शनिवार, 14 जून 2025

जो लोग तेरी मुहब्बत में चूर रहते हैं.../ गायन : जगजीत सिंह

https://youtu.be/1UuLJjA_lnQ   

जो लोग तेरी मुहब्बत में चूर रहते हैं
वो दो जहां के अँधेरों से दूर रहते हैं


ख़ता न कर के हम हैं गुनाहगार मगर 
कुसूर कर के भी वो बेकुसूर रहते हैं


ग़म-ए-ज़माना को कैसे मैं दूं जगह दिल में
के इस मकां में तो हर दम हुज़ूर रहते हैं


तेरी घनेरी सियाह काकुलों के पिछवाड़े
गुलों के रंग सितारों के नूर रहते हैं

रविवार, 8 जून 2025

लो फिर बसंत आई.../ शायर : हफ़ीज़ जालंधरी / गायन : मलिका पुखराज एवं ताहिरा सईद

https://youtu.be/wOAhkm5DIaI  

लो फिर बसंत आई

फूलों पे रंग लाई
चलो बे-दरंग

लब-ए-आब-ए-गंग
बजे जल-तरंग

मन पर उमंग छाई
फूलों पे रंग लाई

लो फिर बसंत आई
आफ़त गई ख़िज़ाँ की

क़िस्मत फिरी जहाँ की
चले मय-गुसार

सू-ए-लाला-ज़ार
म-ए-पर्दा-दार

शीशे के दर से झाँकी
क़िस्मत फिरी जहाँ की

आफ़त गई ख़िज़ाँ की
खेतों का हर चरिंदा

बाग़ों का हर परिंदा
कोई गर्म-ख़ेज़

कोई नग़्मा-रेज़
सुबुक और तेज़

फिर हो गया है ज़िंदा
बाग़ों का हर परिंदा

खेतों का हर चरिंदा
धरती के बेल-बूटे

अंदाज़-ए-नौ से फूटे
हुआ बख़्त सब्ज़

मिला रख़्त सब्ज़
हैं दरख़्त सब्ज़

बन बन के सब्ज़ निकले
अनदाज़-ए-नौ से फूटे

धरती के बेल-बूटे
फूली हुई है सरसों

भूली हुई है सरसों
नहीं कुछ भी याद

यूँही बा-मुराद
यूँही शाद शाद

गोया रहेगी बरसों
भूली हुई है सरसों

फूली हुई है सरसों
लड़कों की जंग देखो

डोर और पतंग देखो
कोई मार खाए

कोई खिलखिलाए
कोई मुँह चिढ़ाए

तिफ़्ली के रंग देखो
डोर और पतंग देखो

लड़कों की जंग देखो
है इश्क़ भी जुनूँ भी

मस्ती भी जोश-ए-ख़ूँ भी
कहीं दिल में दर्द

कहीं आह-ए-सर्द
कहीं रंग-ए-ज़र्द

है यूँ भी और यूँ भी
मस्ती भी जोश-ए-ख़ूँ भी

है इश्क़ भी जुनूँ भी
इक नाज़नीं ने पहने

फूलों के ज़र्द गहने
है मगर उदास

नहीं पी के पास
ग़म-ओ-रंज-ओ-यास

दिल को पड़े हैं सहने
इक नाज़नीं ने पहने

फूलों के ज़र्द गहने

रविवार, 1 जून 2025

अब उनका क्या भरोसा वो आयें या न आयें.../ शायर : जिगर मुरादाबादी / गायन : मीनू पुरुषोत्तम

https://youtu.be/cF5zOQjUdkU  

अब उनका क्या भरोसा वो आयें या न आयें
आ ऐ ग़म-ए-मोहब्बत तुझ को गले लगायें

उस से भी शोख़तर हैं उस शोख़ की अदाएँ 
कर जायें काम अपना लेकिन नज़र न आयें

आलूदा आब ही में रहने दे इसको नासेह
दामन अगर झटक  दूँ  जलवे कहाँ समायें

इक ज़ाम-ए-आख़िरी तो पीना है और साक़ी 
अब दस्त-ए-शौक़ काँपे या पाँव लड़खड़ायें

गुरुवार, 29 मई 2025

चण्डिकाष्टकम्.../ श्री उमापतिद्विवेदि-विरचितं / स्वर : पण्डित कमल दीक्षित

https://youtu.be/Up_ovBifNkA   

चण्डिकाष्टकम् 

सहस्रचन्द्रनित्दकातिकान्त-चन्द्रिकाचयै-
दिशोऽभिपूरयद् विदूरयद् दुराग्रहं कलेः ।
कृतामलाऽवलाकलेवरं वरं भजामहे
महेशमानसाश्रयन्वहो महो महोदयम् ॥ १॥

विशाल-शैलकन्दरान्तराल-वासशालिनीं
त्रिलोकपालिनीं कपालिनी मनोरमामिमाम् ।
उमामुपासितां सुरैरूपास्महे महेश्वरीं
परां गणेश्वरप्रसू नगेश्वरस्य नन्दिनीम् ॥ २॥

अये महेशि! ते महेन्द्रमुख्यनिर्जराः समे
समानयन्ति मूर्द्धरागत परागमंघ्रिजम् ।
महाविरागिशंकराऽनुरागिणीं नुरागिणी
स्मरामि चेतसाऽतसीमुमामवाससं नुताम् ॥ ३॥

भजेऽमरांगनाकरोच्छलत्सुचाम रोच्चलन्
निचोल-लोलकुन्तलां स्वलोक-शोक-नाशिनीम् ।
अदभ्र-सम्भृतातिसम्भ्रम-प्रभूत-विभ्रम-
प्रवृत-ताण्डव-प्रकाण्ड-पण्डितीकृतेश्वराम् ॥ ४॥

अपीह पामरं विधाय चामरं तथाऽमरं
नुपामरं परेशिदृग्-विभाविता-वितत्रिके ।
प्रवर्तते प्रतोष-रोष-खेलन तव स्वदोष-
मोषहेतवे समृद्धिमेलनं पदन्नुमः ॥ ५॥

भभूव्-भभव्-भभव्-भभाभितो-विभासि भास्वर-
प्रभाभर-प्रभासिताग-गह्वराधिभासिनीम् ।
मिलत्तर-ज्वलत्तरोद्वलत्तर-क्षपाकर
प्रमूत-भाभर-प्रभासि-भालपट्टिकां भजे ॥ ६॥

कपोतकम्बु-काम्यकण्ठ-कण्ठयकंकणांगदा-
दिकान्त-काश्चिकाश्चितां कपालिकामिनीमहम् ।
वरांघ्रिनूपुरध्वनि-प्रवृत्तिसम्भवद् विशेष-
काव्यकल्पकौशलां कपालकुण्डलां भजे ॥ ७॥

भवाभय-प्रभावितद्भवोत्तरप्रभावि भव्य
भूमिभूतिभावन प्रभूतिभावुकं भवे ।
भवानि नेति ते भवानि! पादपंकजं भजे
भवन्ति तत्र शत्रुवो न यत्र तद्विभावनम् ॥ ८॥

दुर्गाग्रतोऽतिगरिमप्रभवां भवान्या
भव्यामिमां स्तुतिमुमापतिना प्रणीताम् ।
यः श्रावयेत् सपुरूहूतपुराधिपत्य
भाग्यं लभेत रिपवश्च तृणानि तस्य ॥ ९॥

रामाष्टांक शशांकेऽब्देऽष्टम्यां शुक्लाश्विने गुरौ ।
शाक्तश्रीजगदानन्दशर्मण्युपहृता स्तुतिः ॥ १०॥

॥ इति कविपत्युपनामक-श्री उमापतिद्विवेदि-विरचितं चण्डिकाष्टकं
सम्पूर्णम् ॥

शुक्रवार, 23 मई 2025

तजौ रे मन, हरि विमुखन को संग.../ श्री सूरदास जी / सूर सागर / गायन : पुरुषोत्तम दास जलोटा

https://youtu.be/s2K0sDGqe8U  


तजौ रे मन...
  हरि विमुखन को संग।
जिनके संग कुमति उपजत है, 
    परत भजन में भंग॥ [१]

