मंगलवार, 29 अक्टूबर 2024

लक्ष्मी स्तोत्रं / सर्वदेवकृत / स्वर : माधवी मधुकर झा

https://youtu.be/HaRSDKZPQ3I  


क्षमस्व भगवत्यम्ब क्षमाशीले परात्परे ।
शुद्धसत्त्वस्वरूपे च कोपादिपरिवर्जिते ॥ १ ॥

उपमे सर्वसाध्वीनां देवीनां देवपूजिते ।
त्वया विना जगत्सर्वं मृततुल्यं च निष्फलम् ॥ २ ॥

सर्वसम्पत्स्वरूपा त्वं सर्वेषां सर्वरूपिणी ।
रासेश्वर्यधिदेवी त्वं त्वत्कलाः सर्वयोषितः ॥ ३ ॥

कैलासे पार्वती त्वं च क्षीरोदे सिन्धुकन्यका ।
स्वर्गे च स्वर्गलक्ष्मीस्त्वं मर्त्यलक्ष्मीश्च भूतले ॥ ४ ॥

वैकुण्ठे च महालक्ष्मीर्देवदेवी सरस्वती ।
गङ्गा च तुलसी त्वं च सावित्री ब्रह्मलोकतः ॥ ५ ॥

कृष्णप्राणाधिदेवी त्वं गोलोके राधिका स्वयम् ।
रासे रासेश्वरी त्वं च वृन्दावनवने वने ॥ ६ ॥

कृष्णप्रिया त्वं भाण्डीरे चन्द्रा चन्दनकानने ।
विरजा चम्पकवने शतशृङ्गे च सुन्दरी ॥ ७॥

पद्मावती पद्मवने मालती मालतीवने ।
कुन्ददन्ती कुन्दवने सुशीला केतकीवने ॥ ८ ॥

कदम्बमाला त्वं देवी कदम्बकाननेऽपि च।
राजलक्ष्मी राजगेहे गृहलक्ष्मीगृहे गृहे ॥ ९ ॥

इत्युक्त्वा देवताः सर्वे मुनयो मनवस्तथा ।
रुरुदुर्नम्रवदनाः शुष्ककण्ठोष्ठतालुकाः ॥ १०॥

इति लक्ष्मीस्तवं पुण्यं सर्वदेवैः कृतं शुभम् ।
यः पठेत्प्रातरुत्थाय स वै सर्वं लभेद् ध्रुवम् ॥ ११ ॥

अभार्यो लभते भार्यां विनीतां च सुतां सतीम् ।
सुशीलां सुन्दरीं रम्यामतिसुप्रियवादिनीम् ॥ १२ ॥

पुत्रपौत्रावतीं शुद्धां कुलजां कोमलां वराम् ।
अपुत्रो लभते पुत्रं वैष्णवं चिरजीवनम् ॥ १३॥

परमैश्वर्ययुक्तं च विद्यावन्तं यशस्विनम् ।
भ्रष्टराज्यो लभेद्राज्यं भ्रष्टश्रीर्लभते श्रियम् ॥ १४ ॥

हतबन्धुर्लभेद्वन्धुं धनभ्रष्टो धनं लभेत्।
कीर्तिहीनो लभेत्कीर्तिं प्रतिष्ठां च लभेध्रुवम् ॥ १५ ॥

सर्वमङ्गलदं स्तोत्रं शोकसंतापनाशनम् ।
हर्षानन्दकरं शश्वद्धर्ममोक्षसुहृत्प्रदम् ॥ १६ ॥

सोमवार, 28 अक्टूबर 2024

शिव कैलाशों के वासी.../ गायन : सिद्धार्थ मोहन

https://youtu.be/71cMcLFmUfg  


शिव कैलाशो के वासी,
धौली धारों के राजा,
शंकर संकट हरना,
शंकर संकट हरना ॥

शिव कैलाशो के वासी,
धौली धारों के राजा,
शंकर संकट हरना,
शंकर संकट हरना ॥तेरे कैलाशों का अंत ना पाया,
तेरे कैलाशों का अंत ना पाया,
अंत बेअंत तेरी माया,
ओ भोले बाबा,
अंत बेअंत तेरी माया,
शिव कैलाशों के वासी,
धौली धारों के राजा,
शंकर संकट हरना,
शंकर संकट हरना ॥

बेल की पत्तियां भांग धतुरा,
बेल की पत्तियां भांग धतुरा,
शिव जी के मन को लुभायें,
ओ भोले बाबा,
शिव जी के मन को लुभायें
शिव कैलाशों के वासी,
धौली धारों के राजा,
शंकर संकट हरना,
शंकर संकट हरना ॥

एक था डेरा तेरा,
चम्बे रे चौगाना,
दुज्जा लायी दित्ता भरमौरा,
ओ भोले बाबा,
दुज्जा लायी दित्ता भरमौरा,
शिव कैलाशों के वासी,
धौली धारों के राजा,
शंकर संकट हरना,
शंकर संकट हरना ॥

शिव कैलाशो के वासी,
धौली धारों के राजा,
शंकर संकट हरना,
शंकर संकट हरना ॥

रविवार, 27 अक्टूबर 2024

आये हैं समझाने लोग.../ शायर : कुँवर महेंद्र सिंह बेदी 'सहर' / गायन : आकांक्षा ग्रोवर

https://youtu.be/HzDJ4SgbU-w  


आये हैं समझाने लोग
हैं कितने दीवाने लोग

दैर-ओ-हरम में चैन जो मिलता
क्यों जाते मैख़ाने लोग

जान के सब कुछ, कुछ भी न जाने
हैं कितने अंजाने लोग

वक़्त पे काम नहीं आते हैं
ये जाने पहचाने लोग

अब जब मुझ को होश नहीं है
आये हैं समझाने लोग

शुक्रवार, 25 अक्टूबर 2024

दिन गुज़र गया ऐतबार में.../ फ़ना निज़ामी / गायन : कृपा ठक्कर

https://youtu.be/qk7Jg7L5y9E  


दिन गुज़र गया ऐतबार में
रात कट गयी इंतज़ार में

वो मज़ा कहाँ वस्ल-ए-यार में
लुत्फ़ जो मिला इंतज़ार में

उनकी इक नज़र, काम कर गयी
होश अब कहाँ होशियार में

मेरे कब्ज़े में कायनात है
मैं हूँ आपके इख़्तियार में

आँख तो उठी फूल की तरफ
दिल उलझ गया हुस्न-ए-ख़ार में

तुजसे क्या कहें, कितने ग़म सहे
हमने बेवफ़ा तेरे प्यार में

फ़िक्र-ए-आशियाँ, हर ख़िज़ाँ में की
आशियाँ जला हर बहार में

किस तरह ये ग़म भूल जाएं हम
वो जुदा हुआ इस बहार में

दिन गुज़र गया ऐतबार में
रात कट गयी इंतज़ार में

वो मज़ा कहाँ वस्ल-ए-यार में
लुत्फ़ जो मिला इंतज़ार में



(ऐतबार = भरोसा, विश्वास)
(फ़िक्र-ए-आशियाँ = घोंसले (घर) की चिंता), (ख़िज़ाँ = पतझड़)
हुस्न-ए-ख़ार = काँटों की खूबसूरती)

