गुरुवार, 30 मार्च 2023

राम तांडव स्तोत्र / श्रीराघवेंद्रचरितम् / श्रीभागवतानंद गुरु विरचित / स्वर :डॉ. विजया गाडबोले

श्री राम नवमी पर विशेष  
https://youtu.be/-suuBc2TCBM
His Holiness Nigrahacharya 
Shri Bhagavatananda Guru, 
is one of the great personalities existing today. 
He is a living example of child prodigy. 
He is a renowned religious preacher, research 
scholar, philanthropist and sociopolitical orator. 
He is famous for having a great command over 
the Sanatan Vedic Scriptures. Shri Bhagavatananda 
Guru was born on 20th March, 1997 AD at Bokaro 
Steel City district of Jharkhand. 
He is the eldest son of famous social activist 
Acharya Shri Shankar Das Guru and Gyanmati Devi. 
He has authored many books in Sanskrit, Hindi and 
English on various topics, appreciated by various 
universities and scholars worldwide. 
He is the supreme acharya of nearly extinct 
Nigraha Sampradaya.  

Dr. Vijaya Godbole (Deo) is a Hindustani classical
music (vocal) artist, based in Dehradun (Uttarakhand).
A gold medalist, Dr. Godbole has a masters degree in
Hindustani music, and a Doctorate from Benaras Hindu
University (BHU), Varanasi. Dr. Godbole has a teaching
experience of 26 years in Hindustani vocal music. She is
a graded (B-High) artist at the All India Radio and keeps
performing at various concerts throughout India. She has
also been blessed and honoured by Kanchi Kamakoti Peeth
Shankaracharya “Swami Shankar Vijayendra Saraswati
Maharaj“ for recital of Stotras of the Adi Shankaracharya in
March 2019.

राम तांडव स्तोत्र संस्कृत के राम कथानक पर आधारित महाकाव्य
श्रीराघवेंद्रचरितम् से उद्धृत है। इसमें प्रमाणिका छंद के बारह श्लोकों
में राम रावण युद्ध एवं इंद्रादि देवताओं के द्वारा की गई श्रीराम स्तुति
का वर्णन है।
तपस्या में लीन अवस्था में श्रीभागवतानंद गुरु को स्वप्न में श्रीरामचंद्र
जी ने शक्तिपात के माध्यम से कुण्डलिनी शक्ति का उद्बोधन कराया
एवं बाद में उन्हें भगवान शिव ने श्रीरामकथा पर आधारित ग्रन्थ
श्रीराघवेंद्रचरितम् लिखने की प्रेरणा दी। इस स्तोत्र की शैली और भाव
वीर रस एवं युद्ध की विभीषिका से भरे हुए हैं।
कहा जाता है कि इतिहास में युगों युगों तक सबसे भीषण युध्द भगवान
श्री राम और रावण का ही हुआ था।ताण्डव का एक अर्थ उद्धत उग्र
संहारात्मक क्रिया भी है। रामायण के अनुसार राम रावण युद्ध के समान
घोर तथा उग्र युद्ध कोई नहीं है। 
इसीलिये यह भी कहा जाता है "रामरावणयोर्युद्धं रामरावणयोरिव" 
(राम रावण केयुद्ध की तुलना सिर्फ राम- रावण युद्ध से ही हो सकती है)


