गुरुवार, 19 दिसंबर 2024

याद.../ शायर : फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ / गायन : मीशा सफ़ी

https://youtu.be/tYB-6i_q4sU  


दश्त-ए-तन्हाई में ऐ जान-ए-जहाँ लर्ज़ां हैं
तेरी आवाज़ के साए तिरे होंटों के सराब
दश्त-ए-तन्हाई में दूरी के ख़स ओ ख़ाक तले
खिल रहे हैं तिरे पहलू के समन और गुलाब

उठ रही है कहीं क़ुर्बत से तिरी साँस की आँच
अपनी ख़ुशबू में सुलगती हुई मद्धम मद्धम
दूर उफ़ुक़ पार चमकती हुई क़तरा क़तरा
गिर रही है तिरी दिलदार नज़र की शबनम

इस क़दर प्यार से ऐ जान-ए-जहाँ रक्खा है
दिल के रुख़्सार पे इस वक़्त तिरी याद ने हात
यूँ गुमाँ होता है गरचे है अभी सुब्ह-ए-फ़िराक़
ढल गया हिज्र का दिन आ भी गई वस्ल की रात

रविवार, 15 दिसंबर 2024

आज्यो म्हारा देस.../ मीराबाई / स्वर : विदुषी अश्विनी भिड़े

https://youtu.be/vpRgMYh6v8A  


बतियाँ दौरावत’ के सभी श्रोताओं का मीराबाई के साथ चल रहे हमारे सफर में सादर स्वागत ।
आज का मीराबाई का पद मेरे दिल के बहुत ही करीब है, क्यूँ कि इसकी स्वररचना मेरी अत्यंत पसंदीदा, गुरुसमान स्व. शोभा गुर्टूजी की है, और इसको मैंने स्वयं शोभाताई से ही सीखा है।

मीराबाई को जब उनके मानसदेव गिरिधर गोपाल मिल जाते हैं, तब उनके पदों में एक समर्पणभाव छलकता है। परंतु जब मीराबाई हरिमिलन से वंचित रहतीं हैं, चाहे यह विरह कुछ क्षणों का ही क्यूं न हो- तब वे जलबिन मछली की तरह तड़पतीरहती हैं। विरह से व्याकुल हो उठतीं हैं। जैसे यह विरह जन्मजन्मांतर का हो ! और कहती है,
लागी सोही जाणे,
कठण लगण दी पीर

आज का मीरा भजन इसी बिरह की अगन, पीडा को चित्रित करता है।
सांवरिया, आज्यो म्हारा देस,
थारी सांवरी सुरतवालो भेस,
आज्यो म्हारा देस ॥

पद की स्वररचना का आधार है राग अहिरभैरवी- या अहिरी तोडी का।
पद के शुरुआत की 'सांवरियां…’ की पुकार उस कान्हा को वहां सुनाई देगी, जहाँ भी वो होगा। इस पुकार में मीरा की सारी तड़प उजागर होती है।

आइए, सुनते हैं, मीराबाई की पुकार - 'साँवरिया, आज्यो म्हारा देस'.

बुधवार, 11 दिसंबर 2024

आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागल हे.../ महाकवि विद्यापति /

https://youtu.be/PCHrnCAQALI

विद्यापति गीत

आजु नाथ एक व्रत महा सुख लागत हे 
तोहे शिव धरु नट वेष कि डमरू बजाबह हे

तोहें जे कहैछ गौरी नाचय कि हम कोना नाचब हे
आहे चारि सोच मोहि होए कोन बिधि बाँचब हे

अमिअ चुबिअ भूमि खसत बघम्बर जागत हे
होएत बघम्बर बाघ बसहा धरि खायत हे

सिरसँ ससरत साँप पुहुमि लोटायत हे
कार्तिक पोसल मजूर सेहो धरि खायत हे

जटासँ छिलकत गंग भूमि भरि पाटत हे
होएत सहस्त्र मुखी धार समेटलो न जाएत हे

मुंडमाल टुटि खसत, मसानी जागत हे
तोहें गौरी जएब पड़ाए नाच के देखत हे

*महाकवि विद्यापति जी की अनुपम रचना*
              *एक रोचक कथा*
एक बार मां पार्वती जी ने भोलेनाथ से कहा की आज आप नट के वेश धर के डमरू बजाइए जिससे मुझे परम सुख की अनुभूति होगी।तो शिव ने कहा की हे गौरी आप जो मुझे नृत्य करने कह रही हैं मुझे चार चिंता हो रही है जिससे किस तरह से बचा जायेगा।

पहली चिंता अमृत के जमीन पर टपकने से बाघंबर जो मैंने पहन रखा है वो जीवित होकर बाघ बन जायेगा और बसहा को खा जायेगा।

दूसरी चिंता सिर पर से सर्प गिर जायेंगे और जमीन पर फैल जायेंगे और कार्तिक ने जो मयूर को पाला है उसे पकड़ के खा लेगा।

तीसरी चिंता मेरे जटा से गंगा छलक जायेगी और सारी जमीन पर फैल जाएगी और जिसके सैकड़ों मुख हो जायेंगे जिसे समेटना मुश्किल हो जायेगा।

चौथी चिंता ये हो रही है की मैं मुंड का माला पहना हूं 
वो टूट कर गिर जाएगा और सारे जग जायेंगे और आप भाग जाएगी डर कर तो मेरा नाच कौन देखेगा।

पर महाकवि विद्यापति कहते हैं की उन्होंने सब बाधाओं को सम्हालते हुए गौरी का मान रखा और अपना नृत्य दिखाया।

सोमवार, 9 दिसंबर 2024

जबसे मोहिं नंदनंदन दृष्टि पड्यो माई.../ मीराबाई / प्रस्तुति : विदुषी अश्विनी भिडे / गायन : शरयू दाते एवं शमिका भिडे

https://youtu.be/cQCqTDA5XM0  



जबसे मोहिं नंदनंदन दृष्टि पड्यो माई
तबसे परलोक लोक कछु ना सुहाई

मोरन की चंद्रकला, सीस मुकुट सोहे
केसरको तिलक भाल, तीन लोक मोहे

कुंडल की अलक झलक कपोलन सुहाई
‘मनोमीन सरवर तजि मकर मिलन आई...!’

नमस्ते, 'बतियां दौरावत’ के सभी सुधी श्रोताओं को आज ले चलती हूँ नंदनंदन के दर्शन कराने। भक्त सिरोमणि मीराबाई की नज़रोंसे, उन्हें जैसा दिखाई दिये, वैसे।
यूँ तो श्रीकृष्ण परमात्मा की छबि का वर्णन करनेवाले अनगिनत पद मिलते हैं, और मीराबाई भी इस छबि से मोहित रहीं। उन्होंने भी इस छबि का वर्णन करने हेतु कई पद लिखें ।आज जो पद हम सुनेंगे उसके शब्द है

जबसे मोहिं नंदनंदन दृष्टि पड्यो माई
तबसे परलोक लोक कछु ना सुहाई

गिरिधर गोपाल के मुखचंद्र से मीराबाई को तुरन्त ही लगाव हो गया। सिरपर धारण किए हुए मुकुटपर लहर रहा मोरपिच्छ, भालप्रदेशपर केसर तिलक,

मोरन की चंद्रकला, सीस मुकुट सोहे
केसरको तिलक भाल, तीन लोक मोहे

अर्धोन्मीलित नयन, उगते सूरज के वर्णवाले अधरोंपर मंद मंद मुसकान, कानों में मकराकृती कुंडल, जिनकी प्रभा कपोल - अर्थात् गालों पर छा रही है। और - यह प्रतिमा मुझे बहुतही मनभावन लगती है, कि गालों पर छा रही कुंडलप्रभा कुंडलों की दोलायमान होने की वजह से ऐसा लग रहा है मानों मन का मीन मानसरोवर को त्यागकर  कुंडलों के मकर से मिलने के लिए गालोंपर आ पहुंचा हो…।

कुंडल की अलक झलक कपोलन सुहाई
‘मनोमीन सरवर तजि मकर मिलन आई...!’

श्रीकृष्ण परमात्मा की विलोभनीय छबि का वर्णन करते समय मीरा अपनेआप को किसी भी सर्वसामान्य गोपी की भूमिका में विलीन कर देती हैं। यह भावना किसी भी गोपी की हो सकती है, मीरा की अकेली की नहीं।

“चालां वाही देस”, या “माई म्हाने सुपणां में परणी गोपाल”, या मीराबाई का सर्वज्ञात पद “मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोई” इन सारे पदों में जो भावना है, वह मीरा की अकेली की है, कोई अन्य सामान्य गोपी ऐसी भावना महसूस नहीं कर सकती। यह तो मीरा की प्रतिभा की उडान है। यह है श्रीकृष्ण परमात्मा से एकाकार होने पर जो आनंद प्राप्त हुआ उसका आविष्कार!