(कायनात = सृष्टि, जगत), (इख़्तियार = अधिकार, काबू, स्वामित्व, प्रभुत्व)
(वस्ल-ए-यार = प्रिय से मिलन)

गुरुवार, 24 अक्टूबर 2024

महालक्ष्मी अष्टकं.../ इन्द्र कृत / पद्म पुराण / स्वर : सूर्य गायत्री

https://youtu.be/ucKk_AQvQA4  


नमस्तेस्तु महामाये श्री पीठे सुर पूजिते!
शंख चक्र गदा हस्ते महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

नमस्तेतु गरुड़ारुढ़े कोलासुर भयंकरी!
सर्वपाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

सर्वज्ञे सर्व वरदे सर्व दुष्ट भयंकरी!
सर्वदुख हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

सिद्धि बुद्धि प्रदे देवी भक्ति मुक्ति प्रदायनी!
मंत्र मुर्ते सदा देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

आद्यंतरहिते देवी आद्य शक्ति महेश्वरी!
योगजे योग सम्भूते महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

स्थूल सुक्ष्म महारौद्रे महाशक्ति महोदरे!
महापाप हरे देवी महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

पद्मासन स्थिते देवी परब्रह्म स्वरूपिणी!
परमेशी जगत माता महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

श्वेताम्भर धरे देवी नानालन्कार भुषिते!
जगत स्थिते जगंमाते महालक्ष्मी नमोस्तुते!!

महालक्ष्मी अष्टक स्तोत्रं य: पठेत भक्तिमान्नर:!
सर्वसिद्धिमवाप्नोती राज्यम् प्राप्नोति सर्वदा!!

एक कालम पठेनित्यम महापापविनाशनम!
द्विकालम य: पठेनित्यम धनधान्यम समन्वित:!!

त्रिकालम य: पठेनित्यम महाशत्रुविनाषम!
महालक्ष्मी भवेनित्यम प्रसंनाम वरदाम शुभाम!! 




बुधवार, 23 अक्टूबर 2024

सिसोद्यो रुठ्यो तो म्हारो कांई कर लेसी?.../ मीराबाई / गायन : अश्विनी भिडे देशपांडे

https://youtu.be/QCIa6n9pW3U 


मीरा का विवाह बारह वर्ष की उम्र में मेवाड़ के 
महाराणा संग्रामसिंहजी अर्थात् राणा सांगाजी 
के ज्येष्ठ पुत्र भोजराज के साथ हुआ। 
महाराणा सांगा और दिल्लीपति बादशहा बाबर 
इन दोनों के बीच जो जंग सन 1527 में 
‘खानवा की लडाई' के नामसे मशहूर हुई, 
उसमें राणा सांगा, उनके बेटे मीरा के पति 
भोजराज, मीरा के पिता रतनसिंह, सभी 
मारे गये और इस दुर्घटना के बाद से मीरा 
का बुरा वक्त शुरू हुआ। राणे भेजा विष 
का प्याला' इस उल्लेख में जिस 'राणा' का 
जिक्र है, वह है मीरा के देवर विक्रमादित्य 
जिन्होंने मीरा को 'बावरी' का नामाभिधान 
देकर, उसे ज़हर पिलाने के, या फिर फूलों 
के साथ जहरीला नाग भेजकर उसे खतम 
करने के षड्‌यंत्र रचे |

परंतु मीराबाई अपनी भक्ति के बलपर इन 
सभी खतरों से सहीसलामत निकल गई। 
मीरा ने कभी भी इन खतरों से जूझने के 
लिए अपने गिरिधर गोपाल ही सहायता 
नहीं माँगी। उनका भरोसा था - नामस्मरण 
के बल पर। सब संकटों का एकही उपाय वे 
जानती थीं।

आइए, आज जो पद हम सुनेंगे उसकी भाषा 
कुछ अलग है। जैसे लोकभाषा हो... और 
इसी कारण इस पद की संगीतरचना भी 
लोकसंगीत से नाता दर्शानेवाली। इस पद में 
मीराबाई सारे भगत गणोंको मानों यह सीख 
पढ़ा रही है कि सब कष्टों का एकही इलाज है 
ईश्वर का नामस्मरण! वे कहती हैं,

“सिसोद्यो रुठ्यो तो म्हारो कांई कर लेसी?”

और इनका जबाब है,

“म्हें तो गुण गोविंद का गास्यां हो माई ॥”
“म्हें तो गुण गोविंद का गास्यां”


बस, एक नामस्मरण से ही सभी भौतिक और 
लौकिक दुखों का नाश होगा, इसलिए, हरएक 
साँस के साथ नाम की माला जपनी चाहिए

सोमवार, 21 अक्टूबर 2024

हर हर हर महादेव महेश्वर.../ गायन : स्नीति मिश्रा

https://youtu.be/ik0zFmy-Dd8  


हर हर हर महादेव महेश्वर 
महाजोगी जोगेश्वर शंकर 
गिरिजापति परमेश्वर शुभकर 
हर हर हर महादेव महेश्वर 

जटाजूट पर शोभत गंगा 
नीलकंठ भूषित भुजंगा
उमा सहित षडनायक कार्तिक 
सुर नर वन्दित रुद्रगण सेवित 

हर हर हर महादेव महेश्वर

रविवार, 20 अक्टूबर 2024

भज गोविन्दम् .../ आदि शंकराचार्य / गायन : सिवस्री स्कन्द प्रसाद

https://youtu.be/2D06mgUI4jY 


भज गोविन्दं भज गोविन्दं,
गोविन्दं भज मूढ़मते।
संप्राप्ते सन्निहिते काले,
न हि न हि रक्षति डुकृञ् करणे॥१॥

हे मोह से ग्रसित बुद्धि वाले मित्र, गोविंद को भजो, गोविन्द का नाम लो, गोविन्द से प्रेम करो क्योंकि मृत्यु के समय व्याकरण के नियम याद रखने से आपकी रक्षा नहीं हो सकती है॥१॥

मूढ़ जहीहि धनागमतृष्णाम्,
कुरु सद्बुद्धिमं मनसि वितृष्णाम्।
यल्लभसे निजकर्मोपात्तम्,
वित्तं तेन विनोदय चित्तं॥२॥

हे मोहित बुद्धि! धन एकत्र करने के लोभ को त्यागो। अपने मन से इन समस्त कामनाओं का त्याग करो। सत्यता के पथ का अनुसरण करो, अपने परिश्रम से जो धन प्राप्त हो उससे ही अपने मन को प्रसन्न रखो॥२॥

नारीस्तनभरनाभीदेशम्,
दृष्ट्वा मागा मोहावेशम्।
एतन्मान्सवसादिविकारम्,
मनसि विचिन्तय वारं वारम्॥३॥

स्त्री शरीर पर मोहित होकर आसक्त मत हो। अपने मन में निरंतर स्मरण करो कि ये मांस-वसा आदि के विकार के अतिरिक्त कुछ और नहीं हैं॥३॥

नलिनीदलगतजलमतितरलम्, तद्वज्जीवितमतिशयचपलम्।
विद्धि व्याध्यभिमानग्रस्तं,
लोक शोकहतं च समस्तम्॥४॥

जीवन कमल-पत्र पर पड़ी हुई पानी की बूंदों के समान अनिश्चित एवं अल्प (क्षणभंगुर) है। यह समझ लो कि समस्त विश्व रोग, अहंकार और दु:ख में डूबा हुआ है॥४॥