इंद्रादयो ऊचु: (इंद्र आदि ने कहा)
जटाकटाहयुक्तमुण्डप्रान्तविस्तृतम् हरे:
अपांगक्रुद्धदर्शनोपहार चूर्णकुन्तलः।
प्रचण्डवेगकारणेन पिंजलः प्रतिग्रहः
स क्रुद्धतांडवस्वरूपधृग्विराजते हरि: ॥१॥
जटासमूह से युक्त विशालमस्तक वाले श्रीहरि के क्रोधित हुए 
लाल आंखों की तिरछी नज़र से, विशाल जटाओं के बिखर जाने 
से रौद्र मुखाकृति एवं प्रचण्ड वेग से आक्रमण करने के कारण 
विचलित होती, इधर उधर भागती शत्रुसेना के मध्य तांडव 
(उद्धत विनाशक क्रियाकलाप) स्वरूप धारी भगवान् हरि शोभित 
हो रहे हैं।
अथेह व्यूहपार्ष्णिप्राग्वरूथिनी निषंगिनः
तथांजनेयऋक्षभूपसौरबालिनन्दना:।
प्रचण्डदानवानलं समुद्रतुल्यनाशका:
नमोऽस्तुते सुरारिचक्रभक्षकाय मृत्यवे ॥२॥
अब वो देखो !! महान् धनुष एवं तरकश धारण वाले प्रभु की 
अग्रेगामिनी, एवं पार्श्वरक्षिणी महान् सेना जिसमें हनुमान्, जाम्बवन्त, 
सुग्रीव, अंगद आदि वीर हैं, प्रचण्ड दानवसेना रूपी अग्नि के शमन 
के लिए समुद्रतुल्य जलराशि के समान नाशक हैं, ऐसे मृत्युरूपी 
दैत्यसेना के भक्षक के लिए मेरा प्रणाम है।
कलेवरे कषायवासहस्तकार्मुकं हरे:
उपासनोपसंगमार्थधृग्विशाखमंडलम्।
हृदि स्मरन् दशाकृते: कुचक्रचौर्यपातकम्
विदार्यते प्रचण्डतांडवाकृतिः स राघवः ॥३॥
शरीर में मुनियों के समान वल्कल वस्त्र एवं हाथ मे विशाल धनुष 
धारण करते हुए, बाणों से शत्रु के शरीर को विदीर्ण करने की इच्छा 
से दोनों पैरों को फैलाकर एवं गोलाई बनाकर, हृदय में रावण के 
द्वारा किये गए सीता हरण के घोर अपराध का चिन्तन करते हुए 
प्रभु राघव प्रचण्ड तांडवीय स्वरूप धारण करके राक्षसगण को 
विदीर्ण कर रहे हैं।
प्रकाण्डकाण्डकाण्डकर्मदेहछिद्रकारणम्
कुकूटकूटकूटकौणपात्मजाभिमर्दनम्।
तथागुणंगुणंगुणंगुणंगुणेन दर्शयन्
कृपीटकेशलंघ्यमीशमेकराघवं भजे ॥४॥
अपने तीक्ष्ण बाणों से निंदित कर्म करने वाले असुरों के शरीर को वेध 
देने वाले, अधर्म की वृद्धि के लिए माया और असत्य का आश्रय लेने 
वाले प्रमत्त असुरों का मर्दन करने वाले, अपने पराक्रम एवं धनुष की 
डोर से, चातुर्य से एवं राक्षसों को प्रतिहत करने की इच्छा से प्रचण्ड 
संहारक, समुद्र पर पुल बनाकर उसे पार कर जाने वाले राघव को मैं 
भजता हूँ।
सवानरान्वितः तथाप्लुतम् शरीरमसृजा
विरोधिमेदसाग्रमांसगुल्मकालखंडनैः।
महासिपाशशक्तिदण्डधारकै: निशाचरै:
परिप्लुतं कृतं शवैश्च येन भूमिमंडलम् ॥५॥
वानरों से घिरे, शरीर में रक्त की धार से नहाए हुए जिनके द्वारा बहुत बड़ी 
शक्ति, तलवार, दण्ड, पाश आदि धारण करने वाले राक्षसों के मांस, चर्बी, 
कलेजा, आंत, एवं टुकड़े टुकड़े हुए शवों के द्वारा सम्पूर्ण युद्धभूमि ढक दी 
गयी है....
विशालदंष्ट्रकुम्भकर्णमेघरावकारकै:
तथाहिरावणाद्यकम्पनातिकायजित्वरै:।
सुरक्षितां मनोरमां सुवर्णलंकनागरीम्
निजास्त्रसंकुलैरभेद्यकोटमर्दनं कृतः ॥६॥
जिनके द्वारा विशालदंष्ट्र, कुम्भकर्ण, मेघनाद, अहिरावण, आदि, अकम्पन, 
अतिकाय आदि अजेय वीरों के द्वारा सुरक्षित सुंदर सोने की लंका नगरी, 
जो अभेद्य दुर्ग थी, वह भी दिव्य अस्त्रों की मार से विदीर्ण कर दी गयी....
प्रबुद्धबुद्धयोगिभिः महर्षिसिद्धचारणै:
विदेहजाप्रियः सदानुतो स्तुतो च स्वस्तिभिः।