चूंकि यह भावना मीरा की अकेली की नहीं, इसलिए इसे युगलगीत की तरह प्रस्तुत किया है। इसे स्वर दिया है, मेरी दो गुणी विद्यार्थिनियों- शरयू दाते तथा शमिका भिडे ने ।

आइए, सुनते हैं, युगलगीत
“जबसे मोहिँ नंदनंदन दृष्टि पड्यो माई
तबसे परलोक लोक कछु न सुहाई।”

-अश्विनी भिडे देशपांडे 

रविवार, 1 दिसंबर 2024

लइ न गए बेइमनऊ हमका लइ न गए.../ ठुमरी / गायन : नैना देवी.

https://youtu.be/8Ei4uPGB_4Y  


नैना देवी (२७ सितम्बर १९१७ - १ नवम्बर १९९३) 
जिन्हें नैना रिपजीत सिंह के नाम से भी जाना जाता है, 
हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की भारतीय गायिका थीं, 
जो मुख्यतः अपनी ठुमरी प्रस्तुतियों के लिए जानी 
जाती थीं, हालाँकि उन्होंने दादरा और ग़ज़लें भी 
गाईं। वह ऑल इंडिया रेडियो और बाद में दूरदर्शन 
में संगीत निर्माता थीं। उन्होंने अपनी किशोरावस्था 
में गिरजा शंकर चक्रवर्ती से संगीत की शिक्षा शुरू 
की, बाद में १९५० के दशक में रामपुर-सहसवान 
घराने के उस्ताद मुश्ताक हुसैन खां और बनारस 
घराने की रसूलन बाई से इसे फिर से शुरू किया। 
कोलकाता के एक कुलीन परिवार में जन्मी, उनकी 
शादी १६ साल की उम्र में कपूरथला स्टेट के शाही 
परिवार में हुई थी।

लइ ना गये बेइमनऊ, हमका लइ ना गये
लइ ना गये दगाबजऊ  हमका लइ ना गये

चार महीना बरखा के लागे
बूँद बरसे बदरवा, हमका लइ ना गये

चार महीना जाड़ा के लागे
थर-थर काँपे बदनवा, हमका लइ ना गये

बुधवार, 27 नवंबर 2024

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर.../ शायर : अख़्तर शीरानी / गायन : नय्यरा नूर

https://youtu.be/tmWrOweFHt4?si=H-PM7gZZb_N0t3Fu


ऐ इश्क़ न छेड़ आ आ के हमें हम भूले हुओं को याद न कर
पहले ही बहुत नाशाद हैं हम तू और हमें नाशाद न कर

क़िस्मत का सितम ही कम नहीं कुछ ये ताज़ा सितम ईजाद न कर
यूँ ज़ुल्म न कर बे-दाद न कर

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
जिस दिन से मिले हैं दोनों का सब चैन गया आराम गया

चेहरों से बहार-ए-सुब्ह गई आँखों से फ़रोग़-ए-शाम गया
हाथों से ख़ुशी का जाम छुटा होंटों से हँसी का नाम गया

ग़मगीं न बना नाशाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

हम रातों को उठ कर रोते हैं रो रो के दुआएँ करते हैं
आँखों में तसव्वुर दिल में ख़लिश सर धुनते हैं आहें भरते हैं

ऐ इश्क़ ये कैसा रोग लगा जीते हैं न ज़ालिम मरते हैं
ये ज़ुल्म तू ऐ जल्लाद न कर

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
ये रोग लगा है जब से हमें रंजीदा हूँ मैं बीमार है वो

हर वक़्त तपिश हर वक़्त ख़लिश बे-ख़्वाब हूँ मैं बेदार है वो
जीने पे इधर बेज़ार हूँ मैं मरने पे उधर तयार है वो

और ज़ब्त कहे फ़रियाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

जिस दिन से बँधा है ध्यान तिरा घबराए हुए से रहते हैं
हर वक़्त तसव्वुर कर कर के शरमाए हुए से रहते हैं

कुम्हलाए हुए फूलों की तरह कुम्हलाए हुए से रहते हैं
पामाल न कर बर्बाद न कर

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
बेदर्द! ज़रा इंसाफ़ तो कर इस उम्र में और मग़्मूम है वो

फूलों की तरह नाज़ुक है अभी तारों की तरह मासूम है वो
ये हुस्न सितम! ये रंज ग़ज़ब! मजबूर हूँ मैं मज़लूम है वो

मज़लूम पे यूँ बे-दाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

ऐ इश्क़ ख़ुदारा देख कहीं वो शोख़-ए-हज़ीं बद-नाम न हो
वो माह-लक़ा बद-नाम न हो वो ज़ोहरा-जबीं बद-नाम न हो

नामूस का उस के पास रहे वो पर्दा-नशीं बद-नाम न हो
उस पर्दा-नशीं को याद न कर

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
उम्मीद की झूटी जन्नत के रह रह के न दिखला ख़्वाब हमें

आइंदा की फ़र्ज़ी इशरत के वादों से न कर बेताब हमें
कहता है ज़माना जिस को ख़ुशी आती है नज़र कमयाब हमें

छोड़ ऐसी ख़ुशी को याद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

क्या समझे थे और तू क्या निकला ये सोच के ही हैरान हैं हम
है पहले-पहल का तजरबा और कम-उम्र हैं हम अंजान हैं हम

ऐ इश्क़! ख़ुदारा! रहम-ओ-करम मासूम हैं हम नादान हैं हम
नादान हैं हम नाशाद न कर

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
वो राज़ है ये ग़म आह जिसे पा जाए कोई तो ख़ैर नहीं

आँखों से जब आँसू बहते हैं आ जाए कोई तो ख़ैर नहीं
ज़ालिम है ये दुनिया दिल को यहाँ भा जाए कोई तो ख़ैर नहीं

है ज़ुल्म मगर फ़रियाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

दो दिन ही में अहद-ए-तिफ़्ली के मासूम ज़माने भूल गए
आँखों से वो ख़ुशियाँ मिट सी गईं लब को वो तराने भूल गए

उन पाक बहिश्ती ख़्वाबों के दिलचस्प फ़साने भूल गए
इन ख़्वाबों सी यूँ आज़ाद न कर

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
उस जान-ए-हया का बस नहीं कुछ बे-बस है पराए बस में है

बे-दर्द दिलों को क्या है ख़बर जो प्यार यहाँ आपस में है
है बेबसी ज़हर और प्यार है रस ये ज़हर छुपा इस रस में है

कहती है हया फ़रियाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

आँखों को ये क्या आज़ार हुआ हर जज़्ब-ए-निहाँ पर रो देना
आहंग-ए-तरब पर झुक जाना आवाज़-ए-फ़ुग़ाँ पर रो देना

बरबत की सदा पर रो देना मुतरिब के बयाँ पर रो देना
एहसास को ग़म बुनियाद न कर

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
हर दम अबदी राहत का समाँ दिखला के हमें दिल-गीर न कर

लिल्लाह हबाब-ए-आब-ए-रवाँ पर नक़्श-ए-बक़ा तहरीर न कर
मायूसी के रमते बादल पर उम्मीद के घर तामीर न कर

तामीर न कर आबाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

जी चाहता है इक दूसरे को यूँ आठ पहर हम याद करें
आँखों में बसाएँ ख़्वाबों को और दिल में ख़याल आबाद करें

ख़ल्वत में भी हो जल्वत का समाँ वहदत को दुई से शाद करें
ये आरज़ुएँ ईजाद न कर

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर
दुनिया का तमाशा देख लिया ग़मगीन सी है बेताब सी है

उम्मीद यहाँ इक वहम सी है तस्कीन यहाँ इक ख़्वाब सी है
दुनिया में ख़ुशी का नाम नहीं दुनिया में ख़ुशी नायाब सी है

दुनिया में ख़ुशी को याद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

सोमवार, 25 नवंबर 2024

गोपी- गीत / श्रीमद्भागवत महापुराण - दशमस्कन्ध / स्वर : माधवी मधुकर झा

https://youtu.be/0lZ9eUgQ8sE  



जयति तेऽधिकं जन्मना व्रजः
श्रयत इन्दिरा शश्वदत्र हि ।
दयित दृश्यतां दिक्षु तावका
स्त्वयि धृतासवस्त्वां विचिन्वते ॥1॥