यावद्वित्तोपार्जनसक्त:,
तावन्निजपरिवारो रक्तः।
पश्चाज्जीवति जर्जरदेहे,
वार्तां कोऽपि न पृच्छति गेहे॥५॥

जब तक व्यक्ति धनोपार्जन में समर्थ है, तब तक परिवार में सभी उसके प्रति स्नेह प्रदर्शित करते हैं परन्तु अशक्त हो जाने पर उसे सामान्य बातचीत में भी नहीं पूछा जाता है॥५॥

यावत्पवनो निवसति देहे,
तावत् पृच्छति कुशलं गेहे।
गतवति वायौ देहापाये,
भार्या बिभ्यति तस्मिन्काये॥६॥

जब तक शरीर में प्राण रहते हैं तब तक ही लोग कुशल पूछते हैं। शरीर से प्राण वायु के निकलते ही पत्नी भी उस शरीर से डरती है॥६॥

बालस्तावत् क्रीडासक्तः,
तरुणस्तावत् तरुणीसक्तः।
वृद्धस्तावच्चिन्तासक्तः,
परे ब्रह्मणि कोऽपि न सक्तः॥७॥

बचपन में खेल में रूचि होती है , युवावस्था में युवा स्त्री के प्रति आकर्षण होता है, वृद्धावस्था में चिंताओं से घिरे रहते हैं पर प्रभु से कोई प्रेम नहीं करता है॥७॥

का ते कांता कस्ते पुत्रः,
संसारोऽयमतीव विचित्रः।
कस्य त्वं वा कुत अयातः,
तत्त्वं चिन्तय तदिह भ्रातः॥८॥

कौन तुम्हारी पत्नी है, कौन तुम्हारा पुत्र है, ये संसार अत्यंत विचित्र है, तुम कौन हो, कहाँ से आये हो, बन्धु ! इस बात पर तो पहले विचार कर लो॥८॥

सत्संगत्वे निस्संगत्वं,
निस्संगत्वे निर्मोहत्वं।
निर्मोहत्वे निश्चलतत्त्वं
निश्चलतत्त्वे जीवन्मुक्तिः॥९॥

सत्संग से वैराग्य, वैराग्य से विवेक, विवेक से स्थिर तत्त्वज्ञान और तत्त्वज्ञान से मोक्ष की प्राप्ति होती है॥९॥

वयसि गते कः कामविकारः,
शुष्के नीरे कः कासारः।
क्षीणे वित्ते कः परिवारः,
ज्ञाते तत्त्वे कः संसारः॥१०॥

आयु बीत जाने के बाद काम भाव नहीं रहता, पानी सूख जाने पर तालाब नहीं रहता, धन चले जाने पर परिवार नहीं रहता और तत्त्व ज्ञान होने के बाद संसार नहीं रहता॥१०॥

मा कुरु धनजनयौवनगर्वं,
हरति निमेषात्कालः सर्वं।
मायामयमिदमखिलम् हित्वा,
ब्रह्मपदम् त्वं प्रविश विदित्वा॥११॥

धन, शक्ति और यौवन पर गर्व मत करो, समय क्षण भर में इनको नष्ट कर देता है| इस विश्व को माया से घिरा हुआ जान कर तुम ब्रह्म पद में प्रवेश करो॥११॥

दिनयामिन्यौ सायं प्रातः,
शिशिरवसन्तौ पुनरायातः।
कालः क्रीडति गच्छत्यायुस्तदपि
न मुन्च्त्याशावायुः॥१२॥

दिन और रात, शाम और सुबह, सर्दी और बसंत बार-बार आते-जाते रहते है काल की इस क्रीडा के साथ जीवन नष्ट होता रहता है पर इच्छाओ का अंत कभी नहींहोता है॥१२॥

द्वादशमंजरिकाभिरशेषः
कथितो वैयाकरणस्यैषः।
उपदेशोऽभूद्विद्यानिपुणैः, श्रीमच्छंकरभगवच्चरणैः॥१२अ॥

बारह गीतों का ये पुष्पहार, सर्वज्ञ प्रभुपाद श्री शंकराचार्य द्वारा एक वैयाकरण को प्रदान किया गया॥१२अ॥

काते कान्ता धन गतचिन्ता,
वातुल किं तव नास्ति नियन्ता।
त्रिजगति सज्जनसं गतिरैका,
भवति भवार्णवतरणे नौका॥१३॥

तुम्हें पत्नी और धन की इतनी चिंता क्यों है, क्या उनका कोई नियंत्रक नहीं है| तीनों लोकों में केवल सज्जनों का साथ ही इस भवसागर से पार जाने की नौका है॥१३॥

जटिलो मुण्डी लुञ्छितकेशः, काषायाम्बरबहुकृतवेषः।
पश्यन्नपि च न पश्यति मूढः,
उदरनिमित्तं बहुकृतवेषः॥१४॥

बड़ी जटाएं, केश रहित सिर, बिखरे बाल , काषाय (भगवा) वस्त्र और भांति भांति के वेश ये सब अपना पेट भरने के लिए ही धारण किये जाते हैं, अरे मोहित मनुष्य तुम इसको देख कर भी क्यों नहीं देख पाते हो॥१४॥

अङ्गं गलितं पलितं मुण्डं,
दशनविहीनं जतं तुण्डम्।
वृद्धो याति गृहीत्वा दण्डं,
तदपि न मुञ्चत्याशापिण्डम्॥१५॥

क्षीण अंगों, पके हुए बालों, दांतों से रहित मुख और हाथ में दंड लेकर चलने वाला वृद्ध भी आशा-पाश से बंधा रहता है॥१५॥

अग्रे वह्निः पृष्ठेभानुः,
रात्रौ चुबुकसमर्पितजानुः।
करतलभिक्षस्तरुतलवासः,
तदपि न मुञ्चत्याशापाशः॥१६॥

सूर्यास्त के बाद, रात्रि में आग जला कर और घुटनों में सर छिपाकर सर्दी बचाने वाला, हाथ में भिक्षा का अन्न खाने वाला, पेड़ के नीचे रहने वाला भी अपनी इच्छाओं के बंधन को छोड़ नहीं पाता है॥१६॥

कुरुते गङ्गासागरगमनं,
व्रतपरिपालनमथवा दानम्।
ज्ञानविहिनः सर्वमतेन,
मुक्तिं न भजति जन्मशतेन॥१७॥

किसी भी धर्म के अनुसार ज्ञान रहित रह कर गंगासागर जाने से, व्रत रखने से और दान देने से सौ जन्मों में भी मुक्ति नहीं प्राप्त हो सकती है॥१७॥

सुर मंदिर तरु मूल निवासः,
शय्या भूतल मजिनं वासः।
सर्व परिग्रह भोग त्यागः,
कस्य सुखं न करोति विरागः॥१८॥

देव मंदिर या पेड़ के नीचे निवास, पृथ्वी जैसी शय्या, अकेले ही रहने वाले, सभी संग्रहों और सुखों का त्याग करने वाले वैराग्य से किसको आनंद की प्राप्ति नहीं होगी॥१८॥

योगरतो वाभोगरतोवा,
सङ्गरतो वा सङ्गवीहिनः।
यस्य ब्रह्मणि रमते चित्तं,
नन्दति नन्दति नन्दत्येव॥१९॥