कहा होत पय पान कराए विष, 
        नहिं तजत भुजंग।
कागहि कहा कपूर चुगाये,
      स्वान न्हवाऐ गंग॥ [२]

खर को कहा अरगजा लेपन,
           मरकट भूपन अंग।
गज को कहा सरित अन्हवाऐ, 
      बहुरि धरै वह ढंग॥ [३]

पाहन पतित बान नहिं बेधत,
           रीतो करौ निषंग।
'सूरदास' कारी काँमरि पे 
     चढ़त न दूजौ रंग॥ [४]

भावार्थ :

हे मेरे मन ! जो जीव हरि भक्ति से विमुख हैं, उन प्राणियों का संग न कर। उनकी संगति के माध्यम से तेरी बुद्धि भ्रष्ट हो जाएगी क्योंकि वे तेरी भक्ति में रुकावट पैदा करते हैं, उनके संग से क्या लाभ? [१]

आप चाहे कितना ही दूध साँप को पिला दो, वो ज़हर बनाना बंद नहीं करेगा एवं आप चाहे कितना ही कपूर कौवे को खिला दो वह सफ़ेद नहीं होगा, कुत्ता (स्वान) कितना ही गंगा में नहा ले वह गन्दगी में रहना नहीं छोड़ता। [२]

आप एक गधे को कितना ही चन्दन का लेप लगा लो वह मिट्टी में बैठना नहीं छोड़ता, मरकट (बन्दर) को कितने ही महंगे आभूषण मिल जाए वह उनको तोड़ देगा। एक हाथी द्वारा नदी में स्नान करने के बाद भी वह रेत खुद पर छिड़कता है। [३]

भले ही आप अपने पूरे तरकश के तीर किसी चट्टान पर चला दें, चट्टान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। श्री सूरदास जी कहते हैं कि "एक काले कंबल दूसरे रंग में रंगा नहीं जा सकता (अर्थात् जिस जीव ने ठान ही लिया है कि उसे कुसंग ही करना है तो उसे कोई नहीं बदल सकता इसलिए ऐसे विषयी लोगों का संग त्यागना ही उचित है।

बुधवार, 14 मई 2025

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते.../ शायर : हैदर अली आतिश / गायन : उस्ताद अमानत अली

https://youtu.be/AJeltGldEFU   

ये आरज़ू थी तुझे गुल के रू-ब-रू करते
हम और बुलबुल-ए-बेताब गुफ़्तुगू करते


पयाम्बर न मयस्सर हुआ तो ख़ूब हुआ
ज़बान-ए-ग़ैर से क्या शरह-ए-आरज़ू करते


हमेशा मैं ने गरेबाँ को चाक चाक किया
तमाम उम्र रफ़ूगर रहे रफ़ू करते


मिरी तरह से मह-ओ-मेहर भी हैं आवारा
किसी हबीब की ये भी हैं जुस्तुजू करते


न पूछ आलम-ए-बरगश्ता-तालई 'आतिश'
बरसती आग जो बाराँ की आरज़ू करते

रविवार, 4 मई 2025

हमन हैं इश्क़ मस्ताना हमन को होशियारी क्या.../ सन्त कबीर / गायन : मधुप मुद्गल

https://youtu.be/EXHMj42N7BQ  

हमन हैं इश्क़ मस्ताना हमन को होशियारी क्या
रहें आज़ाद या जग से हमन दुनिया से यारी क्या


जो बिछड़े हैं पियारे से भटकते दर-ब-दर फिरते
हमारा यार है हम में हमन को इंतिज़ारी क्या


न पल बिछ्ड़ें पिया हम से न हम बिछड़े पियारे से
उन्हीं से नेह लागी है हमन को बे-क़रारी क्या


'कबीरा' इश्क़ का माता दुई को दूर कर दिल से
जो चलना राह नाज़ुक है हमन सर बोझ भारी क्या

आगे माई, जोगिया मोर जगत सुखदायक, दुःख ककरो नहिं देल.../ महाकवि विद्यापति / गायन : सृष्टि एवं अनुष्का

https://youtu.be/bS4l4jhuIkU  


आगे माई, जोगिया मोर जगत सुखदायक, 
दुःख ककरो नहिं देल

दुःख ककरो नहिं देल महादेव, 
दुःख ककरो नहिं देल

एही जोगिया के भाँग भुलैलक, 
धतुर खोआई धन लेल। 

आगे माई, कार्तिक गणपति दुई जन बालक, 
जन भरी के नहिं जान 
तिनक अभरन किछओ न टिकइन, 
रतियक सन नहिं कान 

आगे माई, सोना रूपा अनका सूत, 
अभरन अपने रूद्रक माल
अभरन अपना मँगलो किछ नै जुरलनी, 
अनका लै जंजाल 

आगे माई, छन में हेरथी कोटिधन बकसथी, 
वाहि देवा नहिं थोर 
भनहिं विद्यापति सुनू हे मनाइन 
इहो थिका दिगम्बर मोर

शनिवार, 3 मई 2025

राम गुन बेलड़ी रे.../ भजन / रचना : सन्त कबीर / गायन : मधुप मुद्गल

https://youtu.be/9sC2NisiCV8  


राम गुन बेलड़ी रे,
अवधू गोरषनाथि जाँणीं।


vine(creeper) made of qualities of Ram 
is known to Avdhoo(saint) Goraknath.  

नाति सरूप न छाया जाके,
बिरध करैं बिन पाँणी॥


It neither has form nor shadow, 
it grows without water(Maya). 

राम गुन बेलड़ी रे,
अवधू गोरषनाथि जाँणीं।



बेलड़िया द्वे अणीं 
पहूँती गगन पहूँती सैली।


The vine has two ends(Ida and pingala ),
 it has reached by itself to the sky.

सहज बेलि जल फूलण लागी,
डाली कूपल मेल्ही॥

When this vine by its own nature
(unforced,effortless smadhi) blossomed, 
then new braches and shoots come out.

राम गुन बेलड़ी रे,
अवधू गोरषनाथि जाँणीं।


मन कुंजर जाइ बाड़ा बिलब्या, 
सतगुर बाही बेली।


When elephant nature mind rests
 in this garden of this vine, Satguru helps this vine grow further.

पंच सखी मिसि पवन पयप्या, 
बाड़ी पाणी मेल्ही॥

Now five senses help life force 
further to remove water(Maya).


राम गुन बेलड़ी रे,
अवधू गोरषनाथि जाँणीं।



काटत बेली कूपले मेल्हीं,
सींचताड़ी कुमिलाँणों।

This vine grows further when one cuts oneself further from worldliness, if one enjoys worldly cravings
the this vine become lifeless.

कहै कबीर ते बिरला जोगी, 
सहज निरंतर जाँणीं।।


Sayes Kabir he is a rare yogi, 
who can understand this effortless 
eternal yoga.

