शनिवार, 8 मार्च 2025

सीपिया बरन मंगलमय तन.../ कवि स्वर्गीय भारत भूषण

https://youtu.be/V_0ZZzgfGVI  

सीपिया बरन मंगलमय तन
जीवन दर्शन बांचते नयन,
संस्कृत सूत्रों जैसी अलकें
है भाल चन्द्रमा का बचपन।।


हल्के जमुनाए होठों पर
दीये की लौ-सी मुसकानें
धूपिया कपोलों पर रोली से
शुभम् लिख दिया चंदरमा ने।
सम्मुख हो तो आरती सजी
सुधि में हो तो चंदन-चंदन।।


वरदानों से उजले-उजले 
कर्पूरी बाहों के घेरे
ईंगुरी हथेली में जैसे
अंकित हों भाग्य-लेख मेरे
पल भर तो बैठो बिखरा दूँ 
पूजा में अंजुरी भरे सुमन ।।


साड़ी की सिकुड़न-सिकुड़न में
किसने रच दी गंगा-लहरी
चितवन-चितवन ने पूरी है
रंगोली सी गहरी-गहरी
अवतरित हो रहे नख-शिख में
सारे पावन सारे शोभन ।।

शुक्रवार, 7 मार्च 2025

ज़ब्त भी चाहिए ज़र्फ़ भी चाहिए.../ शायर : इक़बाल अज़ीम / गायन : सलमान अल्वी

https://youtu.be/8TOaAF2yVTc  


ज़ब्त भी चाहिए ज़र्फ़ भी चाहिए और मोहतात पास-ए-वफ़ा चाहिए
ज़िंदगी दुश्मनों में भी मुश्किल नहीं आदमी में ज़रा हौसला चाहिए


हम को मंज़िल-शनासी पे भी नाज़ है और हम आश्ना-ए-हवादिस भी हैं
जू-ए-ख़ूँ से गुज़रना पड़े भी तो क्या जुस्तुजू को तो इक रास्ता चाहिए


अपने माथे पे बल डाल कर हमें शीश-महलों के अंदर से झिड़की न दो
हम भिकारी नहीं हैं कि टल जाएँगे हम को अपनी वफ़ा का सिला चाहिए


तुम ने आराइश-ए-गुलसिताँ के लिए हम से कुछ ख़ून माँगा था मुद्दत हुई
तुम से ख़ैरात तो हम नहीं माँगते हम को इस ख़ून का ख़ूँ-बहा चाहिए


हम को हर मोड़ पर दोस्त मिलते रहे हम कभी राह-ए-मंज़िल में तन्हा न थे
कल ग़म-ए-दोस्त था अब ग़म-ए-ज़ीस्त है आश्ना को तो इक आश्ना चाहिए


मेरी मानो तो इक बात तुम से कहूँ ये नया दौर है इस का क्या ठीक है
दोस्तों से मिलो महफ़िलों में मगर आस्तीनों का भी जाएज़ा चाहिए


हद से बढ़ कर मोहब्बत मुनासिब नहीं इस में अंदेशा-ए-बद-गुमानी भी है
दुश्मनों से त'अल्लुक़ तो है ही ग़लत दोस्तों में भी कुछ फ़ासला चाहिए


जुर्म-ए-बे-बाक-गोई की पादाश में ज़हर 'इक़बाल' को तल्ख़ियों का मिला
उस ने इस ज़हर को ही सुख़न कर लिया इस ज़माने में अब और क्या चाहिए


मंगलवार, 4 मार्च 2025

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर.../ शायर : अख़्तर शीरानी / गायन : नय्यरा नूर

https://youtu.be/5zKTMf96iIs  

ऐ इश्क़ न छेड़ आ आ के हमें हम भूले हुओं को याद न कर
पहले ही बहुत नाशाद हैं हम तू और हमें नाशाद न कर
क़िस्मत का सितम ही कम नहीं कुछ ये ताज़ा सितम ईजाद न कर
यूँ ज़ुल्म न कर बे-दाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

हम रातों को उठ कर रोते हैं रो रो के दुआएँ करते हैं
आँखों में तसव्वुर दिल में ख़लिश सर धुनते हैं आहें भरते हैं
ऐ इश्क़ ये कैसा रोग लगा जीते हैं न ज़ालिम मरते हैं
ये ज़ुल्म तू ऐ जल्लाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

जिस दिन से बँधा है ध्यान तिरा घबराए हुए से रहते हैं
हर वक़्त तसव्वुर कर कर के शरमाए हुए से रहते हैं
कुम्हलाए हुए फूलों की तरह कुम्हलाए हुए से रहते हैं
पामाल न कर बर्बाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

सोमवार, 3 मार्च 2025

तुम को हम दिल में बसा लेंगे तुम आओ तो सही.../ शायरा : बेग़म मुमताज़ मिर्ज़ा / गायन : चित्रा सिंह

https://youtu.be/-lJZL5r2L2g   


तुम को हम दिल में बसा लेंगे तुम आओ तो सही,
सारी दुनिया से छुपा लेंगे तुम आओ तो सही


एक वादा करो अब हम से न बिछडोगे कभी,
नाज़ हम सारे उठा लेंगे तुम आओ तो सही


बेवफ़ा भी हो, सितमगर भी, जफ़ा पेशा भी,
हम ख़ुदा तुम को बना लेंगे तुम आओ तो सही


(सितमगर = ज़ालिम, अत्याचारी), (जफ़ा पेशा = ज़ुल्म/ अत्याचार का काम)


राह तारीक़ है और दूर है मंज़िल लेकिन,
दर्द की शम्में जला लेंगे तुम आओ तो सही


(तारीक़ = अन्धकार पूर्ण, अँधेरी, स्याह)