शनिवार, 2 अक्टूबर 2010

गाँधी जयंती पर विशेष


बापू...

- अरुण मिश्र





हिन्दियों के   हृदय में,  बापू  बसे  प्यारे से हैं।
आसमाने-हिन्द  में, गॉधी जी  ध्रुव-तारे से हैं।। 

तोपें-तलवारें सदा, गल जायेंगी  इस  ऑच से।
सच-अहिंसा, शस्त्र  गॉधी जी के, अंगारे से हैं।। 

संगे-पारस हैं, कि  जो  छू ले उन्हें, सोना बने।
एक ही  क़िरदार  अपनी तरह के, न्यारे से हैं।। 

नूर से इस,हिन्द के, दुनिया हुई रोशन ‘अरुन’।
दूर  होगा  हर  कुहासा, गॉधी, उजियारे से हैं।।

                                     *

2 टिप्‍पणियां:

  1. बापू! मै भारत का वासी, तेरी निशानी ढूंढ रहा हूँ.
    बापू! मै तेरे सिद्धान्त, दर्शन,सद्विचार को ढूंढ रहा हूँ.
    सत्य अहिंसा अपरिग्रह, यम नियम सब ढूंढ रहा हूँ.
    बापू! तुझको तेरे देश में, दीपक लेकर ढूंढ रहा हूँ.

    कहने को तुम कार्यालय में हो, न्यायालय में हो,
    जेब में हो, तुम वस्तु में हो, सभा में मंचस्थ भी हो,
    कंठस्थ भी हो, हो तुम इतने ..निकट - सन्निकट...,
    परन्तु बापू! सच बताना आचरण में तुम क्यों नहीं हो?

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  2. मेरे ब्लाग पर पधारने एवं कवित्वपूर्ण टिप्पणी देने हेतु धन्यवाद, डॉ. जे.पी.तिवारी जी|
    - अरुण मिश्र.

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