बुधवार, 30 अप्रैल 2025

तू मन अनमना न कर अपना.../ गीतकार भारत भूषण अपने स्वर में..

https://youtu.be/Ar7qK7Fn_F0  

तू मन अनमना न कर अपना, इसमें कुछ दोष नहीं तेरा
धरती के काग़ज़ पर मेरी तस्वीर अधूरी रहनी थी 

रेती पर लिखा नाम जैसा, मुझको दो घड़ी उभरना था 
मलियानिल के बहकाने से, बस एक प्रभात निखारना था 
गूंगे के मनो-भाव जैसे वाणी स्वीकार न कर पाए 
वैसे ही मेरा ह्रदय-कुसुम असमर्पित सूख बिखरना था 

कोई प्यासा मरता जैसे जल के अभाव में विष पी ले 
मेरे जीवन में भी कोई ऐसी मजबूरी रहनी थी

इच्छाओं से उगते बिरवे, सब के सब सफल नहीं होते 
हर कहीं लहर के जूड़े में अरुणारे कमल नहीं होते 
माटी का अंतर नहीं मगर अंतर तो रेखाओं का है 
हर एक दीप के जलने को शीशे के महल नहीं होते 

दर्पण में परछाईं जैसे दीखे तो पर अनछुई रहे 
सारे सुख सौरभ की मुझसे, वैसी ही दूरी रहनी थे
 
शायद मैंने गत जनमों में, अधबने नीड़ तोड़े होंगे 
चातक का स्वर सुनने वाले बादल वापस मोड़े होंगे
ऐसा अपराध हुआ होगा, फिर जिसकी क्षमा नहीं मिलती  
तितली के पर नोचे होंगे, हिरणों के दृग फोड़े होंगे 

अनगिनती क़र्ज़ चुकाने थे, इसलिए ज़िंदगी भर मेरे 
तन को बेचैन भटकना था, मन में कस्तूरी रहनी थी

सोमवार, 28 अप्रैल 2025

हम नहिं आज रहब यहि आँगन जो बुढ़ होएत जमाई, गे माई.../ महाकवि विद्यापति / गायन : रजनी पल्लवी

https://youtu.be/nqxQ3-Uz1Ss  


हम नहिं आज रहब यहि आँगन जो बुढ़ होएत जमाई, गे माई।

एक त बइरि भेला बीध बिधाता दोसरे धिया कर बाप॥
तीसरे बइरि भेला नारद बाभन जै बूढ़ आनल जमाई, गे माई॥

पहिलुक बाजन डोमरु तोरब दोसरे तोरब रुँडमाला।
बरद हाँकि बरियात वेलाइब धिआ लेजाइब पराइ, गे माई॥

धोती लोटा पतरा पोथी एहो सभ लेबन्हि छिनाई।
जो किछु बजता नारद बाभन दाढ़ी दे धिसिआएब, गे माई॥

भन विद्यापति सुनु हे मनाइन दृढ़ कर अपन गेआन।
सुभ सुभ कए सिरी गौरी बियाहू गौरी हर एक समान, गे माई॥

*व्याख्या*

हे सखी! यदि इस वृद्ध शिव को मेरा जामाता बनाया गया तो फिर मैं इस घर में नहीं रहूँगी। मेरी इस कन्या के तीन शत्रु हो गए। एक तो ब्राह्मण ही शत्रु हुआ जिसने मेरी कन्या का इस बूढ़े से विवाह का संयोग-विधान किया। दूसरे इसके पिता हिमालय ने ऐसे वृद्ध एवं सुरुचिहीन वर का चयन कर शत्रुता का व्यवहार किया है। तीसरा शत्रु ब्राह्मण नारद है जो मेरी कन्या की विधि मिलाकर इस वृद्ध दामाद को मेरे द्वार पर ले आया। मैना कहती है कि मैं शिव के डमरु और रुंडमाला को तोड़ डालूँगी। मैं इसके बैल को खदेड़ दूँगी और बरात को भगा दूँगी और फिर अपनी पुत्री को भगाकर कहीं दूर ले जाऊँगी। हे सखी! मैं इस ब्राह्मण नारद का धोती, लोटा, पोथी-पत्रा सब छिनवा लूँगी और यदि इसने अनाकानी की तो मैं स्वयं उसकी दाढ़ी पकड़ कर घसीटूँगी। मैना के इन बचनों को सुनकर विद्यापति के शब्दों में ही उसकी सखी कहती है कि मैना! सुनो, तू जो शिव के वरत्व के संबंध में अनर्गल प्रलाप कर रही है वह अज्ञान के कारण ही है। तू शिव एवं पार्वती के विवाह का मंगल विधि के साथ विवाह कर, क्योंकि ये दोनों एक समान अर्थात् एक दूसरे के सर्वथा उपयुक्त हैं।

शनिवार, 26 अप्रैल 2025

पाप.../ कविता / कवि : भारत भूषण

https://youtu.be/skitjHRld0A?si=F9LlDiqWL9gm1zfI


न जन्म लेता अगर कहीं मैं
धरा बनी ये मसान होती
न मन्दिरों में मृदंग बजते
न मस्जिदों में अजान होती

लिए सुमिरनी डरे हुए से
बुला रहे हैं मुझे पुजेरी
जला रहे हैं पवित्र दीये
न राह मेरी रहे अन्धेरी
हजार सजदे करें नमाजी
न किंतु मेरा जलाल घटता
पनाह मेरी यही शिवाला
महान गिरजा सराय मेरी
मुझे मिटा के न धर्म रहता
न आरती में कपूर जलता
न पर्व पर ये नहान होता
न ये बुतों की दुकान होती

न जन्म लेता अगर कहीं मैं...

मुझे सुलाते रहे मसीहा
मुझे मिटाने रसूल आये
कभी सुनी मोहनी मुरलिया
कभी अयोध्या बजे बधाये
मुझे दुआ दो बुला रहा हूं
हजार गौतम, हजार गान्धी
बना दिये देवता अनेकों
मगर मुझे तुम ना पूज पाये
मुझे रुला के न सृष्टि हँसती
न सूर, तुलसी, कबीर आते
न क्रास का ये निशान होता
न ये आयते कुरान होती

न जन्म लेता अगर कहीं मैं....

बुरा बता दे मुझे मौलवी
या दे पुरोहित हजार गाली
सभी चितेरे शकल बना दें
बहुत भयानक, कुरूप, काली
मगर यही जब मिलें अकेले
सवाल पूछो, यही कहेंगे कि;
पाप ही जिन्दगी हमारी
वही ईद है वही दिवाली
न सींचता मैं अगर जडों को
तो न जहां मे यूं पुण्य खिलता
न रूप का यूं बखान होता
न प्यास इतनी जवान होती

न जन्म लेता अगर कहीं मैं
धरा बनी ये मशान होती
न मन्दिरों में मृदंग बजते
न मस्जिदों में अजान होती

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

न गँवाओ नावक-ए-नीम-कश.../ शायर : फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ / गायन : इक़बाल बानो

https://youtu.be/d0f-HS93lbs  


न गँवाओ नावक-ए-नीम-कश दिल-ए-रेज़ा-रेज़ा गँवा दिया
जो बचे हैं संग समेट लो तन-ए-दाग़-दाग़ लुटा दिया

मिरे चारा-गर को नवेद हो सफ़-ए-दुश्मनाँ को ख़बर करो
जो वो क़र्ज़ रखते थे जान पर वो हिसाब आज चुका दिया

जो रुके तो कोह-ए-गिराँ थे हम जो चले तो जाँ से गुज़र गए
रह-ए-यार हम ने क़दम क़दम तुझे यादगार बना दिया

सोमवार, 14 अप्रैल 2025

तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा तिरे सामने मिरा हाल है.../ मजरूह सुल्तानपुरी / गायन : मोहम्मद रफ़ी

https://youtu.be/nc8wYuZyMdU  

तुझे क्या सुनाऊँ मैं दिलरुबा तिरे सामने मिरा हाल है
तिरी इक निगाह की बात है मिरी ज़िंदगी का सवाल है


मिरी हर ख़ुशी तिरे दम से है मिरी ज़िंदगी तिरे ग़म से है
तिरे दर्द से रहे बे-ख़बर मिरे दिल की कब ये मजाल है


तिरे हुस्न पर है मिरी नज़र मुझे सुब्ह शाम की क्या ख़बर
मिरी शाम है तिरी जुस्तुजू मेरी सुब्ह तेरा ख़याल है


मिरे दिल जिगर में समा भी जा रहे क्यों नज़र का भी फ़ासला
कि तिरे बग़ैर तो जान-ए-जाँ मुझे ज़िंदगी भी मुहाल है

