बुधवार, 8 मार्च 2023

इचकारी-पिचकारी का क्या काम है, हम लोटे से होली खेलेंगे.../ अरुण मिश्र

https://youtu.be/8kUnPnv6K50
इचकारी-पिचकारी का क्या काम है...
-अरुण मिश्र 

४७-४८ वर्ष पूर्व अपनी ससुराल, गोण्डा में होली खेलते हुए 
रची गयी एक आशु रचना, जो अब विस्मृत एवं अप्राप्त थी। 
एक तरह से खोई हुई होली। 
जो कुछ याद आया, उसपर दुबारा लिखने की कोशिश
की है।आनंद लें। 

इचकारी-पिचकारी का क्या काम है,
हम लोटे से होली खेलेंगे। 

दरवज्जे से, चिल्लायेंगे।
आँगन तक, धूम मचायेंगे। 
गायेंगे फाग, कंगूरे चढ़, 
हम कोठे से होली खेलेंगे।।

सखियों से बोली, नवेली नई। 
हाय दइया ! बलम बालक है अभी।  
छोटे से, न खेलेंगे होली, 
दाईं-जोटे से होली खेलेंगे।।

आये कई पहलवान, सींकिया। 
मारी पिचकारी, उड़े मियाँ।। 
कहती हैं, ये गोंडे की छोरियाँ,
किसी मोटे से, होली खेलेंगे।।

जब श्याम रंग, लाग्यो नीको।
दूजे सब रंग, भयो फीको।।
अब ठान लई हमने मन में,
कजरौटे से, होली खेलेंगे।।

कोई हम पे कीच उछालेगा। 
या फिर, फ़ीके रंग डालेगा। 
तो, ये पहले बताये देते हैं,
हम सोंटे से होली खेलेंगे।।
                  *
दाईं-जोट- समवयस्क/बराबरी वाला
कजरौटे - कज्जल पात्र 

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