- अरुण मिश्र
कभी ख़त्म होगा नहीं ‘अरुन’, ये दिलों का अपने मुआमला।
चाहे हॉ कहो, चाहे ना कहो, या कहो बुरा, या कहो भला।।
कभी रीता-रीता, भरा-भरा, कभी सूखा-सूखा, हरा-हरा।
कई रंग देखें हैं बाग़ ने, कभी गुल खिला, कभी दिल जला।।
कभी कोसों-कोस की दूरियां भी, पलक झपकते सिमट गईं।
कभी बरसों-बरस न हो सका, तय हाथ भर का भी फ़ासला।।*
@ कभी ख़त्म होगा नहीं ‘अरुन’, ये दिलों का अपने मुआमला।
जवाब देंहटाएंचाहे हॉ कहो, चाहे ना कहो, या कहो बुरा, या कहो भला।।
WAHH!! bahut badiya
प्रिय अमित जी, आप को शेर' पसंद आया, इसके लिए और सतत समर्थन के लिए ह्रदय से आभार|
जवाब देंहटाएं- अरुण मिश्र