रविवार, 13 अप्रैल 2025

दुआ.../ शायर : फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ / गायन : नय्यरा नूर

https://youtu.be/JR8SuFjkKw0  

आइए हाथ उठाएँ हम भी
हम जिन्हें रस्म-ए-दुआ याद नहीं
हम जिन्हें सोज़-ए-मोहब्बत के सिवा
कोई बुत कोई ख़ुदा याद नहीं


आइए अर्ज़ गुज़ारें कि निगार-ए-हस्ती
ज़हर-ए-इमरोज़ में शीरीनी-ए-फ़र्दा भर दे


वो जिन्हें ताब-ए-गिराँ-बारी-ए-अय्याम नहीं
उन की पलकों पे शब ओ रोज़ को हल्का कर दे
जिन की आँखों को रुख़-ए-सुब्ह का यारा भी नहीं
उन की रातों में कोई शम्अ मुनव्वर कर दे
जिन के क़दमों को किसी रह का सहारा भी नहीं
उन की नज़रों पे कोई राह उजागर कर दे


जिन का दीं पैरवी-ए-किज़्ब-ओ-रिया है उन को
हिम्मत-ए-कुफ़्र मिले जुरअत-ए-तहक़ीक़ मिले
जिन के सर मुंतज़िर-ए-तेग़-ए-जफ़ा हैं उन को
दस्त-ए-क़ातिल को झटक देने की तौफ़ीक़ मिले


इश्क़ का सिर्र-ए-निहाँ जान-ए-तपाँ है जिस से
आज इक़रार करें और तपिश मिट जाए
हर्फ़-ए-हक़ दिल में खटकता है जो काँटे की तरह
आज इज़हार करें और ख़लिश मिट जाए

गुरुवार, 10 अप्रैल 2025

सब पेच-ओ-ताब-ए-शौक़ के तूफ़ान थम गए.../ शायर : अज़ीज़ हामिद मदनी / गायन : इक़बाल बानो

https://youtu.be/TFXOCmuwFTo   

सब पेच-ओ-ताब-ए-शौक़ के तूफ़ान थम गए
वो ज़ुल्फ़ खुल गई तो हवाओं के ख़म गए

अब जिन के ग़म का तेरा तबस्सुम है पर्दा-दार
आख़िर वो कौन थे कि ब-मिज़गान-ए-नम गए

वहशत सी एक लाला-ए-ख़ूनीं कफ़न से थी
अब के बहार आई तो समझो कि हम गए

ऐसी कोई ख़बर तो नहीं साकिनान-ए-शहर
दरिया मोहब्बतों के जो बहते थे थम गए

मंगलवार, 8 अप्रैल 2025

तू मन अनमना न कर अपना.../ गीत एवं स्वर : स्वर्गीय भारत भूषण

https://youtu.be/Ar7qK7Fn_F0?si=qFL9Aioh6Kqu0EaO

तू मन अनमना न कर अपना, इसमें कुछ दोष नहीं तेरा
धरती के काग़ज़ पर मेरी तस्वीर अधूरी रहनी थी 

रेती पर लिखा नाम जैसा, मुझको दो घड़ी उभरना था 
मलियानिल के बहकाने से, बस एक प्रभात निखरना था 
गूंगे के मनो-भाव जैसे वाणी स्वीकार न कर पाए 
वैसे ही मेरा ह्रदय-कुसुम असमर्पित सूख बिखरना था 
कोई प्यासा मरता जैसे जल के अभाव में विष पी ले 
मेरे जीवन में भी कोई ऐसी मजबूरी रहनी थी

इच्छाओं से उगते बिरवे, सब के सब सफल नहीं होते 
हर कहीं लहर के जूड़े में अरुणारे कमल नहीं होते 
माटी का अंतर नहीं मगर अंतर तो रेखाओं का है 
हर एक दीप के जलने को शीशे के महल नहीं होते 
दर्पण में परछाईं जैसे दीखे तो पर अनछुई रहे 
सारे सुख सौरभ की मुझसे, वैसी ही दूरी रहनी थी
 
शायद मैंने गत जनमों में, अधबने नीड़ तोड़े होंगे 
चातक का स्वर सुनने वाले बादल वापस मोड़े होंगे
ऐसा अपराध हुआ होगा, फिर जिसकी क्षमा नहीं मिलती  
तितली के पर नोचे होंगे, हिरणों के दृग फोड़े होंगे 
अनगिनती क़र्ज़ चुकाने थे, इसलिए ज़िंदगी भर मेरे 
तन को बेचैन भटकना था, मन में कस्तूरी रहनी थी

रविवार, 6 अप्रैल 2025

उल्फ़त की नई मंज़िल को चला.../ शायर : क़तील शिफ़ाई / गायन : इक़बाल बानो

https://youtu.be/KzkZ3922bD8?si=i0XgJGyUoV0eV8dT

उल्फ़त की नई मंज़िल को चला तू बाँहें डाल के बाँहों में
दिल तोड़ने वाले देख के चल हम भी तो पड़े हैं राहों में


क्या क्या न जफ़ाएँ दिल पे सहीं पर तुम से कोई शिकवा न किया
इस जुर्म को भी शामिल कर लो मेरे मासूम गुनाहों में


जब चाँदनी रातों में तुम ने ख़ुद हम से किया इक़रार-ए-वफ़ा
फिर आज हैं हम क्यों बेगाने तेरी बे-रहम निगाहों में


हम भी हैं वही तुम भी हो वही ये अपनी अपनी क़िस्मत है
तुम खेल रहे हो ख़ुशियों से हम डूब गए हैं आहों में

शुक्रवार, 4 अप्रैल 2025

कुछ उनकी ज़फाओं ने लूटा.../ गीत : फराज़ / गायन : नाहीद अख़्तर

https://youtu.be/fbpRtTuYGn4   


कुछ उनकी ज़फाओं ने लूटा कुछ उनकी इनायत मार गई 
हम राज़-ए-मोहब्बत कह न सके चुप रहने की आदत मार गई
 
वो कौन हैं जिन को जीने का पैग़ाम मोहब्बत देती है
हम को तो ज़माने में ऐ दिल, बेदर्द मोहब्बत मार गई 

दिल ने भी बहुत मजबूर किया मिलने को भी लाखों बार मिले
जी भर के उन्हें न देखा न गया आँखों की शराफत मार गई 

दोनों से शिकायत है लेकिन, इल्ज़ाम लगायें हम किस पर 
कुछ दिल ने हमें बरबाद किया और कुछ हमें किस्मत मार गई

सोमवार, 31 मार्च 2025

इन्तज़ार-ए-सबा रहा बरसों.../ शायर : क़ैसर-उल-जाफ़री / गायन : काव्या लिमये

https://youtu.be/MUld7FONYjc   

इन्तज़ार-ए-सबा रहा बरसों
इक दरीचा खुला रहा बरसों


एक दिन उनका प्यार बरसा था
और मैं भीगता रहा बरसों


उनकी आँखों के ज़ाम याद रहे
बिन पिये भी नशा रहा बरसों


फ़ासले कम न हो सके कैसर
आमना-सामना रहा बरसों

शनिवार, 29 मार्च 2025

शुभ नव संवत्सर....

 

आप के एवं आप के परिवार के लिए 
नव-संवत्सर की हार्दिक शुभकामनायें।

पुण्य-पंथ  पर,  नव-प्रयाण  हो,
धवल कीर्ति के नवल हों शिखर।
जीवन   का,  नूतन   प्रभात  हो,
मंगलमय  हो,   नव - संवत्सर।।    

                                                            -अरुण मिश्र    

शुक्रवार, 28 मार्च 2025

शब-ए-ग़म मुझ से मिल कर ऐसे रोई.../ शायर : सईद गिलानी / गायन : नाहीद अख़्तर

https://youtu.be/bC53baHi8mM   


शब-ए-ग़म मुझ से मिल कर ऐसे रोई 
मिला हो जैसे सदियों बाद कोई 

हमें अपनी समझ आती नहीं खुद 
हमें क्या ख़ाक समझायेगा कोई 

क़रीब मंज़िल के आ के दम है टूटा 
कहाँ आ कर मेरी तक़दीर सोई 

कुछ ऐसे आज उन की याद आई 
मिली हो जैसे दौलत एक खोई 

सजा रक्खा क़फ़स है खून-ओ-पर से 
के अब तो बिजलियाँ ले आये कोई

Lyricist MAHSOOR.