कोई योग में लगा हो या भोग में, संग में आसक्त हो या निसंग हो, पर जिसका मन ब्रह्म में लगा है वो ही आनंद करता है, आनंद ही करता है॥१९॥

भगवद् गीता किञ्चिदधीता,
गङ्गा जललव कणिकापीता।
सकृदपि येन मुरारि समर्चा,
क्रियते तस्य यमेन न चर्चा॥२०॥

जिन्होंने भगवदगीता का थोडा सा भी अध्ययन किया है, भक्ति रूपी गंगा जल का कण भर भी पिया है, भगवान कृष्ण की एक बार भी समुचित प्रकार से पूजा की है, यम के द्वारा उनकी चर्चा नहीं की जाती है॥२०॥

पुनरपि जननं पुनरपि मरणं,
पुनरपि जननी जठरे शयनम्।
इह संसारे बहुदुस्तारे,
कृपयाऽपारे पाहि मुरारे॥२१॥

बार-बार जन्म, बार-बार मृत्यु, बार-बार माँ के गर्भ में शयन, इस संसार से पार जा पाना बहुत कठिन है, हे कृष्ण कृपा करके मेरी इससे रक्षा करें॥२१॥

रथ्या चर्पट विरचित कन्थः,
पुण्यापुण्य विवर्जित पन्थः।
योगी योगनियोजित चित्तो,
रमते बालोन्मत्तवदेव॥२२॥

रथ के नीचे आने से फटे हुए कपडे पहनने वाले, पुण्य और पाप से रहित पथ पर चलने वाले, योग में अपने चित्त को लगाने वाले योगी, बालक के समान आनंद में रहते हैं॥२२॥

कस्त्वं कोऽहं कुत आयातः,
का मे जननी को मे तातः।
इति परिभावय सर्वमसारम्,
विश्वं त्यक्त्वा स्वप्न विचारम्॥२३॥

तुम कौन हो, मैं कौन हूँ, कहाँ से आया हूँ, मेरी माँ कौन है, मेरा पिता कौन है? सब प्रकार से इस विश्व को असार समझ कर इसको एक स्वप्न के समान त्याग दो॥२३॥

त्वयि मयि चान्यत्रैको विष्णुः,
व्यर्थं कुप्यसि मय्यसहिष्णुः।
भव समचित्तः सर्वत्र त्वं,
वाञ्छस्यचिराद्यदि विष्णुत्वम्॥२४॥

तुममें, मुझमें और अन्यत्र भी सर्वव्यापक विष्णु ही हैं, तुम व्यर्थ ही क्रोध करते हो, यदि तुम शाश्वत विष्णु पद को प्राप्त करना चाहते हो तो सर्वत्र समान चित्त वाले हो जाओ॥२४॥

शत्रौ मित्रे पुत्रे बन्धौ,
मा कुरु यत्नं विग्रहसन्धौ।
सर्वस्मिन्नपि पश्यात्मानं,
सर्वत्रोत्सृज भेदाज्ञानम्॥२५॥

शत्रु, मित्र, पुत्र, बन्धु-बांधवों से प्रेम और द्वेष मत करो, सबमें अपने आप को ही देखो, इस प्रकार सर्वत्र ही भेद रूपी अज्ञान को त्याग दो॥२५॥

कामं क्रोधं लोभं मोहं,
त्यक्त्वाऽत्मानं भावय कोऽहम्।
आत्मज्ञान विहीना मूढाः,
ते पच्यन्ते नरकनिगूढाः॥२६॥

काम, क्रोध, लोभ, मोह को छोड़ कर, स्वयं में स्थित होकर विचार करो कि मैं कौन हूँ, जो आत्म- ज्ञान से रहित मोहित व्यक्ति हैं वो बार-बार छिपे हुए इस संसार रूपी नरक में पड़ते हैं॥२६॥

गेयं गीता नाम सहस्रं,
ध्येयं श्रीपति रूपमजस्रम्।
नेयं सज्जन सङ्गे चित्तं,
देयं दीनजनाय च वित्तम्॥२७॥

भगवान विष्णु के सहस्त्र नामों को गाते हुए उनके सुन्दर रूप का अनवरत ध्यान करो, सज्जनों के संग में अपने मन को लगाओ और गरीबों की अपने धन से सेवा करो॥२७॥

सुखतः क्रियते रामाभोगः,
पश्चाद्धन्त शरीरे रोगः।
यद्यपि लोके मरणं शरणं,
तदपि न मुञ्चति पापाचरणम्॥२८॥

सुख के लिए लोग आनंद-भोग करते हैं जिसके बाद इस शरीर में रोग हो जाते हैं। यद्यपि इस पृथ्वी पर सबका मरण सुनिश्चित है फिर भी लोग पापमय आचरण को नहीं छोड़ते हैं॥२८॥

अर्थंमनर्थम् भावय नित्यं,
नास्ति ततः सुखलेशः सत्यम्।
पुत्रादपि धनभजाम् भीतिः,
सर्वत्रैषा विहिता रीतिः॥२९॥

धन अकल्याणकारी है और इससे जरा सा भी सुख नहीं मिल सकता है, ऐसा विचार प्रतिदिन करना चाहिए | धनवान व्यक्ति तो अपने पुत्रों से भी डरते हैं ऐसा सबको पता ही है॥२९॥

प्राणायामं प्रत्याहारं,
नित्यानित्य विवेकविचारम्।
जाप्यसमेत समाधिविधानं,
कुर्ववधानं महदवधानम्॥३०॥

प्राणायाम, उचित आहार, नित्य इस संसार की अनित्यता का विवेक पूर्वक विचार करो, प्रेम से प्रभु-नाम का जाप करते हुए समाधि में ध्यान दो, बहुत ध्यान दो॥३०॥

गुरुचरणाम्बुज निर्भर भक्तः, संसारादचिराद्भव मुक्तः।
सेन्द्रियमानस नियमादेवं,
द्रक्ष्यसि निज हृदयस्थं देवम्॥३१॥

गुरु के चरण कमलों का ही आश्रय मानने वाले भक्त बनकर सदैव के लिए इस संसार में आवागमन से मुक्त हो जाओ, इस प्रकार मन एवं इन्द्रियों का निग्रह कर अपने हृदय में विराजमान प्रभु के दर्शन करो॥३१॥

मूढः कश्चन वैयाकरणो,
डुकृञ्करणाध्ययन धुरिणः।
श्रीमच्छम्कर भगवच्छिष्यै,
बोधित आसिच्छोधितकरणः॥३२॥

इस प्रकार व्याकरण के नियमों को कंठस्थ करते हुए किसी मोहित वैयाकरण के माध्यम से बुद्धिमान श्री भगवान शंकर के शिष्य बोध प्राप्त करने के लिए प्रेरित किये गए॥३२॥

 भजगोविन्दं भजगोविन्दं,
गोविन्दं भजमूढमते।
नामस्मरणादन्यमुपायं,
नहि पश्यामो भवतरणे॥३३॥

गोविंद को भजो, गोविन्द का नाम लो, गोविन्द से प्रेम करो क्योंकि भगवान के नाम जप के अतिरिक्त इस भव-सागर से पार जाने का अन्य कोई मार्ग नहीं है॥३३॥


