शनिवार, 24 दिसंबर 2022

इन्शां जी उठो अब कूच करो.../ शायर : इब्ने इंशा / गायन : उस्ताद अमानत अली ख़ान

 https://youtu.be/ItnFNSfzfgY 


इंशाजी उठो अब कूच करो,
इस शहर में जी का लगाना क्या
वहशी को सुकूँ से क्या मतलब,
जोगी का नगर में ठिकाना क्या ...

इस दिल के दरीदा दामन में
देखो तो सही, सोचो तो सही
जिस झोली में सौ छेद हुए
उस झोली को फैलाना क्या ...

शब बीती चाँद भी डूब चला
ज़ंजीर पड़ी दरवाज़े पे
क्यों देर गये घर आये हो
सजनी से करोगे बहाना क्या ...

जब शहर के लोग न रस्ता दे
क्यों बन में न जा बिसराम करे
दीवानों की सी न बात करे
तो और करे दीवाना क्या ...

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