The poetry of the ghazal portrays the agony of a woman who is living alone after being abandoned by her love.


Shab e gham mujh se mil kar aise roii
(The night-of-grief hugged me crying ...

Mila ho jaisey sadiyyun baad koi
As if someone has met me after centuries!)

Hamain apni samaj aati nahein khud
(I cannot even comprehend myself...

Hamain kiya khak samjhaye ga koi
How anyone can make me understand?)

Qareeb manzil ke aa ke dam hai toota
(I lost my breath as I got close to my destination,...

Kahan aa kar meri taqdeer soii
Alas! At what point my destiny has dozed off!)

Kuchh aisey aaj unki yaad aaii
(Tonight His memoirs flashed in my mind..

Mili ho jaisey doulat ek khoi
As if I have got the lost treasure!)

Sajja rakha hai qafas khoon-o-par se
(I have decorated the cage (house) with my blood and feathers..

Keh ab to bijilian ley aiey koi
Let someone fetch the lightning and destroy it..

गुरुवार, 27 मार्च 2025

निरर्थकं जन्मगता नलिन्या.../ बिल्हण / प्रस्तुति : नवनीत गलगली

 https://youtu.be/rpYxWvk4oJ4  


निरर्थकं जन्मगता नलिन्या 
यया न दृष्टं तुहिनांशुविम्बं।
उत्पत्तिरिन्दोरपि निष्फलैव 
कृता विनिद्रा नलिनी न येन।।

बुधवार, 26 मार्च 2025

आदमी वो है मुसीबत से परेशान ना हो.../ गीतकार : शम्स लखनवी एवं बेहज़ाद लखनवी / गायन : पद्‍मश्री पुष्पा हंस

https://youtu.be/Vuy4ShsxDNk  

गीतकार : शम्स लखनवी एवं बेहज़ाद लखनवी
संगीतकार: वसंत देसाई
फिल्म: शीशमहल 1950

इस गीत को पद्‍मश्री पुष्पा हंस ने गाया है 
और फिल्म में अभिनय भी किया है।

आदमी वो है मुसीबत से परेशान ना हो-2
कोई मुश्किल नहीं ऐसी के जो आसान ना हो-2
आदमी वो है मुसीबत से परेशान ना हो 

ये हमेशा से है तक़दीर की गर्दिश का चालन-2
चाँद सूरज को भी लग जाता है एक बार ग्रहण 
वक़्त की देख के तब्दीलियां हैरान ना हो- 2 
आदमी वो है मुसीबत से परेशान ना हो 

ये है दुनियां यहाँ दिन ढलता है शाम आती है- 2 
सुबह हर रोज नया ले के पयाम आती है 
जानी बूझी हुई बातों से तू अन्ज़ान ना हो 
आदमी वो है मुसीबत से परेशान ना हो 

कोई मुश्किल नहीं ऐसी के जो आसान ना हो
आदमी वो है मुसीबत से परेशान ना हो

मंगलवार, 25 मार्च 2025

फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है.../ मिर्ज़ा ग़ालिब / गायन : आबिदा परवीन

https://youtu.be/Pz1j01JkM8c  

फिर कुछ इक दिल को बे-क़रारी है
सीना जूया-ए-ज़ख़्म-ए-कारी है


फिर जिगर खोदने लगा नाख़ुन
आमद-ए-फ़स्ल-ए-लाला-कारी है

क़िब्ला-ए-मक़्सद-ए-निगाह-ए-नियाज़
फिर वही पर्दा-ए-अमारी है

चश्म दल्लाल-ए-जिंस-ए-रुस्वाई
दिल ख़रीदार-ए-ज़ौक़-ए-ख़्वारी है

वही सद-रंग नाला-फ़रसाई
वही सद-गोना अश्क-बारी है

दिल हवा-ए-ख़िराम-ए-नाज़ से फिर
महशरिस्तान-ए-सितान-ए-बेक़रारी है

जल्वा फिर अर्ज़-ए-नाज़ करता है
रोज़ बाज़ार-ए-जाँ-सिपारी है

फिर उसी बेवफ़ा पे मरते हैं
फिर वही ज़िंदगी हमारी है

फिर खुला है दर-ए-अदालत-ए-नाज़
गर्म-बाज़ार-ए-फ़ौजदारी है

हो रहा है जहान में अंधेर
ज़ुल्फ़ की फिर सिरिश्ता-दारी है

फिर दिया पारा-ए-जिगर ने सवाल
एक फ़रियाद ओ आह-ओ-ज़ारी है

फिर हुए हैं गवाह-ए-इश्क़ तलब
अश्क-बारी का हुक्म-जारी है

दिल ओ मिज़्गाँ का जो मुक़द्दमा था
आज फिर उस की रू-बकारी है

बे-ख़ुदी बे-सबब नहीं 'ग़ालिब'
कुछ तो है जिस की पर्दा-दारी है

बुधवार, 19 मार्च 2025

हटो काहे को झूठी बनाओ बतिया.../ फिल्म : मंज़िल (1960) / मजरुह सुल्तानपुरी / मन्ना डे

https://youtu.be/DoNOYo7fupU  


हटो काहे को झूटीइ बनाओ बतियाँ
ग़ैर का साथ है और रोज़ मुलाक़ातें हैं
प्यार है उस के लिये और हम से फ़क़त बातें हैं
जाओ जाओ जाओ झूठी बात न बनाओ
जल रही विरह में सैंया और न जलाओ

हटो काहे को झूटी ...

ये उड़ी उड़ी सी रंगत
ये खुले खुले से गेसु
तेरी सुबह कह रही है
तेरी रात का फ़साना

देखो जी किसी का प्यार हम से न छुपाओ
सब हमें पता है प्यारे नैन न झुकाओ

सुनो कहती है क्या क्या तुम्हरी अखियाँ
हटो काहे को झूटी ...

मंगलवार, 18 मार्च 2025

चंचल चपल चतुर चंद्रावली चाले, चटक मटककी चाल.../ पुष्टिमार्गीय रसिया

https://youtu.be/NwabFS39tgM   

चंचल चपल चतुर चंद्रावली चाले,
चटक मटककी चाल।
चटक मटककी चाल चाले,  चटक मटककी चाल ||ध्रु||

चंद्रावली दधि बेचन चालीजी,
घेरी गैल छैल बन मालीजी।
दान दधि जोबन देऊ चुकाय,
दहेड़ीको नेक दही दै खवाय,
कहे यो चंद्रावली मुस्काय,

दोहा- जो कान्हा पल्ले परो, लाओ पतौआ तोर।
छोड़ मनसुखा को गए, मोहन माखन चोर।

चंद्रावली गई सटक, मारा मनसुखके गुलचा लाल-(२)

... चंचल ||१||


पत्ता तोड़ श्याम जब आए जी,
मनसुखलाल रोवते पाएजी।
ना देखी चंद्रावली बृजनार,
करन लागे मनमें सोच विचार,
खीरकमे जाय सोये मन मार,

दोहा ढूंढते ढूंढते डोलती, घर-घर जसुमति माय।
मेरो कान्हा कीत गयो, कोई देहो बताय।

कहे मनसुखलाल खिरक में, सोय रहे नंदलाल-(२)

... चंचल ||२||

हैरत मात श्याम नाये बोलेजी,
क्यों लाला तू पर्यों रे खटोलेजी
कि तोकू कौने दीनी गार,
कि तोको आवत ताव बुखार,
बताई दे मेरे प्राण आधार,