पायल में गीत हैं छम-छम के.../ क़तील शिफ़ाई / गायन : वहादत रमीज़

https://youtu.be/V3qKAinoSbo 


पाकिस्तानी फिल्म 'गुमनाम' (१९५४) में 
इक़बाल बानो का गाया गीत 

पायल मे गीत है छम छम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के

तू पिया से मिल कर आई है
बस आज से नींद परायी है
तू पिया से मिल कर आई है
बस आज से नींद परायी है
देखेगी सपने बालम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के

मैंने भी किया था प्यार कभी
मैंने भी किया था प्यार कभी
आई थी यही झनकार कभी
अब गीत मैं गाती हूँ गम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के

ये जीवन भर का रोग सखी
तोहे पगली कहेंगे लोग सखी
ये जीवन भर का रोग सखी
तोहे पगली कहेंगे लोग सखी

याद आएगे वादे बालम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के
तू लाख चले री गोरी थम थम के
पायल मे गीत है छम छम के

शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2024

ज़िन्दगी रोज़ तेरा दर्द जिया है मैंने.../ शायर : हसीब सोज़ / गायन : डा. अनिल शर्मा

https://youtu.be/L3e10EUoJCc

ज़िन्दगी रोज़ तेरा दर्द जिया है मैंने 
ज़ह्र तो कुछ भी नहीं है जो पिया है मैंने

तुम अगर भूल गए हो तो कोई बात नहीं
वर्ना दामन तो तुम्हारा भी सिया है मैंने

कोई खुद आ के रुका है तो रुका है वर्ना
जाने वालों को कहाँ हाथ दिया है मैंने

मुझसे इस बार कोई चूक नहीं होने की
कितना भारी है उसे तोल लिया है मैंने

कद्दे-आदम तेरी तस्वीर लगी है घर में
घर को तरक़ीब से आबाद किया है मैंने

मंगलवार, 15 अक्टूबर 2024

इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया.../ सुदर्शन फ़ाकिर / स्वर : प्राची गिरीश



इश्क़ में ग़ैरत-ए-जज़्बात ने रोने न दिया
वर्ना क्या बात थी किस बात ने रोने न दिया

आप कहते थे कि रोने से न बदलेंगे नसीब
उम्र भर आप की इस बात ने रोने न दिया

रोने वालों से कहो उन का भी रोना रो लें
जिन को मजबूरी-ए-हालात ने रोने न दिया

सोमवार, 14 अक्टूबर 2024

संगीत साम्राज्य संचारिणी.../ सरस्वती स्तुति / स्वर : श्वेता मोहन

https://youtu.be/mgaQSPFdGHA 

This is a krithi on goddess Saraswati of Sringeri. She is said to wander in the kingdom of music and the beautiful town of Sringeri. She is known to have lived in the lands of pandyas in Kerala and she is well praised as the one who resides in the center of sri chakra, a mystical geometric pattern of interlocking triangles where the center is known for creation and force. She certainly is in the heart of Adi SankarAcharya of KAlaDi and she has the full trust of lord Siva, the lords of the eight directions and Brahma. She is living in the form of all the musical notes, shines with beautiful hibiscus flowers and other jewels and dwells in the melodious tune of Mohanakalyani.

taaLam: aadi
Composer: Bangalore RAmamUrti
Language: Sanskrit


पल्लवी

संगीत साम्राज्य संचारिणी
श्रंगार श्रंगेरीपुर वासिनी

अनुपल्लवी


उन्नत पांड्या केरल वासिनी
सन्नुत श्रीचक्र मध्य निवासिनी
कलादी शंकर हृदय निवासिनी
कालदिक्पालक ब्रह्म विश्वासिनी


चरणं


गांधार पंचम धैवत रूपिणी
निषाद मध्यम सप्त स्वरूपिणी
मन्दार कुसुम मणिमय तेजो माधुर्य 
मोहनकल्याणी स्वरूपिणी


Meaning :

By Aparna from Neccheli (original article here, reproduced with permission)

Carnatic Compositions - The Essence and Embodiment
-Aparna Munukutla Gunupudi

sangIta sAmrAjya - The kingdom of music
sancAriNi - wanders in
sringAra - beautiful
sringEri pura - town of Sringeri
vAsini - resides in

unnata - high
pAnDya - pandya land
kEraLa - the state of Kerala
vAsini - resident
sannuta - well praised
srI chakra Madhya - in the center of sri chakra
nivAsini - resides in
kAlaDi - the town of KAladi (birthplace of Adi SankarAcharya)
sankara hrudaya - in the heart of Sankara
nivAsini - lives in
kAla - the lord Sankara, the time keeper
dikpAlaka - the lords of the eight directions
brahma - the lord Brahma
visvAsini - trusts you

gAndhAra - musical note gandhara
panchama - musical note panchama
dhaivata - musical note dhaivata
rUpiNi - in the form
niSAda - Musical note nishada
Madhyama -musical note madhyama
sapta swara rUpiNi - took the form of the seven musical notes
mandAra kusuma - the flower hibiscus
maNimaya - jeweled in abundance
tEjO - shining
mAdhurya - melodeous
mOhanakalyANi - mohana Kalyani
svarUpiNi - dwells

आरति बॆळगिरे अष्टरूपिणिगॆ.../ रघुलीला स्कूल ऑफ़ म्यूजिक प्रस्तुति

https://youtu.be/NJGX5799d_4  


आरति बॆळगिरे अष्टरूपिणिगॆ 
इष्टदायिनिगॆ कष्ट कळॆव तायि आदिशक्तिगॆ ।।

नवरात्रि वेळॆयल्लि नवविधदि पूजिसुवल्लि 
करुनाड पॊरॆव तायि भुवनेश्वरिगॆ ।।

महिषन संहरिसिद चामुंडिगॆ 
मलॆनाड हॊरनाड अन्नपूर्णॆगॆ 
शृंगेरियल्लि मॆरॆव शारदांबॆगॆ 
शिरसि सिरिदेवि मारिकांबॆगॆ ।।

कॊल्लूर महामातॆ मूकांबिकॆ निनगॆ 
विष्णुविन प्रियवनितॆ श्रीलक्ष्मिये निनगॆ 
बादामि बनमातॆ बनशंकरि निनगॆ 
कटीलु क्षेत्रद दुर्गापरमेश्वरिगॆ ।।


कन्नड़ लिपि में 

ಆರತಿ ಬೆಳಗಿರೇ ಅಷ್ಟರೂಪಿಣಿಗೆ
ಇಷ್ಟದಾಯಿನಿಗೆ ಕಷ್ಟ ಕಳೆವ ತಾಯಿ ಆದಿಶಕ್ತಿಗೆ ||

ನವರಾತ್ರಿ ವೇಳೆಯಲ್ಲಿ ನವವಿಧದಿ ಪೂಜಿಸುವಲ್ಲಿ
ಕರುನಾಡ ಪೊರೆವ ತಾಯಿ ಭುವನೇಶ್ವರಿಗೆ ||

ಮಹಿಷನ ಸಂಹರಿಸಿದ ಚಾಮುಂಡಿಗೆ
ಮಲೆನಾಡ ಹೊರನಾಡ ಅನ್ನಪೂರ್ಣೆಗೆ
ಶೃಂಗೇರಿಯಲ್ಲಿ ಮೆರೆವ ಶಾರದಾಂಬೆಗೆ
ಶಿರಸಿ ಸಿರಿದೇವಿ ಮಾರಿಕಾಂಬೆಗೆ ||