शरदुदाशये साधुजातसत्स-
रसिजोदरश्रीमुषा दृशा ।
सुरतनाथ तेऽशुल्कदासिका
वरद निघ्नतो नेह किं वधः ॥2॥

विषजलाप्ययाद्व्यालराक्षसा-
द्वर्षमारुताद्वैद्युतानलात् ।
वृषमयात्मजाद्विश्वतोभया
दृषभ ते वयं रक्षिता मुहुः ॥3॥

न खलु गोपिकानन्दनो भवा-
नखिलदेहिनामन्तरात्मदृक् ।
विखनसार्थितो विश्वगुप्तये
सख उदेयिवान्सात्वतां कुले ॥4॥

विरचिताभयं वृष्णिधुर्य ते
चरणमीयुषां संसृतेर्भयात् ।
करसरोरुहं कान्त कामदं
शिरसि धेहि नः श्रीकरग्रहम् ॥5॥

व्रजजनार्तिहन्वीर योषितां
निजजनस्मयध्वंसनस्मित ।
भज सखे भवत्किंकरीः स्म नो
जलरुहाननं चारु दर्शय ॥6॥

प्रणतदेहिनांपापकर्शनं
तृणचरानुगं श्रीनिकेतनम् ।
फणिफणार्पितं ते पदांबुजं
कृणु कुचेषु नः कृन्धि हृच्छयम् ॥7॥

मधुरया गिरा वल्गुवाक्यया
बुधमनोज्ञया पुष्करेक्षण ।
विधिकरीरिमा वीर मुह्यती-
रधरसीधुनाऽऽप्याययस्व नः ॥8॥

तव कथामृतं तप्तजीवनं
कविभिरीडितं कल्मषापहम् ।
श्रवणमङ्गलं श्रीमदाततं
भुवि गृणन्ति ते भूरिदा जनाः ॥9॥

प्रहसितं प्रिय प्रेमवीक्षणं
विहरणं च ते ध्यानमङ्गलम् ।
रहसि संविदो या हृदिस्पृशः
कुहक नो मनः क्षोभयन्ति हि ॥10॥

चलसि यद्व्रजाच्चारयन्पशून्
नलिनसुन्दरं नाथ ते पदम् ।
शिलतृणाङ्कुरैः सीदतीति नः
कलिलतां मनः कान्त गच्छति ॥11॥

दिनपरिक्षये नीलकुन्तलै-
र्वनरुहाननं बिभ्रदावृतम् ।
घनरजस्वलं दर्शयन्मुहु-
र्मनसि नः स्मरं वीर यच्छसि ॥12॥

प्रणतकामदं पद्मजार्चितं
धरणिमण्डनं ध्येयमापदि ।
चरणपङ्कजं शंतमं च ते
रमण नः स्तनेष्वर्पयाधिहन् ॥13॥

सुरतवर्धनं शोकनाशनं
स्वरितवेणुना सुष्ठु चुम्बितम् ।
इतररागविस्मारणं नृणां
वितर वीर नस्तेऽधरामृतम् ॥14॥

अटति यद्भवानह्नि काननं
त्रुटिर्युगायते त्वामपश्यताम् ।
कुटिलकुन्तलं श्रीमुखं च ते
जड उदीक्षतां पक्ष्मकृद्दृशाम् ॥15॥

पतिसुतान्वयभ्रातृबान्धवा-
नतिविलङ्घ्य तेऽन्त्यच्युतागताः ।
गतिविदस्तवोद्गीतमोहिताः
कितव योषितः कस्त्यजेन्निशि ॥16॥

रहसि संविदं हृच्छयोदयं
प्रहसिताननं प्रेमवीक्षणम् ।
बृहदुरः श्रियो वीक्ष्य धाम ते
मुहुरतिस्पृहा मुह्यते मनः ॥17॥

व्रजवनौकसां व्यक्तिरङ्ग ते
वृजिनहन्त्र्यलं विश्वमङ्गलम् ।
त्यज मनाक् च नस्त्वत्स्पृहात्मनां
स्वजनहृद्रुजां यन्निषूदनम् ॥18॥

यत्ते सुजातचरणाम्बुरुहं स्तनेष
भीताः शनैः प्रिय दधीमहि कर्कशेषु ।
तेनाटवीमटसि तद्व्यथते न किंस्वित्कू
र्पादिभिर्भ्रमति धीर्भवदायुषां नः ॥19॥

इति श्रीमद्भागवत महापुराणे पारमहंस्यां संहितायां
दशमस्कन्धे पूर्वार्धे रासक्रीडायां गोपीगीतं
नामैकत्रिंशोऽध्यायः ॥

शुक्रवार, 22 नवंबर 2024

बहे निरन्तर अनन्त आनन्दधारा.../ रवीन्द्र नाथ टैगोर / गायन : पण्डित अजय चक्रवर्ती

https://youtu.be/1IZwVjfBSeg  

बहे निरन्तर अनन्त आनन्दधारा ॥
बाजे असीम नभोमाझे अनादि रब,
जागे अगण्य रबिचन्द्रतारा ॥
एकक अखण्ड ब्रह्माण्डराज्ये
परम-एक सेइ राजराजेन्द्र राजे।
बिस्मित निमेषहत   बिश्ब चरणे बिनत,
लक्षशत भक्तचित बाक्यहारा ॥

English Translation 

Eternally flows the never-ending 
stream of happiness 
Resonates in the infinite space the primal sound 
Awakens the innumerable suns, moons and stars, 
In the unified unbroken universe 
Reigns supreme the one King of Kings 
In amazement the world bows in humility And millions of devotees in speechless wonderment.

-Translated by Ratna De.

बुधवार, 20 नवंबर 2024

माई म्हने सुपणां में परणी गोपाल.../ मीराबाई / प्रस्तुति : विदुषी अश्विनी भिड़े देशपाण्डे

https://youtu.be/c_BwrU2hCO4 


माई म्हने सुपणां में परणी गोपाल।

मत करो म्हारी ब्याव सगाई,
क्यूं बांधो जंजाल??

झूठा मात पिता सुत बन्धु 
बँध्यो अबध्या ताल।।

मीरा के प्रभु गिरिधर नागर 
सांचो पति नंदलाल।।

नमस्ते, 'बतियां दौरावत' के सुननेवालों का 
आज मीराबाई की सफर में एक बार फिर स्वागत।
मीराबाई ने उठते-बैठते, सोते-जागते, गिरिधर गोपाल 
को ही अपने पति के रूप में देखा, इतना ही नहीं, 
बल्कि ईश्वर से खुद की शादी भी रचते हुए देखी.. 
उन्होंने इस घटना को एकबार नहीं, बल्कि बारबार 
जिया।

“माई म्हने सुपणां में परणी गोपाल...”

आम तौर से इस पद के काव्य के जो शब्द पाये 
जाते हैं, उनमें यह उल्लेख मिलता है, कि 
“छप्पन कोटां जणां पधार्या, दूल्हो सिरी बृजराज” 
इत्यादि । परंतु, मेरे पद को काव्य कुछ अलग है, 
इसमें मीराबाई कहतीं हैं,

“मत करो म्हारी ब्याव सगाई,
क्यूं बांधो जंजाल?”

यह काव्य मुझे कुछ समय पहले प्राप्त हुआ, जब मैंने मीराबाई के जन्मस्थल मेड़ता में रचाये जा रहे एक दृक्‌श्राव्य प्रस्तुति (light and Sound show) 
के लिए गाया। इस तरह से एक ही पद के पाठभेद 
प्राप्त होते हैं यह घटना केवल मीराबाई के पदों के 
बारे में ही नहीं, बल्कि अन्य मध्ययुगीन संतकवियों 
की रचनाओं के बारे में भी पाई जाती है।

पाठभेद जो भी हो, घटना एकही है, मीराबाई ने 
देखा हुआ सपना - जिसमें वे अपने खुद के 
परिणय का वर्णन करती हैं।

आइए, सुनते हैं
“परणी गोपाल ।”
- अश्विनी भिड़े देशपाण्डे

मंगलवार, 19 नवंबर 2024

मा रा ब-ग़म्ज़ा कुश्त-ओ-कज़ा रा बहाना सख़्त.../ निज़ामी गंजवी / गायन : इक़बाल बानो

https://youtu.be/MxVfvYvWGVA  


Iqbal Bano presents a famous ghazal by Nizami Ganjavi (a.d 1141)
who lived in Ganja in presnt day Azarbaijan during the Seljuq empire.
He was the greatest romantic epic poet in Persian literature, who
brought a colloquial and realistic style to the Persian epic.