दोहा ना काहू गारी देई, ताव न आवत मोय।
छल कर गई चंद्रावली, कहा बताउं तोय।

आपके लालके चार ब्याह करूं, घर चल मदन गोपाल-(२)

... चंचल ||३||

समद बहाऊ मैया चार बहुरीया जी,
मेरे मन बसी चंद्रावली गुजरीया जी।
कहे मैया मो डिंग आऊ,
तोए छल गई तोय वाय छलवाऊ,
चल्यो तू री ढोरे कू जाऊ,

दोहा इतनी सुनके श्यामने, सखी भेष लियो धार।
लहंगा फरीया पहर के, कर सोलह श्रृंगार।

चलत कमर वलखाएं बन गई, नव नवरंगी बाल-(२)

... चंचल ||४||

तुरंत श्याम बन गए हैं जनानीजी,
यशोदाने प्रभु नाय पहचानेजी।
उलाहना देने लगे घनश्याम,
सांवरी सखी बतायो नाम,
तिहारो छोड़ जाऊंगी गाम,

दोहा यशोदाने पहचानके, लिए कंठ लगाय।
मैया की आज्ञा भईके, रिठोरा गए आय। 
चंद्रावलीको कुछ रहे घर, सखी बने नंदलाल-(२)

... चंचल ||५||

चंद्रावलीके घरकी यहीतो डगरिया जी,
ऊंचीसी अटरीयामें लाल किवरया जी।
पहुंच गए चंद्रावलीके द्वार,
खोल बहना नेक जंग किवार,
द्वार पर कबकी रही है पुकार,

दोहा- चंद्रावली कहने लगी, सुनो सखी सुकुमार।
*कहांसे आई नाम गांम, तो मुखते उच्चार।*उसके
कहां लगे नाते में अली, कह दे सोच हवाल-(२)

... चंचल ||६||

चंद्रावली सुन सांचे बे नारी,
पीहर ते आई लागू तोरी बहनारी
कहे यो चंद्रावली समझाय,
खिलाइ गोदन जन्मी माय,
कहां ते बहन गई तू आय,

दोहा- चंद्रावली ते सामरी, सखी लगी यों कहन।
मामा फूफी की दोऊ, हम तुम लगे बहन।

ब्याह तेरे ते मोय सासरे, भेज दही तत्काल-(२)

... चंचल ||७||

मिलत बहन दोऊ भुजा रे पसारी जी, 
चंद्रावलीने गिरा रे ऊझारी जी 
कहत मे लगे लाज बानी,
लगे तेरी छाती मरदानी,
सामरी सखी कहे सयानी,


दोहा - बहेना तेरो निशा दिना, करत रहत ही सोच।
सोच करत में है गई, मेरी छाती पोच।
तेरे देखे बिना बहन में, पाये दुख कराल-(२)

... चंचल ||८||

चलरी बहन दोऊ पानी भर लावेजी,
मिलजुलके कुआंपें आवेजी।
अचंबो भयो सखी मोहे आज,
कहत मे आवे मोकु लाज,
चले तु चाल मर्दयी भाज,

दोहा - बालापनमें बा करुवा, घेर चराई गाय।
वह लकब मोय लग रही, सुन बैना चिल्लाय!
चाल मेरी मरदानी पर तू, मति करे रे प्यार- 

...चंचल ||९||

चलरी बहन तोए ऊबट न्हवाऊजी,
तेल सुगंधित अत्तर मिलाऊजी।
सामरी सखी जोर कहे हात,
मेरे घर शेर शीतला मात,
सुनी बढ़िया पुराण में बात,

दोहा तो बहना न्हाओ मती, भोजन करो अघाय।
सखी सामरी प्रेम ते, बड़े-बड़े ग्रासन खाय।
खीर खाड पकवान मिठाई, छके अनेकन माल-(२)

... चंचल ||१०||

कहत सुनत मोहे शरम लगत है री,
मरदाने तू कोर भरत है री।
सामरी सखी करें अरदास,
मेरे घर में लड़हारी सास,
देर जो करूं देय दुख त्रास,  

दोहा- भोजन कर बीडी रही, फिर है आई रैन।
पचरंग पलंग बिछायके, करो सेज सुख चैन।
चराण पलोटतमें पिंडारीनमें, लगे खुरदरी खाल-(२)

... चंचल ||११||

तेरे बिरजमें लोग ठगोरारी,
कहां बूढ़ों कहा जवान छिछोरारी।  
बताई दई मोकु ऊबट बाट,
जहां कांटे करीन के घाट,
छिल्ली पिंडरी लहंगा गयो फाट,

दोहा- सोलह श्रृंगार उतार के, पितांबर लियो धार!
चंद्रावली चकित भई, करन लगी बलिहार।
मैंतो तोहे लाल जबभी जान गई, पर्यो न खाई जाए-(२)

... चंचल ||१२||

कौन तेरी बहना ने कौन तेरा बीरा री,
तू गुजर हम जात अहीरा री।
तनिक दधि कुछल आई मोये,
छल्ली वा कारण मैंने तोये,
परस्पर बदलो जग में होये,

दोहा - चंद्रावली लीला करी, प्रेम भरी घनश्याम। 
गोवर्धन दस बीस में, छितर घासीराम।
छीतर "घासीराम" युगल छवि, निरखत भये निहाल-(२)

... चंचल ||१३||

शुक्रवार, 14 मार्च 2025

गोपी गोपाल लाल रासमंडल माहीं.../ सूरदास कृति / गायन : पूर्वा धनश्री एवं पावनी कोटाह / प्रस्तुति : कुलदीप एम. पई

https://youtu.be/h-_GZHwK108   

गोपी गोपाल लाल
रासमंडल माहीं ।
तात्ताथेई ता सुधंग
निरत गहि बाहीं ।।

द्रुम द्रुम द्रुम द्रुम मृदंग
छन नन नन रूप रंग
दृगतादृग तालतंग
उघटत रसनाई ।।

बीच लाल बीच बाल
प्रति प्रति अति द्युति रसाल
अविगत गति अति उदार
निरखि दृग सराहीं ।।

श्रीराधामुख शरत चंद
पोंछत जल श्रम अनंद
श्रीव्रजचंद लटक लटकत
करत मुकुट छाहीं ।।

चकित थकित यमुना नीर
खग मृग जग मग शरीर
धन नंदके कुमार बलि-बलि जाय
सूरदास रास सुख तिहारहीं ।।

गुरुवार, 13 मार्च 2025

रास रमंता म्हारी नथनी खोवाई.../ रचना : भक्त कवि नरसिंह मेहता / गायन : आदित्य गढ़वी

https://youtu.be/iraezTzB938  

नागर नंदजी ना लाल
नागर नंदजी ना लाल
रास रमंता म्हारी नथनी खोवाई

कान्हा जड़ी होए तो आल,
कान्हा जड़ी होए तो आल
रास रमंता म्हारी नथनी खोवाई ...

वृन्दावन नी कुञ्ज गलीं मां
बोले झिना मोर
राधाजी नी नथनी नो
शामलियो छे चोर ....
नागर नंदजी ना लाल
नागर नंदजी ना लाल
रास रमंता म्हारी नथनी खोवाई.....



