https://youtu.be/gX0S6E06a1E
जो तुम छैल छला हो जाते !
परे उँगरियन राते !
मौं पौंछत गालन से लगते,
कजरा देत दिखाते।।
घरी-घरी घूँघट खोलत में,
नज़र के सामें राते।।
मन चाही लट में तुम बिंधते,
हाथ ज्याँइ खों जाते।।
'ईसुर' दूर दरस के लाने,
काए खों तरसाते।।
अर्थ
रसिया, तुम छल्ला क्यों न हुए?
मेरी उँगलियों में तो रहते।
मुँह पौंछते समय मेरे गालों से लिपटते
और काजल लगाते हुए आँखों से दिखते।
हर घड़ी घूँघट खोलने में तुम निगाह के
सामने रहते।
मेरे हाथ जिधर जाते उधर ही तुम
मनचाही लट में उलझते।
अरे ईसुरी! तब दूर हो कर, इस तरह
दर्शन के लिए तो न तरसाते।
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