बुधवार, 27 अक्टूबर 2010

दीवाली पर विशेष

 
 lighting the diya

चाँद का मुँह तो अमावस को न काला होता...

 - अरुण  मिश्र


ग़र  दिवाली  का नतीजा न  दिवाला    होता |  
चाँद का मुँह तो अमावस को न काला होता ||

तेल - बाती  के  बिना  सारे  दिए   हैं   बेचैन |
रौशनी कैसे हो,  कुछ जलने तो वाला  होता ||

शकर   बगैर,  न  त्यौहार  तो   फ़ीके  लगते |
काश ! खाया  न कभी, मीठा निवाला  होता ||

गुड   कहाँ,  दूध  कहाँ, आंटा   कहाँ  से  लायें |
इससे बेहतर था, कोई  ख़्वाब न पाला होता ||

तंगदस्ती से  'अरुन ' , तंग  रहे होंगे  ज़रूर |
वर्ना दरवाज़े से, क्या दोस्त को टाला होता || 
                                 *




2 टिप्‍पणियां:

  1. सराहनीय लेखन........
    +++++++++++++++++++
    चिठ्ठाकारी के लिए, मुझे आप पर गर्व।
    मंगलमय हो आपके, हेतु ज्योति का पर्व॥
    सद्भावी-डॉ० डंडा लखनवी

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  2. बहुत-बहुत धन्यवाद,डॉ.डंडा लखनवी जी|आप को भी ज्योति-पर्व की ढेर सारी शुभकामनायें|
    - अरुण मिश्र.

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