मंगलवार, 11 मार्च 2025

रंग डारो न हम पे बार-बार.../ उत्तराखण्ड की होली / प्रस्तुति : गीता पन्त

https://youtu.be/Z_TBR_dNjO0  

रंग डारो न हम पे बार-बार 
मोरी चूनर कीन्हीं तार-तार 


एक हमारी जनक-दुलारी 
तुम हो लालन चार-चार 


भीग गई मैं अब न भिगाओ 
भर पिचकारी मार-मार 


लाख कही पर एक न मानी
विनती करत मैं गई रे हार

शनिवार, 8 मार्च 2025

सीपिया बरन मंगलमय तन.../ कवि स्वर्गीय भारत भूषण

https://youtu.be/V_0ZZzgfGVI  

सीपिया बरन मंगलमय तन
जीवन दर्शन बांचते नयन,
संस्कृत सूत्रों जैसी अलकें
है भाल चन्द्रमा का बचपन।।


हल्के जमुनाए होठों पर
दीये की लौ-सी मुसकानें
धूपिया कपोलों पर रोली से
शुभम् लिख दिया चंदरमा ने।
सम्मुख हो तो आरती सजी
सुधि में हो तो चंदन-चंदन।।


वरदानों से उजले-उजले 
कर्पूरी बाहों के घेरे
ईंगुरी हथेली में जैसे
अंकित हों भाग्य-लेख मेरे
पल भर तो बैठो बिखरा दूँ 
पूजा में अंजुरी भरे सुमन ।।


साड़ी की सिकुड़न-सिकुड़न में
किसने रच दी गंगा-लहरी
चितवन-चितवन ने पूरी है
रंगोली सी गहरी-गहरी
अवतरित हो रहे नख-शिख में
सारे पावन सारे शोभन ।।

शुक्रवार, 7 मार्च 2025

ज़ब्त भी चाहिए ज़र्फ़ भी चाहिए.../ शायर : इक़बाल अज़ीम / गायन : सलमान अल्वी

https://youtu.be/8TOaAF2yVTc  


ज़ब्त भी चाहिए ज़र्फ़ भी चाहिए और मोहतात पास-ए-वफ़ा चाहिए
ज़िंदगी दुश्मनों में भी मुश्किल नहीं आदमी में ज़रा हौसला चाहिए


हम को मंज़िल-शनासी पे भी नाज़ है और हम आश्ना-ए-हवादिस भी हैं
जू-ए-ख़ूँ से गुज़रना पड़े भी तो क्या जुस्तुजू को तो इक रास्ता चाहिए


अपने माथे पे बल डाल कर हमें शीश-महलों के अंदर से झिड़की न दो
हम भिकारी नहीं हैं कि टल जाएँगे हम को अपनी वफ़ा का सिला चाहिए


तुम ने आराइश-ए-गुलसिताँ के लिए हम से कुछ ख़ून माँगा था मुद्दत हुई
तुम से ख़ैरात तो हम नहीं माँगते हम को इस ख़ून का ख़ूँ-बहा चाहिए


हम को हर मोड़ पर दोस्त मिलते रहे हम कभी राह-ए-मंज़िल में तन्हा न थे
कल ग़म-ए-दोस्त था अब ग़म-ए-ज़ीस्त है आश्ना को तो इक आश्ना चाहिए


मेरी मानो तो इक बात तुम से कहूँ ये नया दौर है इस का क्या ठीक है
दोस्तों से मिलो महफ़िलों में मगर आस्तीनों का भी जाएज़ा चाहिए


हद से बढ़ कर मोहब्बत मुनासिब नहीं इस में अंदेशा-ए-बद-गुमानी भी है
दुश्मनों से त'अल्लुक़ तो है ही ग़लत दोस्तों में भी कुछ फ़ासला चाहिए


जुर्म-ए-बे-बाक-गोई की पादाश में ज़हर 'इक़बाल' को तल्ख़ियों का मिला
उस ने इस ज़हर को ही सुख़न कर लिया इस ज़माने में अब और क्या चाहिए


मंगलवार, 4 मार्च 2025

ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर.../ शायर : अख़्तर शीरानी / गायन : नय्यरा नूर

https://youtu.be/5zKTMf96iIs  

ऐ इश्क़ न छेड़ आ आ के हमें हम भूले हुओं को याद न कर
पहले ही बहुत नाशाद हैं हम तू और हमें नाशाद न कर
क़िस्मत का सितम ही कम नहीं कुछ ये ताज़ा सितम ईजाद न कर
यूँ ज़ुल्म न कर बे-दाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

हम रातों को उठ कर रोते हैं रो रो के दुआएँ करते हैं
आँखों में तसव्वुर दिल में ख़लिश सर धुनते हैं आहें भरते हैं
ऐ इश्क़ ये कैसा रोग लगा जीते हैं न ज़ालिम मरते हैं
ये ज़ुल्म तू ऐ जल्लाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

जिस दिन से बँधा है ध्यान तिरा घबराए हुए से रहते हैं
हर वक़्त तसव्वुर कर कर के शरमाए हुए से रहते हैं
कुम्हलाए हुए फूलों की तरह कुम्हलाए हुए से रहते हैं
पामाल न कर बर्बाद न कर
ऐ इश्क़ हमें बर्बाद न कर

सोमवार, 3 मार्च 2025

तुम को हम दिल में बसा लेंगे तुम आओ तो सही.../ शायरा : बेग़म मुमताज़ मिर्ज़ा / गायन : चित्रा सिंह

https://youtu.be/-lJZL5r2L2g   


तुम को हम दिल में बसा लेंगे तुम आओ तो सही,
सारी दुनिया से छुपा लेंगे तुम आओ तो सही


एक वादा करो अब हम से न बिछडोगे कभी,
नाज़ हम सारे उठा लेंगे तुम आओ तो सही


बेवफ़ा भी हो, सितमगर भी, जफ़ा पेशा भी,
हम ख़ुदा तुम को बना लेंगे तुम आओ तो सही


(सितमगर = ज़ालिम, अत्याचारी), (जफ़ा पेशा = ज़ुल्म/ अत्याचार का काम)


राह तारीक़ है और दूर है मंज़िल लेकिन,
दर्द की शम्में जला लेंगे तुम आओ तो सही


(तारीक़ = अन्धकार पूर्ण, अँधेरी, स्याह)

गुरुवार, 27 फ़रवरी 2025

आशियाँ जल गया, गुल्सिताँ लुट गया.../ शायर : राज़ इलाहाबादी / गायन : हबीब वली मोहम्मद

https://youtu.be/soIbXlttNn8  

आशियाँ जल गया, गुल्सिताँ लुट गया, हम क़फ़स से निकल कर किधर जाएँगे
इतने मानूस सय्याद से हो गए, अब रिहाई मिलेगी तो मर जाएँगे


और कुछ दिन ये दस्तूर-ए-मय-ख़ाना है, तिश्ना-कामी के ये दिन गुज़र जाएँगे
मेरे साक़ी को नज़रें उठाने तो दो, जितने ख़ाली हैं सब जाम भर जाएँगे


ऐ नसीम-ए-सहर तुझ को उन की क़सम, उन से जा कर न कहना मिरा हाल-ए-ग़म
अपने मिटने का ग़म तो नहीं है मगर, डर ये है उन के गेसू बिखर जाएँगे


अश्क-ए-ग़म ले के आख़िर किधर जाएँ हम, आँसुओं की यहाँ कोई क़ीमत नहीं
आप ही अपना दामन बढ़ा दीजिए, वर्ना मोती ज़मीं पर बिखर जाएँगे


काले काले वो गेसू शिकन-दर-शिकन, वो तबस्सुम का आलम चमन-दर-चमन
खींच ली उन की तस्वीर दिल ने मिरे, अब वो दामन बचा
कर किधर जाएँगे

बुधवार, 26 फ़रवरी 2025

शिवपञ्चाक्षरनक्षत्रमालास्तोत्रं.../ आदि शंकराचार्य कृत / स्वर : माधवी मधुकर झा

https://youtu.be/1GD9Mpvlw8Y  


श्रीमदात्मने गुणैकसिन्धवे नमः शिवाय
धामलेशधूतकोकबन्धवे नमः शिवाय |
नामशेषितानमद्भवान्धवे नमः शिवाय
पामरेतरप्रधानबन्धवे नमः शिवाय || १ ||

कालभीतविप्रबालपाल ते नमः शिवाय
शूलभिन्नदुष्टदक्षफाल ते नमः शिवाय |
मूलकारणाय कालकाल ते नमः शिवाय
पालयाधुना दयालवाल ते नमः शिवाय || २ ||