ಕೊಲ್ಲೂರ ಮಹಾಮಾತೆ ಮೂಕಾಂಬಿಕೆ ನಿನಗೆ
ವಿಷ್ಣುವಿನ ಪ್ರಿಯವನಿತೆ ಶ್ರೀಲಕ್ಷ್ಮಿಯೇ ನಿನಗೆ
ಬಾದಾಮಿ ಬನಮಾತೆ ಬನಶಂಕರಿ ನಿನಗೆ
ಕಟೀಲು ಕ್ಷೇತ್ರದ ದುರ್ಗಾಪರಮೇಶ್ವರಿಗೆ ||

गूगल अनुवाद 

प्रातःकाल की आरती अष्टरूपिणी 
इष्टदायी माँ आदिशक्ति की ।।

नवरात्रि में नवविधाधि पूजित 
करुणादा पोरेवा माँ भुबनेश्वरि की ।।

चामुंडी की जिसने महिष को मारा
पर्वतों के पार अन्नपूर्णा तक 
श्रृंगेरी में मेरेवा शरदम्बे की 
शिरासी सिरीदेवी से मरिकंबे तक ।।

आपकी कोल्लूर महामथे मूकाम्बिके
विष्णु प्रिया श्री लक्ष्मी आपकी आरती  
आपकी बादामी बनामथे बनशंकरी
कटिलु क्षेत्र की दुर्गा परमेश्वरि की आरती ।।

शनिवार, 12 अक्टूबर 2024

तंदाना - उतनल्ली मारम्मा कन्नड़ लोकगीत / गायन : शुभा राघवेन्द्र

https://youtu.be/56wDYbCi7Pw  


तंदाना तानाना तंदनान तानाना
तंदन्न तंदन तान
तंदनान तानाना आ

निन्न भावनाद नंजुंडेश्वरनु
होगि मूरु तिंगळाय्तल्लव्वा
अवनू होदागिनिंद नन्न जनुमक्कॆ अन्न नीरु निद्दॆ ऒंदू सेरिल्ल
नॆत्ति म्यालॆ नॆरॆ बंदंता मुदि नन्न सवतिगॆ ऒलिकॊंडु कुळितानल्लव्वा
तंदानाना तानाना

हाव्नाद्रू कच्चबारदा
अव्न्गॆ चेळाद्रू चुच्चबारदा
हॊट्टीगॆ नोव् बंदू कट्टीगॆ हिडियबारदा
नाकारु ज्वर बंदु नरळाडि सायबारदा
कळ्ळा अव्न् साया
कूडिये बरलिल्ल तंग्यव्वा…
तंदानाना तानाना

तंगि उत्नळ्ळि मारि
नंजन गूडिगॆ होगि
भावुन्सॆ करॆदू बारे
भाव नंजुंडेशना

निस्सात्रि जामवंतॆ
मुळ्ळूरु गुड्डद मेलॆ
मुळ्ळूरु गुड्डियंतॆ कूत्कॊंडु
याव रीति अती प्रीतियिंदा तन्न भावनन्नु करॆयुत्ताळॆंदरॆ

भाव मातन्नाडय्या शंभू
मातिगॆ मरुळादॆ
प्रीतियुळ्ळरस मातन्नाडो
ऎद्दु बीदिगॆ बारो
मुद्दुळ मुखवा तोरो
चंदकॆ मातन्नाडो
अंदकॆ बीदिगॆ बारो

स्वामी चंद्रसेकर नंजुंडेश
मनस्सिल्लवय्या निन्न मडदि म्यागॆ
मनस्सिल्लवय्या निन्न मडदि म्यागॆ

नडुरात्रि नंजुंडेश्वरनन्नु उत्नळ्ळि मारम्मनवरु
कूगोदु मूरु मातु कूगि करॆयोदु मूरु मातु करॆदु
हिंतिरुगि बरुवळे रंभे उत्नळ्ळी मारि
हिंतिरुगि बरुवळे रंभे उत्नळ्ळी मारि

