अपने पति के गृह को जा रही है, आप लोग सब मिलकर इसे 
अनुमति (आज्ञा, स्वीकृति) दीजिए। 

 [आकाशवाणी होती है] 

रम्यान्तरः कमलिनीहरितैः सरोभि-
श्छायाद्रुमैर्नियमितार्कमयूखतापः।
भूयात्कुशेशयरजोमृदुरेणुरस्याः
शान्तानुकूलपवनश्च शिवश्च पन्थाः।।
       -अभिज्ञान शाकुन्तलम् ४.११

''बीच बीच में कमल की लताओं से हरे-भरे सरोवरों से युक्त, मनको हरनेवाला, घनी छाया से युक्त वृक्षों से सूर्य की किरणों के सन्ताप से रहित, कमलों की रज (धूलि ) से मृदुल और शान्त तथा अनुकूल, मन्द-मन्द पवन से युक्त इसका मार्ग कल्याणकारी हो।"

"May her path, pleasant at intervals with lakes that are green with lotus beds, where the heat of the sun's rays is mitigated by shady trees, where the dust is soft as the pollen from lotuses, be cheered by gentle and pleasant breezes and be (altogether) prosperous."

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