इष्टवस्तुमुख्यदानहेतवे नमः शिवाय
दुष्टदैत्यवंशधूमकेतवे नमः शिवाय |
सृष्टिरक्षणाय धर्मसेतवे नमः शिवाय
अष्टमूर्तये वृषेन्द्रकेतवे नमः शिवाय || ३ ||

आपदद्रिभेदटङ्कहस्त ते नमः शिवाय
पापहारिदिव्यसिन्धुमस्त ते नमः शिवाय |
पापदारिणे लसन्नमस्तते नमः शिवाय
शापदोषखण्डनप्रशस्त ते नमः शिवाय || ४ ||

व्योमकेश दिव्यभव्यरूप ते नमः शिवाय
हेममेदिनीधरेन्द्रचाप ते नमः शिवाय |
नाममात्रदग्धसर्वपाप ते नमः शिवाय
कामनैकतानहृद्दुराप ते नमः शिवाय || ५ ||

ब्रह्ममस्तकावलीनिबद्ध ते नमः शिवाय
जिह्मगेन्द्रकुण्डलप्रसिद्ध ते नमः शिवाय |
ब्रह्मणे प्रणीतवेदपद्धते नमः शिवाय
जिंहकालदेहदत्तपद्धते नमः शिवाय || ६ ||

कामनाशनाय शुद्धकर्मणे नमः शिवाय
सामगानजायमानशर्मणे नमः शिवाय |
हेमकान्तिचाकचक्यवर्मणे नमः शिवाय
सामजासुराङ्गलब्धचर्मणे नमः शिवाय || ७ ||

जन्ममृत्युघोरदुःखहारिणे नमः शिवाय
चिन्मयैकरूपदेहधारिणे नमः शिवाय |
मन्मनोरथावपूर्तिकारिणे नमः शिवाय
सन्मनोगताय कामवैरिणे नमः शिवाय || ८ ||

यक्षराजबन्धवे दयालवे नमः शिवाय
दक्षपाणिशोभिकाञ्चनालवे नमः शिवाय |
पक्षिराजवाहहृच्छयालवे नमः शिवाय
अक्षिफाल वेदपूततालवे नमः शिवाय || ९ ||

दक्षहस्तनिष्ठजातवेदसे नमः शिवाय
अक्षरात्मने नमद्बिडौजसे नमः शिवाय |
दीक्षितप्रकाशितात्मतेजसे नमः शिवाय
उक्षराजवाह ते सतां गते नमः शिवाय || १० ||

राजताचलेन्द्रसानुवासिने नमः शिवाय
राजमाननित्यमन्दहासिने नमः शिवाय |
राजकोरकावतंस भासिने नमः शिवाय
राजराजमित्रताप्रकाशिने नमः शिवाय || ११ ||

दीनमानवालिकामधेनवे नमः शिवाय
सूनबाणदाहकृत्कृशानवे नमः शिवाय |
स्वानुरागभक्तरत्नसानवे नमः शिवाय
दानवान्धकारचण्डभानवे नमः शिवाय || १२ ||

सर्वमङ्गलाकुचाग्रशायिने नमः शिवाय
सर्वदेवतागणातिशायिने नमः शिवाय |
पूर्वदेवनाशसंविधायिने नमः शिवाय
सर्वमन्मनोजभङ्गदायिने नमः शिवाय || १३ ||

स्तोकभक्तितोऽपि भक्तपोषिणे नमः शिवाय
माकरन्दसारवर्षिभाषिणे नमः शिवाय |
एकबिल्वदानतोऽपि तोषिणे नमः शिवाय
नैकजन्मपापजालशोषिणे नमः शिवाय || १४ ||

सर्वजीवरक्षणैकशीलिने नमः शिवाय
पार्वतीप्रियाय भक्तपालिने नमः शिवाय |
दुर्विदग्धदैत्यसैन्यदारिणे नमः शिवाय
शर्वरीशधारिणे कपालिने नमः शिवाय || १५ ||

पाहि मामुमामनोज्ञदेह ते नमः शिवाय
देहि मे वरं सिताद्रिगेह ते नमः शिवाय |
मोहितर्षिकामिनीसमूह ते नमः शिवाय
स्वेहितप्रसन्न कामदोह ते नमः शिवाय || १६ ||

मङ्गलप्रदाय गोतुरङ्ग ते नमः शिवाय
गङ्गया तरङ्गितोत्तमाङ्ग ते नमः शिवाय |
सङ्गरप्रवृत्तवैरिभङ्ग ते नमः शिवाय
अङ्गजारये करेकुरङ्ग ते नमः शिवाय || १७ ||

ईहितक्षणप्रदानहेतवे नमः शिवाय
आहिताग्निपालकोक्षकेतवे नमः शिवाय |
देहकान्तिधूतरौप्यधातवे नमः शिवाय
गेहदुःखपुञ्जधूमकेतवे नमः शिवाय || १८ ||

त्र्यक्ष दीनसत्कृपाकटाक्ष ते नमः शिवाय
दक्षसप्ततन्तुनाशदक्ष ते नमः शिवाय |
ऋक्षराजभानुपावकाक्ष ते नमः शिवाय
रक्ष मां प्रपन्नमात्ररक्ष ते नमः शिवाय || १९ ||

न्यङ्कुपाणये शिवङ्कराय ते नमः शिवाय
सङ्कटाब्धितीर्णकिङ्कराय ते नमः शिवाय |
कङ्कभीषिताभयङ्कराय ते नमः शिवाय
पङ्कजाननाय शङ्कराय ते नमः शिवाय || २० ||

कर्मपाशनाश नीलकण्ठ ते नमः शिवाय
शर्मदाय वर्यभस्मकण्ठ ते नमः शिवाय |
निर्ममर्षिसेवितोपकण्ठ ते नमः शिवाय
कुर्महे नतीर्नमद्विकुण्ठ ते नमः शिवाय || २१ ||

विष्टपाधिपाय नम्रविष्णवे नमः शिवाय
शिष्टविप्रहृद्गुहाचरिष्णवे नमः शिवाय |
इष्टवस्तुनित्यतुष्टजिष्णवे नमः शिवाय
कष्टनाशनाय लोकजिष्णवे नमः शिवाय || २२ ||

अप्रमेयदिव्यसुप्रभाव ते नमः शिवाय
सत्प्रपन्नरक्षणस्वभाव ते नमः शिवाय |
स्वप्रकाश निस्तुलानुभाव ते नमः शिवाय
विप्रडिम्भदर्शितार्द्रभाव ते नमः शिवाय || २३ ||

सेवकाय मे मृड प्रसीद ते नमः शिवाय
भावलभ्यतावकप्रसाद ते नमः शिवाय |
पावकाक्ष देवपूज्यपाद ते नमः शिवाय
तावकाङ्घ्रिभक्तदत्तमोद ते नमः शिवाय || २४ ||

भुक्तिमुक्तिदिव्यभोगदायिने नमः शिवाय
शक्तिकल्पितप्रपञ्चभागिने नमः शिवाय |
भक्तसङ्कटापहारयोगिने नमः शिवाय
युक्तसन्मनःसरोजयोगिने नमः शिवाय || २५ ।।

अन्तकान्तकाय पापहारिणे नमः शिवाय
शन्तमाय दन्तिचर्मधारिणे नमः शिवाय |
सन्तताश्रितव्यथाविदारिणे नमः शिवाय
जन्तुजातनित्यसौख्यकारिणे नमः शिवाय || २६ ||

शूलिने नमो नमः कपालिने नमः शिवाय
पालिने विरिञ्चिमुण्डमालिने नमः शिवाय |
लीलिने विशेषरुण्डमालिने नमः शिवाय
शीलिने नमः प्रपुण्यशालिने नमः शिवाय || २७ ||

शिवपञ्चाक्षरमुद्राचतुष्पदोल्लासपद्यमणिघटिताम् |
नक्षत्रमालिकामिह दधदुपकण्ठं नरो भवेत्सोमः || २८ ||

|| शिवपञ्चाक्षरनक्षत्रमालास्तोत्रं सम्पूर्णम् ||