तंदाना तानाना तंदनान तानाना
तंदन्न तंदन तान तंदनान तानाना आ

Song in English-Kannada

Utnalli Māramma songಉತ್ನಳ್ಳಿ ಮಾರಮ್ಮನ ಹಾಡು
Tandānā tānānā tandanāna tānānā
Tandanna tandana tāna
tandanāna tānānā ā
ತಂದಾನಾ ತಾನಾನಾ ತಂದನಾನ ತಾನಾನಾ
ತಂದನ್ನ ತಂದನ ತಾನ
ತಂದನಾನ ತಾನಾನಾ ಆ
Hear Hear My Child
Utnalli Mārammā
Your brother-in-law NanjunDēshvara
Has gone for three months now
Since his departure My life is void of rice, water and sleep
He is in love and camped with his other old gray-haired wife
tandanāna tānānā
ಕೇಳು ಕೇಳು ನನ್ನ ಕಂದ
ಉತ್ನಳ್ಳಿ ಮಾರಮ್ಮಾ
ನಿನ್ನ ಭಾವನಾದ ನಂಜುಂಡೇಶ್ವರನು
ಹೋಗಿ ಮೂರು ತಿಂಗಳಾಯ್ತಲ್ಲವ್ವಾ
ಅವನೂ ಹೋದಾಗಿನಿಂದ ನನ್ನ ಜನುಮಕ್ಕೆ ಅನ್ನ ನೀರು ನಿದ್ದೆ ಒಂದೂ ಸೇರಿಲ್ಲ
ನೆತ್ತಿ ಮ್ಯಾಲೆ ನೆರೆ ಬಂದಂತಾ ಮುದಿ ನನ್ನ ಸವತಿಗೆ ಒಲಿಕೊಂಡು ಕುಳಿತಾನಲ್ಲವ್ವಾ
ತಂದಾನಾನಾ ತಾನಾನಾ
Why doesn’t snake bit him
Why doesn’t scorpion sting him
Why doesn’t he get stomach ache and get bed-ridden
Why doesn’t he awfully die from various fevers
Let that thief die
My young sister he did not come to meet
tandanāna tānānā
ಹಾವ್ನಾದ್ರೂ ಕಚ್ಚಬಾರದಾ
ಅವ್ನ್ಗೆ ಚೇಳಾದ್ರೂ ಚುಚ್ಚಬಾರದಾ
ಹೊಟ್ಟೀಗೆ ನೋವ್ ಬಂದೂ ಕಟ್ಟೀಗೆ ಹಿಡಿಯಬಾರದಾ
ನಾಕಾರು ಜ್ವರ ಬಂದು ನರಳಾಡಿ ಸಾಯಬಾರದಾ
ಕಳ್ಳಾ ಅವ್ನ್ ಸಾಯಾ
ಕೂಡಿಯೇ ಬರಲಿಲ್ಲ ತಂಗ್ಯವ್ವಾ…
ತಂದಾನಾನಾ ತಾನಾನಾ
young sister Utnalli Māri
go to Nanjana gooDu
call your brother-in-law
brother-in-law NanjunDēsha
ತಂಗಿ ಉತ್ನಳ್ಳಿ ಮಾರಿ
ನಂಜನ ಗೂಡಿಗೆ ಹೋಗಿ
ಭಾವುನ್ಸೆ ಕರೆದೂ ಬಾರೇ
ಭಾವ ನಂಜುಂಡೇಶನಾ
As wished by the elder,
the younger sister Māramma
instantly sets out in her chariot
It’s an insipid dark night
The time when stone and water melt
The hour of the deep dry night
On the mountain of muLLooru
Sitting like the mountain of muLLooru
She very lovingly calls out for her brother-in-law in this way
ಅಕ್ಕಾ ಹೇಳಿದ ಮಾತ
ಚಿಕ್ಕ ತಂಗಿಯು ಕೇಳಿ
ಜಕ್ಕಾನೆ ತೇಜಿಯನೇರಿ ಹೊರಟಾಳು ಮಾರಮ್ಮಾ
ಸಪ್ಪಟ್ಟು ಸರ್ರಾತ್ರಿಯಂತೆ
ಕಲ್ಲು ನೀರು ಕರಗೋ ವ್ಯಾಳೆಯಂತೆ
ನಿಸ್ಸಾತ್ರಿ ಜಾಮವಂತೆ
ಮುಳ್ಳೂರು ಗುಡ್ಡದ ಮೇಲೆ
ಮುಳ್ಳೂರು ಗುಡ್ಡಿಯಂತೆ ಕೂತ್ಕೊಂಡು
ಯಾವ ರೀತಿ ಅತೀ ಪ್ರೀತಿಯಿಂದಾ ತನ್ನ ಭಾವನನ್ನು ಕರೆಯುತ್ತಾಳೆಂದರೆ
Brother-in-law, speak respected Shambhoo
You got deceived by words
Speak Oh King full of love
Get up and come to the street
Show your darling face
Speak for goodness’ sake
Come dazzling on to the street
ಭಾವ ಮಾತನ್ನಾಡಯ್ಯಾ ಶಂಭೂ
ಮಾತಿಗೆ ಮರುಳಾದೆ
ಪ್ರೀತಿಯುಳ್ಳರಸ ಮಾತನ್ನಾಡೋ
ಎದ್ದು ಬೀದಿಗೆ ಬಾರೋ
ಮುದ್ದುಳ ಮುಖವಾ ತೋರೋ
ಚಂದಕೆ ಮಾತನ್ನಾಡೋ
ಅಂದಕೆ ಬೀದಿಗೆ ಬಾರೋ
Swamy Chandrasēkara nanjunDēsha
You don’t love your wife
You don’t love your wife
ಸ್ವಾಮೀ ಚಂದ್ರಸೇಕರ ನಂಜುಂಡೇಶ
ಮನಸ್ಸಿಲ್ಲವಯ್ಯಾ ನಿನ್ನ ಮಡದಿ ಮ್ಯಾಗೆ
ಮನಸ್ಸಿಲ್ಲವಯ್ಯಾ ನಿನ್ನ ಮಡದಿ ಮ್ಯಾಗೆ
Thus, in the midnight Utnalli Māramma addresses nanjunDēshvara
Invocates him using three words
Invites him using three words
And she returns Rambhe Utnalli Māri
And she returns Rambhe Utnalli Māri
ನಡುರಾತ್ರಿ ನಂಜುಂಡೇಶ್ವರನನ್ನು ಉತ್ನಳ್ಳಿ ಮಾರಮ್ಮನವರು
ಕೂಗೋದು ಮೂರು ಮಾತು ಕೂಗಿ ಕರೆಯೋದು ಮೂರು ಮಾತು ಕರೆದು
ಹಿಂತಿರುಗಿ ಬರುವಳೇ ರಂಭೇ ಉತ್ನಳ್ಳೀ ಮಾರಿ
ಹಿಂತಿರುಗಿ ಬರುವಳೇ ರಂಭೇ ಉತ್ನಳ್ಳೀ ಮಾರಿ
Tandānā tānānā tandanāna tānānā
Tandanna tandana tāna tandanāna
tānānā ā
ತಂದಾನಾ ತಾನಾನಾ ತಂದನಾನ ತಾನಾನಾ
ತಂದನ್ನ ತಂದನ ತಾನ ತಂದನಾನ ತಾನಾನಾ ಆ


Commentary of the folksong

Background

According to Wikipedia, the popular legend is that Mysore (Mahishooru) gets its name from Mahishāsuramardini, a manifestation of Goddess Durga (ChāmunDēshwari). The regional tradition states that The Buffalo demon Mahishāsura had terrified the local population. It is believed that Goddess ChāmunDēshwari killed Mahishāsura on top of the ChāmunDi Hills. The spot was constructed as the ChāmunDēshwari Temple in Mysuru, and an event is annually celebrated at Navaratri and Mysuru Dasara. The British Era in India saw the name of “Mahishooru” change to “Mysore” and later Kannadized into “Mysooru”

The temple of the city’s guardian deity, ChāmunDēshwari, has a giant statue of Mahishāsura on the hill facing the city. The earliest mention of Mysore in recorded history may be traced to 245 B.C., i.e., to the period of Ashoka when on the conclusion of the third Buddhist convocation, a team was dispatched to Mahisha Mandala.

Uttanahalli is about five kilometres from Mysore on the highway to Nanjanagūd. The Jwālamukhi Tripurasundari temple is situated on a hillock in the middle of the village square. The temple and the village are located on the base of the ChāmunDi Hill in Mysore, 3 kms from the ChāmunDēshwari temple atop the hill.

Colloquially known as Māramma/Uttanahalli Māramma, Jwālamukhi Tripurasundari is believed to be ChāmunDēshwari.’s sister.  

When ChāmunDi was fighting with Mahishāsura, also called as Rakta Beejāsura, Asuras sprout wherever his blood touched the ground. During that time, Uttanahalli Māramma is born out of the sweat of ChāmunDi. She asks ChāmunDi to concentrate on fighting the Asuras and assures her that she will ensure not a drop of Asura blood will fall into the ground. She draws out her long tongue like a carpet and drinks all the blood that falls out of Mahisha thereby successfully ensuring that ChāmunDi can kill Mahisha.

Place

This story takes place from ChāmunDi hills to Nanjanagūd including Uttanahalli and MuLLooru/MuLLūr (~co-ordinates 12°08’05.3″N 76°43’07.0″E) on the riverbank of Kabini close to today’s HoralavaaDi village. Note that in oral tradition of the song, MuLLooru is sometimes rendered as maLLooru/MaraLooru, which is not apt. As the crow flies, as per map of Mysore in Google, the distance between ChāmunDi temple atop (1)and Uttanahalli temple (2) is ~2.5 kms in the South-East direction. Similar distance between Uttanahalli temple (2) and MuLLooru (3) is ~17 kms due south. Nanjanagūd Nanjundeshwara temple (4) is 3.3 kms, almost east of MuLLooru (3). The meaning of Uttana is a place or region which is neither too far nor too close; (literally, in between those can be referred to with ‘there’ and ‘here’). Uttanahalli is a place in between Nanjanagūd – there and ChāmunDi hill.