मा रा ब-गम्ज़ा कुश्त-ओ-कज़ा रा बहाना सख़्त 
ख़ुद सू-ए-मा ना-दीद-ओ-हया रा बहाना सख़्त 

जाहिद न दश्त ताब-ए-जमाल-ए-परी रुखां
कुंज-ए-गिरिफ़्त-ओ-याद-ए-खुदा रा बहाना सख़्त 

रफ्तम ब मस्जिद-ए-के, ब-बीनम जमाल-ए-दोस्त
दस्त-ए-ब-रू काशिद-ओ-दुआ रा बहाना सख़्त 

दश्त-ए-ब-दोश-ए-ग़ैर निहाद-ए-बर-ए-क़रम
मा रा चूं दीद लग्ज़िश-ए-पा रा बहाना सख़्त

रविवार, 17 नवंबर 2024

हरिनाम माला स्त्रोत.../ राजा महाबलि के द्वारा रचित / स्वर : स्नीति मिश्रा

https://youtu.be/4HIFTQSyDtI?si=Z05ZLizBCmEAHFeX

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
गोविन्दं गोकुलानन्दं गोपालं गोपिवल्लभम् ।
गोवर्धनोद्धरं धीरं तं वन्दे गोमतीप्रियम् ॥१॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
नारायणं निराकारं नरवीरं नरोत्तमम् ।
नृसिंहं नागनाथं च तं वन्दे नरकान्तकम् ॥२॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
पीताम्बरं पद्मनाभं पद्माक्षं पुरुषोत्तमम् ।
पवित्रं परमानन्दं तं वन्दे परपरमेश्वरम्॥३॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
राघवं रामचन्द्रं च रावणारिं रमापतिम् ।
राजीवलोचनं रामं तं वन्दे रघुनन्दनम् ॥४॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
वामनं विश्वरूपं च वासुदेवं च विठ्ठलम् ।
विश्वेश्वरं विभुं व्यासं तं वन्दे वेदवल्लभम् ॥५॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
दामोदरं दिव्यसिंहं दयालुं दीननायकम् ।
दैत्यारिं देवदेवेशं तं वन्दे देवकीसुतम् ॥६॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
मुरारिं माधवं मत्स्यं मुकुन्दं मुष्टिमर्दनम् ।
मुञ्जकेशं महाबाहुं तं वन्दे मधुसूदनम् ॥७॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
केशवं कमलाकान्तं कामेशं कौस्तुभप्रियम् ।
कौमोदकीधरं कृष्णं तं वन्दे कौकौरवान्तकम्॥८॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
भूधरं भुवनानन्दं भूतेशं भूतनायकम् ।
भावनैकं भुजंगेशं तं वन्दे भवनाशनम् ॥९॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
जनार्दनं जगन्नाथं जगज्जाड्यविनाशकम् ।
जामदग्न्यं परं ज्योतिस्तं वन्दे जलशायिनम् ॥१०॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
चतुर्भुजं चिदानन्दं मल्लचाणूरमर्दनम् ।
चराचरगतं देवं तं वन्दे चक्रपाणिनम् ॥११॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
श्रियःकरं श्रियोनाथं श्रीधरं श्रीवरप्रदम् ।
श्रीवत्सलधरं सौम्यं तं वन्दे श्रीसुरेश्वरम् ॥१२॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
योगीश्वरं यज्ञपतिं यशोदानन्ददायकम् ।
यमुनाजलकल्लोलं तं वन्दे यदुयदुनायकम् ॥१३॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
शालिग्रामशिलाशुद्धं शंखचक्रोपशोभितम् ।
सुरासुरैः सदा सेव्यं तं वन्दे सासाधुवल्लभम् ॥१४॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय 
त्रिविक्रमं तपोमूर्तिं त्रिविधाघौघनाशनम् ।
त्रिस्थलं तीर्थराजेन्द्रं तं वन्दे तुलसीप्रियम् ॥१५॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
अनन्तमादिपुरुषं अच्युतं च वरप्रदम् ।
आनन्दं च सदानन्दं तं वन्दे चाघनाशनम् ॥१६॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
लीलया धृतभूभारं लोकसत्त्वैकवन्दितम् ।
लोकेश्वरं च श्रीकान्तं तं वन्दे लक्षमणप्रियम् ॥१७॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
हरिं च हरिणाक्षं च हरिनाथं हरप्रियम् ।
हलायुधसहायं च तं वन्दे हनुमत्पतिम् ॥१८॥


ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
हरिनामकृतामाला पवित्रा पापनाशिनी ।
बलिराजेन्द्रेण चोक्त्ता कण्ठे धार्या प्रयत्नतः ॥१९॥

सोमवार, 11 नवंबर 2024

श्री पार्वतीवल्लभ अष्टकम.../ श्रीमच्छङ्करयोगीन्द्र विरचितं / स्वर : माधवी मधुकर झा

https://youtu.be/ehd2G7x3EwU?si=Px2VUVwa8p-pStXN


नमो भूतनाथं नमो देवदेवं
नमः कालकालं नमो दिव्यतेजम् ।
नमः कामभस्मं नमश्शान्तशीलं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ १ ॥

सदा तीर्थसिद्धं सदा भक्तरक्षं
सदा शैवपूज्यं सदा शुभ्रभस्मम् ।
सदा ध्यानयुक्तं सदा ज्ञानतल्पं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ २ ॥

श्मशानं शयानं महास्थानवासं
शरीरं गजानां सदा चर्मवेष्टम् ।
पिशाचं निशोचं पशूनां प्रतिष्ठं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ३ ॥

फणीनागकण्ठे भुजङ्गाद्यनेकं
गले रुण्डमालं महावीर शूरम् ।
कटिव्याघ्रचर्मं चिताभस्मलेपं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ४ ॥

शिरश्शुद्धगङ्गा शिवा वामभागं
बृहद्दीर्घकेशं सदा मां त्रिणेत्रम् ।
फणीनागकर्णं सदा फालचन्द्रं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ५ ॥

करे शूलधारं महाकष्टनाशं
सुरेशं वरेशं महेशं जनेशम् ।
धनेशामरेशं ध्वजेशं गिरीशं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ६ ॥

उदासं सुदासं सुकैलासवासं
धरानिर्धरं संस्थितं ह्यादिदेवम् ।
अजाहेमकल्पद्रुमं कल्पसेव्यं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ७ ॥

मुनीनां वरेण्यं गुणं रूपवर्णं
द्विजैस्सम्पठन्तं शिवं वेदशास्त्रम् ।
अहो दीनवत्सं कृपालं महेशं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ८ ॥

सदा भावनाथं सदा सेव्यमानं
सदा भक्तिदेवं सदा पूज्यमानम् ।
मया तीर्थवासं सदा सेव्यमेकं
भजे पार्वतीवल्लभं नीलकण्ठम् ॥ ९ ॥

इति श्रीमच्छङ्करयोगीन्द्र विरचितं पार्वतीवल्लभाष्टकम् ॥

शुक्रवार, 8 नवंबर 2024

कुछ तुझ को ख़बर है हम क्या क्या.../ मजाज़ लखनवी / मजाज़ की अपनी आवाज में

https://youtu.be/53IBg_8llxY  


कुछ तुझ को ख़बर है हम क्या क्या ऐ शोरिश-ए-दौराँ भूल गए
वो ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ भूल गए वो दीदा-ए-गिर्यां भूल गए

ऐ शौक़-ए-नज़ारा क्या कहिए नज़रों में कोई सूरत ही नहीं
ऐ ज़ौक़-ए-तसव्वुर क्या कीजे हम सूरत-ए-जानाँ भूल गए

अब गुल से नज़र मिलती ही नहीं अब दिल की कली खिलती ही नहीं
ऐ फ़स्ल-ए-बहाराँ रुख़्सत हो हम लुत्फ़-ए-बहाराँ भूल गए

सब का तो मुदावा कर डाला अपना ही मुदावा कर न सके
सब के तो गरेबाँ सी डाले अपना ही गरेबाँ भूल गए

ये अपनी वफ़ा का आलम है अब उन की जफ़ा को क्या कहिए
इक निश्तर-ए-ज़हर-आगीं रख कर नज़दीक-ए-रग-ए-जाँ भूल गए 

बुधवार, 6 नवंबर 2024

दुखवा मिटाईं छठी मइया.../ विनम्र श्रद्धांजलि शारदा सिन्हा जी

https://youtu.be/NkDiSj9c1EA  

दुखवा मिटाईं छठी मइया...
दुखवा मिटाईं छठी मैया, 
रउए असरा हमार- 
रऊए असरा हमार... 


