https://youtu.be/GerZGSlQ8os
मैं तो सोय रही सपने में,
मोपै रंग डारौ नन्दलाल॥
मोपै रंग डारौ नन्दलाल॥
सपने में श्याम मेरे घर आये,
ग्वाल बाल कोई संग न लाये,
पौढ़ि पलिका पै गये मेरे संग,
टटोरन लागे मेरौ अंग,
दई पिचकारी भर-भर रंग॥
दोहा-
पिचकारी के लगत ही मो मन उठी तरंग
जैसे मिश्री कन्द की, मानों पी लई भंग॥
मानो पी लई भंग,
गाल मेरे कर दिये लाल गुलाल ॥१॥
गाल मेरे कर दिये लाल गुलाल ॥१॥
खुले सपने में मेरे भाग,
कि मेरी गई तपस्या जाग,
मनाय रही हंसि-हंसि फाग सुहाग।
कि मेरी गई तपस्या जाग,
मनाय रही हंसि-हंसि फाग सुहाग।
दोहा-
हंस-हंसि फाग मनावत, चरन पलोटत जाउँ
धन्य-धन्य या रैन कू, फिर ऐसी नहिं पाउँ॥
फिर ऐसी नहि पाउँ,
भई सपने में माला माल ॥२॥
भई सपने में माला माल ॥२॥
इतने में मेरे खुल गये नैना,
देखूँ तो कछु लैन न दैना।
पड़ी पलिका पै मैं पछितात,
कि मीड़त रह गई दोनों हाथ।
मन की मन में रह गई बात।
देखूँ तो कछु लैन न दैना।
पड़ी पलिका पै मैं पछितात,
कि मीड़त रह गई दोनों हाथ।
मन की मन में रह गई बात।
दोहा-
मन की मन में रह गई, ह्वै आयौ परभात।
बज्यौ फजर कौ गजर, तब रहे तीन ढाक के पात॥
बज्यौ फजर कौ गजर, तब रहे तीन ढाक के पात॥
तीन ढाक के पात,
रही कंगालिन की कंगाल ॥३॥
रही कंगालिन की कंगाल ॥३॥
होरी कौ रस रसिकहि जानें,
रस कूँ कूर कहां पहिचाने।
जो रस देखौ ब्रज के मांहि,
सो रस तीन लोक में नांहि,
देखके ब्रह्मादिक ललचाँय॥
रस कूँ कूर कहां पहिचाने।
जो रस देखौ ब्रज के मांहि,
सो रस तीन लोक में नांहि,
देखके ब्रह्मादिक ललचाँय॥
दोहा-
ब्रह्मादिक ललचावते, धन्य-धन्य ब्रजधाम।
गोबरधन दस बिसे में, द्विजवर घासीराम॥
द्विजवर घासीराम,
सदा ये कहैं रसीले ख्याल ॥४॥
सदा ये कहैं रसीले ख्याल ॥४॥
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