शुक्रवार, 11 अक्टूबर 2024

जगजननी जय ! जय !!.../ स्वर : कौशिकी चक्रवर्ती

 https://youtu.be/NkJbMdh8-fY

जगजननी जय! जय!!
माँ! जगजननी जय! जय!!
भयहारिणि, भवतारिणि,
माँ भवभामिनि जय! जय ॥
जगजननी जय जय..॥


तू ही सत-चित-सुखमय,
शुद्ध ब्रह्मरूपा ।
सत्य सनातन सुन्दर,
पर-शिव सुर-भूपा ॥
जगजननी जय जय..॥


आदि अनादि अनामय,
अविचल अविनाशी ।
अमल अनन्त अगोचर,
अज आनँदराशी ॥
जगजननी जय जय..॥

अविकारी, अघहारी,
अकल, कलाधारी ।
कर्त्ता विधि, भर्त्ता हरि,
हर सँहारकारी ॥
जगजननी जय जय..॥

तू विधिवधू, रमा,
तू उमा, महामाया ।
मूल प्रकृति विद्या तू,
तू जननी, जाया ॥
जगजननी जय जय..॥

राम, कृष्ण तू, सीता,
व्रजरानी राधा ।
तू वांछाकल्पद्रुम,
हारिणि सब बाधा ॥
जगजननी जय जय..॥

दश विद्या, नव दुर्गा,
नानाशस्त्रकरा ।
अष्टमातृका, योगिनि,
नव नव रूप धरा ॥
जगजननी जय जय..॥

तू परधामनिवासिनि,
महाविलासिनि तू ।
तू ही श्मशानविहारिणि,
ताण्डवलासिनि तू ॥
जगजननी जय जय..॥

सुर-मुनि-मोहिनि सौम्या,
तू शोभाऽऽधारा ।
विवसन विकट-सरुपा,
प्रलयमयी धारा ॥
जगजननी जय जय..॥

तू ही स्नेह-सुधामयि,
तू अति गरलमना ।
रत्‍‌नविभूषित तू ही,
तू ही अस्थि-तना ॥
जगजननी जय जय..॥

मूलाधारनिवासिनि,
इह-पर-सिद्धिप्रदे ।
कालातीता काली,
कमला तू वरदे ॥
जगजननी जय जय..॥

शक्ति शक्तिधर तू ही,
नित्य अभेदमयी ।
भेदप्रदर्शिनि वाणी,
विमले! वेदत्रयी ॥
जगजननी जय जय..॥

हम अति दीन दुखी माँ!,
विपत-जाल घेरे ।
हैं कपूत अति कपटी,
पर बालक तेरे ॥
जगजननी जय जय..॥

निज स्वभाववश जननी!,
दयादृष्टि कीजै ।
करुणा कर करुणामयि!
चरण-शरण दीजै ॥
जगजननी जय जय..॥

जगजननी जय! जय!!
माँ! जगजननी जय! जय!!
भयहारिणि, भवतारिणि,
माँ भवभामिनि जय! जय ॥
जगजननी जय जय..॥

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024

जय-जय भैरवि असुर भयाउनि.../ महाकवि विद्यापति / प्रस्तुति : कवि कुमार विश्वास

https://youtu.be/VxftS1AzkjA  


जय-जय भै‍रवि असुर भयाउनि व्याख्या सहित 
पशुपति भामिनी माया
सहज सुमति वर दियउ गोसाउनि
अनुगति गति तुअ पाया

वासर रैनि सबासन शोभित
चरण चन्‍द्रमणि चूड़ा
कतओक दैत्‍य मारि मुख मेलल
कतओ उगिलि कएल कूड़ा

सामर बरन नयन अनुरंजित
जलद जोग फुलकोका
कट-कट विकट ओठ पुट पांडरि
लिधुर फेन उठ फोंका

घन-घन-घनय घुंघरू कत बाजय
हन-हन कर तुअ काता
विद्यापति कवि तुअ पद सेवक
पुत्र बिसरू जनि माता

‘जय-जय भैरवि असुर भयाउनि’ कविता का सारांश...

‘जय जय भैरवि असुर भयाउनि’ कविता मैथिल महाकवि 
‘विद्यापति’ द्वारा रचित है। इस कविता के माध्यम से कवि ने 
माँ जगदंबा के विभिन्न रूपों का गुणगान किया है। वह इस 
कविता के माध्यम माँ जगदंबा की वंदना करते हुए कहते हैं 
कि हे माँ! असुरों के लिए तो आप भयानक और काल का 
रूप हैं, परंतु अपने पति शिव की प्रेयसी हैं यानी आप जहाँ 
अत्याचारियों के लिए आप काल के समान है तो वही प्रेम और 
दया की मूर्ति भी हैं। जहाँ आपका एक पैर दिन-रात शवों के 
ऊपर रहता है, वहीं दूसरी तरफ आपके माथे पर चंदन का 
मंगल टीका भी सुशोभित है, जो मंगल का प्रतीक है।
हे माँ भगवती! आपके विभिन्न रूपों का इतना अच्छा वर्णन 
शायद ही कहीं मिले। जहाँ आपका एक रूप सौम्य है, तो 
दूसरा रूप विकराल। आपके कमर पर घुंधरू की घन-घन 
प्रतिध्वनि बज रही है, तो हाथ में खड़ग है। इस तरह आप के 
अनेक रूप हैं। आप वीरता और शौर्य का प्रतीक है, तो प्रेम 
और दया की साक्षात मूर्ति का भी प्रतीक हैं।
इस कविता में कवि ने  माता का गुणगान वीर रस और श्रंगार 
रस दोनों रसों में किया है। 
बिहार के मिथिला क्षेत्र में इस भजन का बहुत महत्व है। क्षेत्र के 
हर शुभ अनुष्ठान पर यह गीत एक तरह से अनिवार्य माना जाता है। 
कवि डॉ कुमार विश्वास ने भी इस भजन को अपने स्वर में गाया है।  

मंगलवार, 8 अक्टूबर 2024

मा गो चिन्मयी रूप धरे आय.../ गीत : काज़ी नज़रुल इस्लाम / परिकल्पना : सौनक चट्टोपाध्याय

https://youtu.be/P9MTgl6wmrs  


मागो चिन्मयी रूप धरे आय।
मृन्मयी रूप तोर पूजि श्री दुर्गा ताइ 
दुर्गति काटिल ना हाय॥
    
ये महा-शक्तिर हय ना बिसर्जन
    अन्तरे बाहिरे प्रकाश यार अनुखन
मन्दिरे दुर्गे रहे ना ये बन्दी
 सेइ दुर्गारे देश चाय॥

आमादेर द्बिभुजे दशभुजा-शक्ति
 दे परम ब्रह्ममयी।
शक्तिपूजार फल भक्ति कि पाब शुधु 
हब ना कि बिश्बजयी ?
एइ पूजा-बिलास संहार कर 

यदि, पुत्र शक्ति नाहि पाय॥

মাগো চিন্ময়ী রূপ ধরে আয়

মৃন্ময়ী রূপ তোর পূজি শ্রী দুর্গা তাই 
দুর্গতি কাটিল না হায়॥
    
যে মহা-শক্তির হয় না বিসর্জন
    অন্তরে বাহিরে প্রকাশ যার অনুখন
মন্দিরে দুর্গে রহে না যে বন্দী
 সেই দুর্গারে দেশ চায়॥

আমাদের দ্বিভুজে দশভুজা-শক্তি
 দে পরম ব্রহ্মময়ী।
শক্তিপূজার ফল ভক্তি কি পাব শুধু 
হব না কি বিশ্বজয়ী ?
এই পূজা-বিলাস সংহার র 

যদি, পুত্র শক্তি নাহি পায়॥