मैं ब्रजवासिन की बलिहारी।
जिनके संग सदा है क्रीडत श्रीगोवर्धनधारी ॥
किनहू के घर माखनचोरत किनहूं के संग दानी।
किनहू के संग धेनु चरावत हरि की अकथ कहानी॥
किनहूं के संग यमुना के तट बंसी टेर सुनावत।
सूरदास बलि बलि चरनन की इह सुख मोहिं नित भावत ॥
अर्थ :
श्री_सूरदास जी कहते हैं कि मैं ब्रज वासियों की बलिहारी जाता हूँ
जिनके संग श्री गोवर्धनधारी कृष्ण नित्य ही क्रीड़ा करते हैं।
किसी बृजवासी के संग वह माखन चोरी की लीला करते हैं और
किसी बृजवासी के संग वह दानलीला करते हैं। किसी के संग वह
गोचारण लीला करते हैं, हरि की कथा अनंत है। किसी के संग वह
वृन्दावन में यमुना किनारे बंशीवट पर वेणु बजाते हैं। श्री सूरदास जी
कहते हैं कि वह इन कृष्ण चरणों पर बलिहारी जाते हैं, एवं ब्रज का
यह अद्भुत सुख (रस) उन्हें नित्य प्रिय लगता है।
जिनके संग श्री गोवर्धनधारी कृष्ण नित्य ही क्रीड़ा करते हैं।
किसी बृजवासी के संग वह माखन चोरी की लीला करते हैं और
किसी बृजवासी के संग वह दानलीला करते हैं। किसी के संग वह
गोचारण लीला करते हैं, हरि की कथा अनंत है। किसी के संग वह
वृन्दावन में यमुना किनारे बंशीवट पर वेणु बजाते हैं। श्री सूरदास जी
कहते हैं कि वह इन कृष्ण चरणों पर बलिहारी जाते हैं, एवं ब्रज का
यह अद्भुत सुख (रस) उन्हें नित्य प्रिय लगता है।
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