रविवार, 11 दिसंबर 2022

कोई दोस्त है न रक़ीब है.../ शायर :राना सहरी / गायन : जगजीत सिंह

https://youtu.be/FyQDsM7D_HU 

कोई दोस्त है न रक़ीब है...

कोई दोस्त है न रक़ीब है
तेरा शहर कितना अजीब है

(रक़ीब = प्रेमिका का दूसरा प्रेमी, प्रेमक्षेत्र का प्रतिद्वंदी)


वो जो इश्क़ था वो जुनून था
ये जो हिज्र है ये नसीब है

(हिज्र = बिछोहजुदाई)

यहाँ किस का चेहरा पढ़ा करूँ
यहाँ कौन इतना क़रीब है

मैं किसे कहूँ मेरे साथ चल
यहाँ सब के सर पे सलीब है

(सलीब = सूली)

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