सब के पुरावे लीं मनसा, 
हमरो सुन लीं पुकार- 
हमरो सुन लीं पुकार 


ससुरा में अईनी कईनी बरतिया, 
हिवआ जुड़ाई दीहिं पिया के पीरीतिया 
अचल सुहाग दीह मईया, 
कईनी बरत तोहार, 
कईनी बरत तोहार... 


गोदिया भराई दीहीं धियवा अव पुतवा, 
अंचरा में भरी दीहीं ममता दुलरवा 
ममता दुलरवा, 
सूपवा चढ़ाईब छठी मईया, 
देहब अरघ तोहार, 
देहब अरघ तोहार... 


सास-ससुर के रोगवा मिटईह, 
उनकर कयवा के कंचन बनईह, 
कंचन बनईह लऊके अन्हार छठी मईया, 
कर दीहिं घर ऊजियार, 
कर दीहीं घर ऊजियार... 


देवरा-ननदिया के दीहीं वरदनवा, 
परिजन पुरजन पुराई सपनवा, 
पुराई सपनवा घाटे सबे मिली छठी मईया, 
गावे ली महिमा तोहार, 
गावे ली महिमा तोहार... 


दुखवा मिटाईं छठी मईया..
रउए असरा हमार- 
रऊए असरा हमार... 


सब के पुरावे लीं मनसा, 
हमरो सुन लीं पुकार- 
हमरो सुन लीं पुकार।।

सोमवार, 4 नवंबर 2024

विश्वेश्वर दर्शन कर चल मन तुम काशी.../ स्वर : सिवस्री स्कन्द प्रसाद

https://youtu.be/cwnxY864jDM  


विश्वेश्वर दर्शन कर चल
मन तुम काशी ।।

विश्वेश्वर दर्शन जब कीन्हो
बहु प्रेम सहित
काटे करुणा निधान जनन मरण फांसी।।

बहती जिनकी पुरी मो गंगा
पय कॆ समान
वा कॆ तट घाट घाट
भर रहे संन्यासी।।

भस्म अंग भुज त्रिशूल
और मे लसे नाग
मायि गिरिजा अर्धांग धरे
त्रिभुवन जिन दासी।।

पद्मनाभ कमलनयन
त्रिनयन शंभू महेश
भज ले ये दो स्वरूप
रह ले अविनाशी।।

रविवार, 3 नवंबर 2024

हम्मै दुनिया करेला बदनाम बलमवा तोहरे बगैइर.../ गायन : दीपाली सहाय

https://youtu.be/ieOoGWUSEC0  


हम्मै दुनिया करेला बदनाम
बलमवा तोहरे बगैइर
हाय हो गइली निंदिया हराम
बलमवा तोहरे बगैइर

मीठी बतियन से जियरा लुभउलऽ
हँसि के जादू नजर से चलउलऽ
लिहलऽ ख़रीद हम्मई भरली बजरिया में
गइली बिकाय बिना दाम
बलमवा तोहरे बगैइर

पहिले तऽ छुप छुप के खिचड़ी पकउलऽ
अब हमरा पतझड़ के पतवा बनउलऽ
धोका कइलऽ कवन फल पउलऽ
तड़पू सबेरे और साम
बलमवा तोहरे बगैइर

चैन नही आवे पिया दिनवा औ रतिया
छाती पे मूँग दरै बैरन सौवतिया
सासू के बतिया सहीला आउर उपर से
ननदो के भइली गुलाम
बलमवा तोहरे बगैइर

मंगलवार, 29 अक्टूबर 2024

लक्ष्मी स्तोत्रं / सर्वदेवकृत / स्वर : माधवी मधुकर झा

https://youtu.be/HaRSDKZPQ3I  


क्षमस्व भगवत्यम्ब क्षमाशीले परात्परे ।
शुद्धसत्त्वस्वरूपे च कोपादिपरिवर्जिते ॥ १ ॥

उपमे सर्वसाध्वीनां देवीनां देवपूजिते ।
त्वया विना जगत्सर्वं मृततुल्यं च निष्फलम् ॥ २ ॥

सर्वसम्पत्स्वरूपा त्वं सर्वेषां सर्वरूपिणी ।
रासेश्वर्यधिदेवी त्वं त्वत्कलाः सर्वयोषितः ॥ ३ ॥

कैलासे पार्वती त्वं च क्षीरोदे सिन्धुकन्यका ।
स्वर्गे च स्वर्गलक्ष्मीस्त्वं मर्त्यलक्ष्मीश्च भूतले ॥ ४ ॥

वैकुण्ठे च महालक्ष्मीर्देवदेवी सरस्वती ।
गङ्गा च तुलसी त्वं च सावित्री ब्रह्मलोकतः ॥ ५ ॥

कृष्णप्राणाधिदेवी त्वं गोलोके राधिका स्वयम् ।
रासे रासेश्वरी त्वं च वृन्दावनवने वने ॥ ६ ॥

कृष्णप्रिया त्वं भाण्डीरे चन्द्रा चन्दनकानने ।
विरजा चम्पकवने शतशृङ्गे च सुन्दरी ॥ ७॥

पद्मावती पद्मवने मालती मालतीवने ।
कुन्ददन्ती कुन्दवने सुशीला केतकीवने ॥ ८ ॥

कदम्बमाला त्वं देवी कदम्बकाननेऽपि च।
राजलक्ष्मी राजगेहे गृहलक्ष्मीगृहे गृहे ॥ ९ ॥

इत्युक्त्वा देवताः सर्वे मुनयो मनवस्तथा ।
रुरुदुर्नम्रवदनाः शुष्ककण्ठोष्ठतालुकाः ॥ १०॥

इति लक्ष्मीस्तवं पुण्यं सर्वदेवैः कृतं शुभम् ।
यः पठेत्प्रातरुत्थाय स वै सर्वं लभेद् ध्रुवम् ॥ ११ ॥

अभार्यो लभते भार्यां विनीतां च सुतां सतीम् ।
सुशीलां सुन्दरीं रम्यामतिसुप्रियवादिनीम् ॥ १२ ॥

पुत्रपौत्रावतीं शुद्धां कुलजां कोमलां वराम् ।
अपुत्रो लभते पुत्रं वैष्णवं चिरजीवनम् ॥ १३॥

परमैश्वर्ययुक्तं च विद्यावन्तं यशस्विनम् ।
भ्रष्टराज्यो लभेद्राज्यं भ्रष्टश्रीर्लभते श्रियम् ॥ १४ ॥

हतबन्धुर्लभेद्वन्धुं धनभ्रष्टो धनं लभेत्।
कीर्तिहीनो लभेत्कीर्तिं प्रतिष्ठां च लभेध्रुवम् ॥ १५ ॥

सर्वमङ्गलदं स्तोत्रं शोकसंतापनाशनम् ।
हर्षानन्दकरं शश्वद्धर्ममोक्षसुहृत्प्रदम् ॥ १६ ॥

सोमवार, 28 अक्टूबर 2024

शिव कैलाशों के वासी.../ गायन : सिद्धार्थ मोहन

https://youtu.be/71cMcLFmUfg  


शिव कैलाशो के वासी,
धौली धारों के राजा,
शंकर संकट हरना,
शंकर संकट हरना ॥

शिव कैलाशो के वासी,
धौली धारों के राजा,
शंकर संकट हरना,
शंकर संकट हरना ॥तेरे कैलाशों का अंत ना पाया,
तेरे कैलाशों का अंत ना पाया,
अंत बेअंत तेरी माया,
ओ भोले बाबा,
अंत बेअंत तेरी माया,
शिव कैलाशों के वासी,
धौली धारों के राजा,
शंकर संकट हरना,
शंकर संकट हरना ॥

बेल की पत्तियां भांग धतुरा,
बेल की पत्तियां भांग धतुरा,
शिव जी के मन को लुभायें,
ओ भोले बाबा,
शिव जी के मन को लुभायें
शिव कैलाशों के वासी,
धौली धारों के राजा,
शंकर संकट हरना,
शंकर संकट हरना ॥

एक था डेरा तेरा,
चम्बे रे चौगाना,
दुज्जा लायी दित्ता भरमौरा,
ओ भोले बाबा,
दुज्जा लायी दित्ता भरमौरा,
शिव कैलाशों के वासी,
धौली धारों के राजा,
शंकर संकट हरना,
शंकर संकट हरना ॥

