सोमवार, 27 दिसंबर 2021

जाग रे बंजारा.../ भगत रूपा बाई / गायन : अरुन गोयल

 https://youtu.be/UUac0U2UVPc


Arun Goyal is a fine singer of Kabir and other Bhakti poets and part of a vibrant oral tradition of Kabir in Malwa, Madhya Pradesh. An ardent disciple of Osho, he is currently based in Indore.

अरे जाग रे अब,
जाग रे बंजारा रे, बंजारा रे
{तुम बंजारे के समान राही हो, तुम्हारा सफ़र यायावरी है, तुम अब तो अज्ञान की नींद से जागो }
तू किन की देखे बाट रे 
 {तुम किसकी राह देख रहे हो ?}
बाड़ी का भंवरा रे
अरे किन की जोवे बाट रे
बाड़ी का भंवरा रे
{तुम किसकी राह देख रहे हो -बाड़ी के भँवरे बाड़ी से आशय है बगिया/छोटा खेत, तुम तो भँवरे हो, तुम्हारा यहाँ कोई स्थाई स्थान नहीं है, तुम किसकी राह देख रहे हो ?, अब तो अज्ञान की नींद से जागो }
काई सोयो तू नींद में
बाड़ी का भंवरा रे
जाग रे बंजारा रे, बंजारा रे
किन की जोवे बाट रे
बाड़ी का भंवरा रे
{तुम अज्ञान की नींद में क्या सो रहे हो, तुम किसकी राह देख रहे हो ?}
सोना चांदी काई पहरे
बंजारा रे, बंजारा रे
सोना चांदी काई पहरे
बंजारा रे, बंजारा रे
अरे हीरा को व्यापार रे
बागां का भंवरा रे
जाग रे बंजारा रे, बंजारा रे
किन की जोवे बाट रे
बाड़ी का भंवरा रे
{सोने और चाँदी के आभूषण को तुम क्या पहन रहे हो ! तुम जागो मैं तो तुम्हें हीरों के व्यापार की और अग्रसर कर रहा हूँ। सोना और चांदी तो तुलनात्मक रूप से कम महत्वपूर्ण है मैं तो तुम्हें हीरों के व्यापार की बात बताता हूँ, इसलिए तुम क्या सो रहे हो, इस अज्ञान की नींद से जागो। }
चढ़ कर डूंगर देख ले
बंजारा रे, बंजारा रे
डूंगर चढ़ कर देख ले
बंजारा रे, बंजारा रे
ऊपर चढ़ कर देख ले
बंजारा रे, बंजारा रे
थारी ऊभी करूँ मनवार रे
बाड़ी का भंवरा रे
(डूंगर-पहाड़ / ऊपर पहाड़ पर चढ़ कर देखो मैं तो तुम्हारी खड़ी होकर मनुहार कर रही हूँ। }
ये भी भँवरे वाली बात है.
हीरा रो व्यापार रे
बाड़ी का भंवरा रे
होयो उजालो ज्ञान को
बंजारा रे, बंजारा रे
मार चोट आसमान में,
बाड़ी का भंवरा रे!
मार चोट आसमान में,
बाड़ी का भंवरा रे
{हरी का सुमिरन हो हीरे के व्यापार के माफ़िक अमूल्य है, इसलिए बाड़ी के भँवरे तुम जागो और आसमान में चोट करो। }
जाग रे अब नींद से
बंजारा रे, बंजारा रे
किन की जोवे बाट रे
बाड़ी का भंवरा रे
मार चोट आसमान में
बाड़ी का भंवरा रे
जाग रे बंजारा रे, बंजारा रे
किन की जोवे बाट रे
बाड़ी का भंवरा रे
फूलन का भंवरा रे!
बागां रा भंवरा रे!
रूपा बाई की बीनती
बंजारा रे, बंजारा रे
सब हिल मिल भेला चालजो
{बाई रूपा जी -भगत रूपा बाई की विनती है की सभी से हिल मिल कर चलना यही संतों की वाणी है। }
बाड़ी का भंवरा रे
बागां रा भंवरा रे!
बाड़ी का भंवरा रे
जाग ले अब नींद से
बंजारा रे, बंजारा रे
तू किन की जोवे बाट रे
बाड़ी का भंवरा रे
मत जोवे तू बाट रे
बाड़ी का भंवरा रे
बाड़ी का भंवरा रे
बागां रा भंवरा 

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