शनिवार, 20 नवंबर 2021

चेत रे गुमानी फिर यो जनम ना मिलेगा.../ भजन / सन्त कबीर / गायन : गीता पराग

 https://youtu.be/9H0XU3-gFno 


साखी 

1 -सतयुग त्रेता द्वापुर, यह कलियुग अनुमान। 

 सार शब्द एक साँच है, और झूठ सब ज्ञान ॥

भजन 

चेत रे गुमानी फिर ये जन्म ना मिलेगा ।

माया संग ना चले, काया संग ना चले ॥ टेक ॥ 

दस से सोलह गये खेल में , बीस गये माया कि गेल  में । 

चालीस साल तिरिया की सेज पे , पचपन नाड़ी हिलेगा ॥1 ॥


माया संग ना चले, काया संग ना चले ॥

चेत रे गुमानी फिर ये जन्म ना मिलेगा ।

माया संग ना चले, काया संग ना चले ॥


काली गई सफेदी आई, तन की खाल उखड़ सब जाई। 

बंदर जैसा मुँह हो जाये, डगमग नाड हिलेरे ॥2 ॥


माया संग ना चले, काया संग ना चले ॥

चेत रे गुमानी फिर ये जन्म ना मिलेगा ।

माया संग ना चले, काया संग ना चले ॥


तू केहता है मेरी मेरी, ये माया तेरी ना मेरी ।

धन दौलत थारा यहीं रह जावे, अग्नी के साथ जलेगा ॥3 ॥


माया संग ना चले, काया संग ना चले ॥

चेत रे गुमानी फिर ये जन्म ना मिलेगा ।

माया संग ना चले, काया संग ना चले ॥


भजन करेगा तो सुख पावेगा, धन दौलत थारी काम नी आवेगा ।

धन दौलत थारी यहीं रेह जावे, केहत कबीर विचारी ॥४ ॥


माया संग ना चले, काया संग ना चले ॥

चेत रे गुमानी फिर ये जन्म ना मिलेगा ।

माया संग ना चले, काया संग ना चले ॥

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