रविवार, 17 अक्टूबर 2010

विजय-दशमी पर विशेष







जय  रामचन्द्र...












   












 
दशरथ-हृत्व्योम-बिहारी हे!
 
  - अरुण मिश्र
 
 जय  राम,  राम,  जय  रामचन्द्र।
 शोषित- जन- मन-विश्राम,चन्द्र।
 दशरथ -  हृत्व्योम - बिहारी    हे!
    रघुकुल  के  चिर-अभिराम चन्द्र।।

               शुचि, जीवन-मूल्यों के  मापक।
               हे पूर्ण-पुरुष! अग-जग-व्यापक।
               यश-वाहक,   संस्कृति-संवाहक।   
               मर्यादाओं       के       संस्थापक।।

    हे!   दीन - हीन   के   मन  के   बल।
    मुनि-हृदय-मीन, तव-भक्ति सुजल।
    हे!    चिर-नवीन- शुभ-आस-रश्मि।
    हे!  आर्त - दुखी- जन    के    संबल।।

               भारत-भुवि  के   गौरव   ललाम।
               हे! संत- सरल- चित- परमधाम।
               निष्काम !  करो  लीला- सकाम।
               हे!  राम,  राम,   जय   राम-राम।।
                                         *

4 टिप्‍पणियां:

  1. भारत-भुवि के गौरव ललाम।
    हे! संत- सरल- चित- परमधाम।
    निष्काम ! करो लीला- सकाम।
    हे! राम, राम, जय राम-राम।।
    *

    सुन्दर प्रस्तुति।

    .

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  2. शुचि, जीवन-मूल्यों के मापक।
    हे पूर्ण-पुरुष! अग-जग-व्यापक।
    यश-वाहक, संस्कृति-संवाहक।
    मर्यादाओं के संस्थापक।।
    Dashhare par ati sunder prastuti. Abhar.

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  3. हे! दीन - हीन के मन के बल।
    मुनि-हृदय-मीन, तव-भक्ति सुजल।
    हे! चिर-नवीन- शुभ-आस-रश्मि।
    हे! आर्त - दुखी- जन के संबल।।
    ...............

    बलिहार !!!

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  4. आदरणीया आशा जी एवं दिव्या जी, तथा प्रिय अमित जी, आप सब तक राम जी के यश गान की गूँज संप्रेषित हुई तो कविता सार्थक हो गई| आभार|
    - अरुण मिश्र.

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