शुक्रवार, 23 दिसंबर 2022

सितारों से आगे जहाँ और भी हैं.../ शायर : अल्लामा इक़बाल / गायन : उस्ताद ग़ुलाम अब्बास ख़ान

 https://youtu.be/_xgtezuWl-c


सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं

तही ज़िन्दगी से नहीं ये फ़ज़ायें
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं

कना'अत न कर आलम-ए-रंग-ओ-बू पर
चमन और भी, आशियाँ और भी हैं

अगर खो गया एक नशेमन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुगाँ और भी हैं

तू शाहीं है पर्वाज़ है काम तेरा
तेरे सामने आस्माँ और भी हैं

इसी रोज़-ओ-शब में उलझ कर न रह जा
के तेरे ज़मीन-ओ-मकाँ और भी हैं

गए दिन की तन्हा था मैं अंजुमन में
यहाँ अब मेरे राज़दाँ और भी हैं 


शब्दार्थ 
तही = तनहा/खाली
फ़ज़ायें = माहौल/मौसम
कना'अत = खुश होना/संतुष्ट होना
आलम-ए-रंग-ओ-बू = खुशबु और रंग का जहाँ
नशेमन = घोसला
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुगाँ=रोने या शांत होने की जगह

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