

चाँद का मुँह तो अमावस को न काला होता...
- अरुण मिश्र
ग़र दिवाली का नतीजा न दिवाला होता |
चाँद का मुँह तो अमावस को न काला होता ||
तेल - बाती के बिना सारे दिए हैं बेचैन |
रौशनी कैसे हो, कुछ जलने तो वाला होता ||
शकर बगैर, न त्यौहार तो फ़ीके लगते |
काश ! खाया न कभी, मीठा निवाला होता ||
गुड कहाँ, दूध कहाँ, आंटा कहाँ से लायें |
इससे बेहतर था, कोई ख़्वाब न पाला होता ||
तंगदस्ती से 'अरुन ' , तंग रहे होंगे ज़रूर |
वर्ना दरवाज़े से, क्या दोस्त को टाला होता ||
सराहनीय लेखन........
जवाब देंहटाएं+++++++++++++++++++
चिठ्ठाकारी के लिए, मुझे आप पर गर्व।
मंगलमय हो आपके, हेतु ज्योति का पर्व॥
सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी
बहुत-बहुत धन्यवाद,डॉ.डंडा लखनवी जी|आप को भी ज्योति-पर्व की ढेर सारी शुभकामनायें|
जवाब देंहटाएं- अरुण मिश्र.