शिव कैलाशो के वासी,
धौली धारों के राजा,
शंकर संकट हरना,
शंकर संकट हरना ॥

रविवार, 27 अक्टूबर 2024

आये हैं समझाने लोग.../ शायर : कुँवर महेंद्र सिंह बेदी 'सहर' / गायन : आकांक्षा ग्रोवर

https://youtu.be/HzDJ4SgbU-w  


आये हैं समझाने लोग
हैं कितने दीवाने लोग

दैर-ओ-हरम में चैन जो मिलता
क्यों जाते मैख़ाने लोग

जान के सब कुछ, कुछ भी न जाने
हैं कितने अंजाने लोग

वक़्त पे काम नहीं आते हैं
ये जाने पहचाने लोग

अब जब मुझ को होश नहीं है
आये हैं समझाने लोग

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2024

दिन गुज़र गया ऐतबार में.../ फ़ना निज़ामी / गायन : कृपा ठक्कर

https://youtu.be/qk7Jg7L5y9E  


दिन गुज़र गया ऐतबार में
रात कट गयी इंतज़ार में

वो मज़ा कहाँ वस्ल-ए-यार में
लुत्फ़ जो मिला इंतज़ार में

उनकी इक नज़र, काम कर गयी
होश अब कहाँ होशियार में

मेरे कब्ज़े में कायनात है
मैं हूँ आपके इख़्तियार में

आँख तो उठी फूल की तरफ
दिल उलझ गया हुस्न-ए-ख़ार में

तुजसे क्या कहें, कितने ग़म सहे
हमने बेवफ़ा तेरे प्यार में

फ़िक्र-ए-आशियाँ, हर ख़िज़ाँ में की
आशियाँ जला हर बहार में

किस तरह ये ग़म भूल जाएं हम
वो जुदा हुआ इस बहार में

दिन गुज़र गया ऐतबार में
रात कट गयी इंतज़ार में

वो मज़ा कहाँ वस्ल-ए-यार में
लुत्फ़ जो मिला इंतज़ार में



(ऐतबार = भरोसा, विश्वास)
(फ़िक्र-ए-आशियाँ = घोंसले (घर) की चिंता), (ख़िज़ाँ = पतझड़)
हुस्न-ए-ख़ार = काँटों की खूबसूरती)

(कायनात = सृष्टि, जगत), (इख़्तियार = अधिकार, काबू, स्वामित्व, प्रभुत्व)
(वस्ल-ए-यार = प्रिय से मिलन)

गुरुवार, 24 अक्टूबर 2024

महालक्ष्मी अष्टकं.../ इन्द्र कृत / पद्म पुराण / स्वर : सूर्य गायत्री

https://youtu.be/ucKk_AQvQA4  


नमस्तेस्तु महामाये श्री पीठे सुर पूजिते!
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

नमस्तेतु गरुड़ारुढ़े कोलासुर भयंकरी!
सर्वपाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

सर्वज्ञे सर्व वरदे सर्व दुष्ट भयंकरी!
सर्वदुख हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

सिद्धि बुद्धि प्रदे देवी भक्ति मुक्ति प्रदायनी!
मंत्र मुर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

आद्यंतरहिते देवी आद्य शक्ति महेश्वरी!
योगजे योग सम्भूते महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

स्थूल सुक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोदरे!
महापाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

पद्मासन स्थिते देवी परब्रह्म स्वरूपिणी!
परमेशी जगत माता महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

श्वेताम्भर धरे देवी नानालन्कार भुषिते!
जगत स्थिते जगंमाते महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

महालक्ष्मी अष्टक स्तोत्रं य: पठेत भक्तिमान्नर:!
सर्वसिद्धिमवाप्नोती राज्यम् प्राप्नोति सर्वदा!!

एक कालम पठेनित्यम महापापविनाशनम!
द्विकालम य: पठेनित्यम धनधान्यम समन्वित:!!

त्रिकालम य: पठेनित्यम महाशत्रुविनाषम!
महालक्ष्मी भवेनित्यम प्रसंनाम वरदाम शुभाम!! 




बुधवार, 23 अक्टूबर 2024

सिसोद्यो रुठ्यो तो म्हारो कांई कर लेसी?.../ मीराबाई / गायन : अश्विनी भिडे देशपांडे

https://youtu.be/QCIa6n9pW3U 


मीरा का विवाह बारह वर्ष की उम्र में मेवाड़ के 
महाराणा संग्रामसिंहजी अर्थात् राणा सांगाजी 
के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज के साथ हुआ। 
महाराणा सांगा और दिल्लीपति बादशहा बाबर 
इन दोनों के बीच जो जंग सन 1527 में 
‘खानवा की लडाई' के नामसे मशहूर हुई, 
उसमें राणा सांगा, उनके बेटे मीरा के पति 
भोजराज, मीरा के पिता रतनसिंह, सभी 
मारे गये और इस दुर्घटना के बाद से मीरा 
का बुरा वक्त शुरू हुआ। राणे भेजा विष 
का प्याला' इस उल्लेख में जिस 'राणा' का 
जिक्र है, वह है मीरा के देवर विक्रमादित्य 
जिन्होंने मीरा को 'बावरी' का नामाभिधान 
देकर, उसे ज़हर पिलाने के, या फिर फूलों 
के साथ जहरीला नाग भेजकर उसे खतम 
करने के षड्‌यंत्र रचे |

परंतु मीराबाई अपनी भक्ति के बलपर इन 
सभी खतरों से सहीसलामत निकल गई। 
मीरा ने कभी भी इन खतरों से जूझने के 
लिए अपने गिरिधर गोपाल ही सहायता 
नहीं माँगी। उनका भरोसा था - नामस्मरण 
के बल पर। सब संकटों का एकही उपाय वे 
जानती थीं।

आइए, आज जो पद हम सुनेंगे उसकी भाषा 
कुछ अलग है। जैसे लोकभाषा हो... और 
इसी कारण इस पद की संगीतरचना भी 
लोकसंगीत से नाता दर्शानेवाली। इस पद में 
मीराबाई सारे भगत गणोंको मानों यह सीख 
पढ़ा रही है कि सब कष्टों का एकही इलाज है 
ईश्वर का नामस्मरण! वे कहती हैं,

“सिसोद्यो रुठ्यो तो म्हारो कांई कर लेसी?”

और इनका जबाब है,

“म्हें तो गुण गोविंद का गास्यां हो माई ॥”
“म्हें तो गुण गोविंद का गास्यां”


बस, एक नामस्मरण से ही सभी भौतिक और 
लौकिक दुखों का नाश होगा, इसलिए, हरएक 
साँस के साथ नाम की माला जपनी चाहिए

सोमवार, 21 अक्टूबर 2024

हर हर हर महादेव महेश्वर.../ गायन : स्नीति मिश्रा

https://youtu.be/ik0zFmy-Dd8  


हर हर हर महादेव महेश्वर 
महाजोगी जोगेश्वर शंकर 
गिरिजापति परमेश्वर शुभकर 
हर हर हर महादेव महेश्वर 

जटाजूट पर शोभत गंगा 
नीलकंठ भूषित भुजंगा
उमा सहित षडनायक कार्तिक 
सुर नर वन्दित रुद्रगण सेवित 

हर हर हर महादेव महेश्वर

रविवार, 20 अक्टूबर 2024

भज गोविन्दम् .../ आदि शंकराचार्य / गायन : सिवस्री स्कन्द प्रसाद

https://youtu.be/2D06mgUI4jY 


भज गोविन्दं भज गोविन्दं,
गोविन्दं भज मूढ़मते।
संप्राप्ते सन्निहिते काले,
न हि न हि रक्षति डुकृञ् करणे॥१॥

हे मोह से ग्रसित बुद्धि वाले मित्र, गोविंद को भजो, गोविन्द का नाम लो, गोविन्द से प्रेम करो क्योंकि मृत्यु के समय व्याकरण के नियम याद रखने से आपकी रक्षा नहीं हो सकती है॥१॥

मूढ़ जहीहि धनागमतृष्णाम्,
कुरु सद्बुद्धिमं मनसि वितृष्णाम्।
यल्लभसे निजकर्मोपात्तम्,
वित्तं तेन विनोदय चित्तं॥२॥

हे मोहित बुद्धि! धन एकत्र करने के लोभ को त्यागो। अपने मन से इन समस्त कामनाओं का त्याग करो। सत्यता के पथ का अनुसरण करो, अपने परिश्रम से जो धन प्राप्त हो उससे ही अपने मन को प्रसन्न रखो॥२॥