पुलस्त्यनंदनात्मजस्य मुण्डरुण्डछेदनं
सुरारियूथभेदनं विलोकयामि साम्प्रतम् ॥७॥
प्रबुद्ध प्रज्ञा वाले योगी, महर्षि, सिद्ध, चारण, आदि जिन सीतापति को सदा 
प्रणाम करते हैं, सुंदर मंगलायतन स्तुतियों के द्वारा प्रशंसा करते हैं, उनके 
द्वारा आज मैं पुलस्त्यनन्दन विश्रवा के पुत्र रावण के मस्तक और धड़ को 
अलग किया जाता एवं सेना का घोर संहार होता देख रहा हूँ।
करालकालरूपिणं महोग्रचापधारिणं
कुमोहग्रस्तमर्कटाच्छभल्लत्राणकारणम्।
विभीषणादिभिः सदाभिषेणनेऽभिचिन्तकं
भजामि जित्वरं तथोर्मिलापते: प्रियाग्रजम् ॥८॥
कराल मृत्युरूपी, महान् उग्र धनुष को धारण करने वाले, मोहग्रस्त बन्दर 
भालुओं को अपनी शरण में लेने वाले, शत्रु पक्ष को नष्ट करने के लिए नीति 
और योजनाओं पर विभीषण आदि के साथ विचार विमर्श करने में मग्न 
अजेय पराक्रमी उर्मिलापति लक्ष्मण के बड़े भाई श्रीरामचन्द्र का मैं भजन 
करता हूँ।
इतस्ततः मुहुर्मुहु: परिभ्रमन्ति कौन्तिकाः
अनुप्लवप्रवाहप्रासिकाश्च वैजयंतिका:।
मृधे प्रभाकरस्य वंशकीर्तिनोऽपदानतां
अभिक्रमेण राघवस्य तांडवाकृते: गताः ॥९॥
इधर उधर बार बार वेगपूर्वक भागती हुई शत्रुसेना के अनुचर गण जो पताका, 
भाले एवं तलवार धारण किये हुए हैं, युद्ध में सूर्यवंश की कीर्तिरूपी रौद्ररूपधारी 
रामचन्द्र जी के महान् असह्य प्रभाव के कारण व्याकुलता एवं विनाश को प्राप्त 
हो गए हैं।
निराकृतिं निरामयं तथादिसृष्टिकारणं
महोज्ज्वलं अजं विभुं पुराणपूरुषं हरिम्।
निरंकुशं निजात्मभक्तजन्ममृत्युनाशकं
अधर्ममार्गघातकं कपीशव्यूहनायकम् ॥१०॥
आकृति, परिवर्तन क्लेशादि विकारों से रहित, आदिकाल में सृष्टिसम्भूति के 
निमित्त, महान् प्रभा से युक्त, अनादि, सर्वपोषक, प्राचीन दिव्य चेतन, दुःखत्राता, 
स्वामीरहित, अपने भक्त के जन्ममरणादि दु:खों के नाशक, अधर्ममार्ग का 
संहार करने वाले, वानरों की सेना के स्वामी श्रीरामचंद्र जी के...
करालपालिचक्रशूलतीक्ष्णभिंदिपालकै:
कुठारसर्वलासिधेनुकेलिशल्यमुद्गरै:।
सुपुष्करेण पुष्कराञ्च पुष्करास्त्रमारणै:
सदाप्लुतं निशाचरै: सुपुष्करञ्च पुष्करम् ॥११॥
विकराल खड्ग, चक्र, शूल, भिन्दिपाल, फरसा, छोटी छुरिका, तीर, मुद्गर, तोमर 
और धनुष की प्रत्यंचा से निक्षेपित वारुणास्त्र आदि की मार से राक्षसों के शव 
आकाश और समुद्र आदि सर्वत्र व्याप्त हो गए हैं।
प्रपन्नभक्तरक्षकम् वसुन्धरात्मजाप्रियं
कपीशवृंदसेवितं समस्तदूषणापहम्।
सुरासुराभिवंदितं निशाचरान्तकम् विभुं
जगद्प्रशस्तिकारणम् भजेह राममीश्वरम् ॥१२॥
अपनी शरण में आये भक्त की रक्षा करने वाले सीतापति, वानर सम्राटों से सेवित, 
समस्त दुर्गुणों का नाश करने वाले, इन्द्रादि देवगण तथा प्रह्लादादि असुरों से द्वारा 
वन्दित, राक्षसों का संहार करने वाले विश्व पोषक एवं संरक्षक परमेश्वर श्रीराम जी 
को भजो।
इति श्रीभागवतानंद गुरुणा विरचिते श्रीराघवेंद्रचरिते इन्द्रादि देवगणै: कृतं 
श्रीराम तांडव स्तोत्रम् सम्पूर्णम्।

इस प्रकार श्रीभागवतानंद गुरु के द्वारा लिखे गए श्रीराघवेंद्रचरितम् में इन्द्रादि 

देवगणों के द्वारा किये गए श्रीराम तांडव का वर्णन समाप्त हुआ।

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