बुधवार, 29 दिसंबर 2021

जल्वा दिखा के यार ने दीवाना कर दिया۔۔۔۔/ जिगर मुरादाबादी / मोहम्मद अहमद क़व्वाल (रामपुर घराना)

https://youtu.be/_UcF4Ywo0cU 

जलवा बक़द्र-ए-ज़र्फ़-ए-नज़र देखते रहे। 
क्या देखते हम उनको मगर देखते रहे।।

अपना ही अक्स पेश-ए-नज़र देखते रहे। 
आइना रु-ब-रु था जिधर देखते रहे।।

क्या कह्र था कि पास ही दिल के लगी थी आग।  
अंधेर है कि, दीदा-ए-तर देखते रहे।।
वो आये और आ के चले भी गए 'जिगर'
हम मह्वियत में जाने किधर देखते रहे।।

~जिगर मुरादाबादी

जल्वा दिखा के यार ने दीवाना कर दिया। 
खुद शम्मा बन गए मुझे परवाना कर दिया।।

साक़ी की चश्म--मस्त ने, मस्ताना कर दिया।  
ऐसी पिलायी मुझ को के, दीवाना कर दिया।।

क्या माँगते हो मुझ से, मेरे पास कुछ नहीं।  
इक दिल था वो भी आप को नज़राना कर दिया।।

जाऊँ मैं कहाँ छोड़ के, मुर्शिद तुम्हारा घर। 
तुम ने हमारे घर को ख़ुदाख़ाना कर दिया।।

ये हुस्न, ये निखार, ये आँखों की मस्तियाँ। 
जिस पे निग़ाह पड़ गयी, दीवाना कर दिया।।

अल्लाह उन का और भी, रुतबा करें बुलन्द। 
लाखों गदा को आप ने शाहाना कर दिया।।

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