नारीस्तनभरनाभीदेशम्,
दृष्ट्वा मागा मोहावेशम्।
एतन्मान्सवसादिविकारम्,
मनसि विचिन्तय वारं वारम्॥३॥

स्त्री शरीर पर मोहित होकर आसक्त मत हो। अपने मन में निरंतर स्मरण करो कि ये मांस-वसा आदि के विकार के अतिरिक्त कुछ और नहीं हैं॥३॥

नलिनीदलगतजलमतितरलम्, तद्वज्जीवितमतिशयचपलम्।
विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं,
लोक शोकहतं च समस्तम्॥४॥

जीवन कमल-पत्र पर पड़ी हुई पानी की बूंदों के समान अनिश्चित एवं अल्प (क्षणभंगुर) है। यह समझ लो कि समस्त विश्व रोग, अहंकार और दु:ख में डूबा हुआ है॥४॥

यावद्वित्तोपार्जनसक्त:,
तावन्निजपरिवारो रक्तः।
पश्चाज्जीवति जर्जरदेहे,
वार्तां कोऽपि न पृच्छति गेहे॥५॥

जब तक व्यक्ति धनोपार्जन में समर्थ है, तब तक परिवार में सभी उसके प्रति स्नेह प्रदर्शित करते हैं परन्तु अशक्त हो जाने पर उसे सामान्य बातचीत में भी नहीं पूछा जाता है॥५॥

यावत्पवनो निवसति देहे,
तावत् पृच्छति कुशलं गेहे।
गतवति वायौ देहापाये,
भार्या बिभ्यति तस्मिन्काये॥६॥

जब तक शरीर में प्राण रहते हैं तब तक ही लोग कुशल पूछते हैं। शरीर से प्राण वायु के निकलते ही पत्नी भी उस शरीर से डरती है॥६॥

बालस्तावत् क्रीडासक्तः,
तरुणस्तावत् तरुणीसक्तः।
वृद्धस्तावच्चिन्तासक्तः,
परे ब्रह्मणि कोऽपि न सक्तः॥७॥

बचपन में खेल में रूचि होती है , युवावस्था में युवा स्त्री के प्रति आकर्षण होता है, वृद्धावस्था में चिंताओं से घिरे रहते हैं पर प्रभु से कोई प्रेम नहीं करता है॥७॥

का ते कांता कस्ते पुत्रः,
संसारोऽयमतीव विचित्रः।
कस्य त्वं वा कुत अयातः,
तत्त्वं चिन्तय तदिह भ्रातः॥८॥

कौन तुम्हारी पत्नी है, कौन तुम्हारा पुत्र है, ये संसार अत्यंत विचित्र है, तुम कौन हो, कहाँ से आये हो, बन्धु ! इस बात पर तो पहले विचार कर लो॥८॥

सत्संगत्वे निस्संगत्वं,
निस्संगत्वे निर्मोहत्वं।
निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं
निश्चलतत्त्वे जीवन्मुक्तिः॥९॥

सत्संग से वैराग्य, वैराग्य से विवेक, विवेक से स्थिर तत्त्वज्ञान और तत्त्वज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति होती है॥९॥

वयसि गते कः कामविकारः,
शुष्के नीरे कः कासारः।
क्षीणे वित्ते कः परिवारः,
ज्ञाते तत्त्वे कः संसारः॥१०॥

आयु बीत जाने के बाद काम भाव नहीं रहता, पानी सूख जाने पर तालाब नहीं रहता, धन चले जाने पर परिवार नहीं रहता और तत्त्व ज्ञान होने के बाद संसार नहीं रहता॥१०॥

मा कुरु धनजनयौवनगर्वं,
हरति निमेषात्कालः सर्वं।
मायामयमिदमखिलम् हित्वा,
ब्रह्मपदम् त्वं प्रविश विदित्वा॥११॥

धन, शक्ति और यौवन पर गर्व मत करो, समय क्षण भर में इनको नष्ट कर देता है| इस विश्व को माया से घिरा हुआ जान कर तुम ब्रह्म पद में प्रवेश करो॥११॥

दिनयामिन्यौ सायं प्रातः,
शिशिरवसन्तौ पुनरायातः।
कालः क्रीडति गच्छत्यायुस्तदपि
न मुन्च्त्याशावायुः॥१२॥

दिन और रात, शाम और सुबह, सर्दी और बसंत बार-बार आते-जाते रहते है काल की इस क्रीडा के साथ जीवन नष्ट होता रहता है पर इच्छाओ का अंत कभी नहींहोता है॥१२॥

द्वादशमंजरिकाभिरशेषः
कथितो वैयाकरणस्यैषः।
उपदेशोऽभूद्विद्यानिपुणैः, श्रीमच्छंकरभगवच्चरणैः॥१२अ॥

बारह गीतों का ये पुष्पहार, सर्वज्ञ प्रभुपाद श्री शंकराचार्य द्वारा एक वैयाकरण को प्रदान किया गया॥१२अ॥

काते कान्ता धन गतचिन्ता,
वातुल किं तव नास्ति नियन्ता।
त्रिजगति सज्जनसं गतिरैका,
भवति भवार्णवतरणे नौका॥१३॥

तुम्हें पत्नी और धन की इतनी चिंता क्यों है, क्या उनका कोई नियंत्रक नहीं है| तीनों लोकों में केवल सज्जनों का साथ ही इस भवसागर से पार जाने की नौका है॥१३॥

जटिलो मुण्डी लुञ्छितकेशः, काषायाम्बरबहुकृतवेषः।
पश्यन्नपि च न पश्यति मूढः,
उदरनिमित्तं बहुकृतवेषः॥१४॥

बड़ी जटाएं, केश रहित सिर, बिखरे बाल , काषाय (भगवा) वस्त्र और भांति भांति के वेश ये सब अपना पेट भरने के लिए ही धारण किये जाते हैं, अरे मोहित मनुष्य तुम इसको देख कर भी क्यों नहीं देख पाते हो॥१४॥

अङ्गं गलितं पलितं मुण्डं,
दशनविहीनं जतं तुण्डम्।
वृद्धो याति गृहीत्वा दण्डं,
तदपि न मुञ्चत्याशापिण्डम्॥१५॥

क्षीण अंगों, पके हुए बालों, दांतों से रहित मुख और हाथ में दंड लेकर चलने वाला वृद्ध भी आशा-पाश से बंधा रहता है॥१५॥

अग्रे वह्निः पृष्ठेभानुः,
रात्रौ चुबुकसमर्पितजानुः।
करतलभिक्षस्तरुतलवासः,
तदपि न मुञ्चत्याशापाशः॥१६॥

सूर्यास्त के बाद, रात्रि में आग जला कर और घुटनों में सर छिपाकर सर्दी बचाने वाला, हाथ में भिक्षा का अन्न खाने वाला, पेड़ के नीचे रहने वाला भी अपनी इच्छाओं के बंधन को छोड़ नहीं पाता है॥१६॥

कुरुते गङ्गासागरगमनं,
व्रतपरिपालनमथवा दानम्।
ज्ञानविहिनः सर्वमतेन,
मुक्तिं न भजति जन्मशतेन॥१७॥

किसी भी धर्म के अनुसार ज्ञान रहित रह कर गंगासागर जाने से, व्रत रखने से और दान देने से सौ जन्मों में भी मुक्ति नहीं प्राप्त हो सकती है॥१७॥

सुर मंदिर तरु मूल निवासः,
शय्या भूतल मजिनं वासः।
सर्व परिग्रह भोग त्यागः,
कस्य सुखं न करोति विरागः॥१८॥

देव मंदिर या पेड़ के नीचे निवास, पृथ्वी जैसी शय्या, अकेले ही रहने वाले, सभी संग्रहों और सुखों का त्याग करने वाले वैराग्य से किसको आनंद की प्राप्ति नहीं होगी॥१८॥

योगरतो वाभोगरतोवा,
सङ्गरतो वा सङ्गवीहिनः।
यस्य ब्रह्मणि रमते चित्तं,
नन्दति नन्दति नन्दत्येव॥१९॥

कोई योग में लगा हो या भोग में, संग में आसक्त हो या निसंग हो, पर जिसका मन ब्रह्म में लगा है वो ही आनंद करता है, आनंद ही करता है॥१९॥

भगवद् गीता किञ्चिदधीता,
गङ्गा जललव कणिकापीता।
सकृदपि येन मुरारि समर्चा,
क्रियते तस्य यमेन न चर्चा॥२०॥

जिन्होंने भगवदगीता का थोडा सा भी अध्ययन किया है, भक्ति रूपी गंगा जल का कण भर भी पिया है, भगवान कृष्ण की एक बार भी समुचित प्रकार से पूजा की है, यम के द्वारा उनकी चर्चा नहीं की जाती है॥२०॥

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं,
पुनरपि जननी जठरे शयनम्।
इह संसारे बहुदुस्तारे,
कृपयाऽपारे पाहि मुरारे॥२१॥

बार-बार जन्म, बार-बार मृत्यु, बार-बार माँ के गर्भ में शयन, इस संसार से पार जा पाना बहुत कठिन है, हे कृष्ण कृपा करके मेरी इससे रक्षा करें॥२१॥

रथ्या चर्पट विरचित कन्थः,
पुण्यापुण्य विवर्जित पन्थः।
योगी योगनियोजित चित्तो,
रमते बालोन्मत्तवदेव॥२२॥

रथ के नीचे आने से फटे हुए कपडे पहनने वाले, पुण्य और पाप से रहित पथ पर चलने वाले, योग में अपने चित्त को लगाने वाले योगी, बालक के समान आनंद में रहते हैं॥२२॥

कस्त्वं कोऽहं कुत आयातः,
का मे जननी को मे तातः।
इति परिभावय सर्वमसारम्,
विश्वं त्यक्त्वा स्वप्न विचारम्॥२३॥

तुम कौन हो, मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, मेरी माँ कौन है, मेरा पिता कौन है? सब प्रकार से इस विश्व को असार समझ कर इसको एक स्वप्न के समान त्याग दो॥२३॥

त्वयि मयि चान्यत्रैको विष्णुः,
व्यर्थं कुप्यसि मय्यसहिष्णुः।
भव समचित्तः सर्वत्र त्वं,
वाञ्छस्यचिराद्यदि विष्णुत्वम्॥२४॥

तुममें, मुझमें और अन्यत्र भी सर्वव्यापक विष्णु ही हैं, तुम व्यर्थ ही क्रोध करते हो, यदि तुम शाश्वत विष्णु पद को प्राप्त करना चाहते हो तो सर्वत्र समान चित्त वाले हो जाओ॥२४॥

शत्रौ मित्रे पुत्रे बन्धौ,
मा कुरु यत्नं विग्रहसन्धौ।
सर्वस्मिन्नपि पश्यात्मानं,
सर्वत्रोत्सृज भेदाज्ञानम्॥२५॥

शत्रु, मित्र, पुत्र, बन्धु-बांधवों से प्रेम और द्वेष मत करो, सबमें अपने आप को ही देखो, इस प्रकार सर्वत्र ही भेद रूपी अज्ञान को त्याग दो॥२५॥

कामं क्रोधं लोभं मोहं,
त्यक्त्वाऽत्मानं भावय कोऽहम्।
आत्मज्ञान विहीना मूढाः,
ते पच्यन्ते नरकनिगूढाः॥२६॥

काम, क्रोध, लोभ, मोह को छोड़ कर, स्वयं में स्थित होकर विचार करो कि मैं कौन हूँ, जो आत्म- ज्ञान से रहित मोहित व्यक्ति हैं वो बार-बार छिपे हुए इस संसार रूपी नरक में पड़ते हैं॥२६॥

गेयं गीता नाम सहस्रं,
ध्येयं श्रीपति रूपमजस्रम्।
नेयं सज्जन सङ्गे चित्तं,
देयं दीनजनाय च वित्तम्॥२७॥

भगवान विष्णु के सहस्त्र नामों को गाते हुए उनके सुन्दर रूप का अनवरत ध्यान करो, सज्जनों के संग में अपने मन को लगाओ और गरीबों की अपने धन से सेवा करो॥२७॥

सुखतः क्रियते रामाभोगः,
पश्चाद्धन्त शरीरे रोगः।
यद्यपि लोके मरणं शरणं,
तदपि न मुञ्चति पापाचरणम्॥२८॥

सुख के लिए लोग आनंद-भोग करते हैं जिसके बाद इस शरीर में रोग हो जाते हैं। यद्यपि इस पृथ्वी पर सबका मरण सुनिश्चित है फिर भी लोग पापमय आचरण को नहीं छोड़ते हैं॥२८॥

अर्थंमनर्थम् भावय नित्यं,
नास्ति ततः सुखलेशः सत्यम्।
पुत्रादपि धनभजाम् भीतिः,
सर्वत्रैषा विहिता रीतिः॥२९॥

धन अकल्याणकारी है और इससे जरा सा भी सुख नहीं मिल सकता है, ऐसा विचार प्रतिदिन करना चाहिए | धनवान व्यक्ति तो अपने पुत्रों से भी डरते हैं ऐसा सबको पता ही है॥२९॥

प्राणायामं प्रत्याहारं,
नित्यानित्य विवेकविचारम्।
जाप्यसमेत समाधिविधानं,
कुर्ववधानं महदवधानम्॥३०॥

प्राणायाम, उचित आहार, नित्य इस संसार की अनित्यता का विवेक पूर्वक विचार करो, प्रेम से प्रभु-नाम का जाप करते हुए समाधि में ध्यान दो, बहुत ध्यान दो॥३०॥

गुरुचरणाम्बुज निर्भर भक्तः, संसारादचिराद्भव मुक्तः।
सेन्द्रियमानस नियमादेवं,
द्रक्ष्यसि निज हृदयस्थं देवम्॥३१॥

गुरु के चरण कमलों का ही आश्रय मानने वाले भक्त बनकर सदैव के लिए इस संसार में आवागमन से मुक्त हो जाओ, इस प्रकार मन एवं इन्द्रियों का निग्रह कर अपने हृदय में विराजमान प्रभु के दर्शन करो॥३१॥

मूढः कश्चन वैयाकरणो,
डुकृञ्करणाध्ययन धुरिणः।
श्रीमच्छम्कर भगवच्छिष्यै,
बोधित आसिच्छोधितकरणः॥३२॥

इस प्रकार व्याकरण के नियमों को कंठस्थ करते हुए किसी मोहित वैयाकरण के माध्यम से बुद्धिमान श्री भगवान शंकर के शिष्य बोध प्राप्त करने के लिए प्रेरित किये गए॥३२॥

 भजगोविन्दं भजगोविन्दं,
गोविन्दं भजमूढमते।
नामस्मरणादन्यमुपायं,
नहि पश्यामो भवतरणे॥३३॥

गोविंद को भजो, गोविन्द का नाम लो, गोविन्द से प्रेम करो क्योंकि भगवान के नाम जप के अतिरिक्त इस भव-सागर से पार जाने का अन्य कोई मार्ग नहीं है॥३३॥


पायल में गीत हैं छम-छम के.../ क़तील शिफ़ाई / गायन : वहादत रमीज़

https://youtu.be/V3qKAinoSbo 


पाकिस्तानी फिल्म 'गुमनाम' (१९५४) में 
इक़बाल बानो का गाया गीत 

पायल मे गीत है छम छम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के

तू पिया से मिल कर आई है
बस आज से नींद परायी है
तू पिया से मिल कर आई है
बस आज से नींद परायी है
देखेगी सपने बालम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के

मैंने भी किया था प्यार कभी
मैंने भी किया था प्यार कभी
आई थी यही झनकार कभी
अब गीत मैं गाती हूँ गम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के

ये जीवन भर का रोग सखी
तोहे पगली कहेंगे लोग सखी
ये जीवन भर का रोग सखी
तोहे पगली कहेंगे लोग सखी

याद आएगे वादे बालम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के

शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2024

ज़िन्दगी रोज़ तेरा दर्द जिया है मैंने.../ शायर : हसीब सोज़ / गायन : डा. अनिल शर्मा

https://youtu.be/L3e10EUoJCc

ज़िन्दगी रोज़ तेरा दर्द जिया है मैंने 
ज़ह्र तो कुछ भी नहीं है जो पिया है मैंने

तुम अगर भूल गए हो तो कोई बात नहीं
वर्ना दामन तो तुम्हारा भी सिया है मैंने

कोई खुद आ के रुका है तो रुका है वर्ना
जाने वालों को कहाँ हाथ दिया है मैंने

मुझसे इस बार कोई चूक नहीं होने की
कितना भारी है उसे तोल लिया है मैंने

कद्दे-आदम तेरी तस्वीर लगी है घर में
घर को तरक़ीब से आबाद किया है मैंने