जय रामचन्द्र... |
दशरथ-हृत्व्योम-बिहारी हे!
- अरुण मिश्र
जय राम, राम, जय रामचन्द्र।
शोषित- जन- मन-विश्राम,चन्द्र।
दशरथ - हृत्व्योम - बिहारी हे!
रघुकुल के चिर-अभिराम चन्द्र।।
शुचि, जीवन-मूल्यों के मापक।
हे पूर्ण-पुरुष! अग-जग-व्यापक।
यश-वाहक, संस्कृति-संवाहक।
मर्यादाओं के संस्थापक।।
हे! दीन - हीन के मन के बल।
मुनि-हृदय-मीन, तव-भक्ति सुजल।
हे! चिर-नवीन- शुभ-आस-रश्मि।
हे! आर्त - दुखी- जन के संबल।।
भारत-भुवि के गौरव ललाम।
हे! संत- सरल- चित- परमधाम।
निष्काम ! करो लीला- सकाम।
हे! राम, राम, जय राम-राम।।
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भारत-भुवि के गौरव ललाम।
जवाब देंहटाएंहे! संत- सरल- चित- परमधाम।
निष्काम ! करो लीला- सकाम।
हे! राम, राम, जय राम-राम।।
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सुन्दर प्रस्तुति।
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शुचि, जीवन-मूल्यों के मापक।
जवाब देंहटाएंहे पूर्ण-पुरुष! अग-जग-व्यापक।
यश-वाहक, संस्कृति-संवाहक।
मर्यादाओं के संस्थापक।।
Dashhare par ati sunder prastuti. Abhar.
हे! दीन - हीन के मन के बल।
जवाब देंहटाएंमुनि-हृदय-मीन, तव-भक्ति सुजल।
हे! चिर-नवीन- शुभ-आस-रश्मि।
हे! आर्त - दुखी- जन के संबल।।
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बलिहार !!!
आदरणीया आशा जी एवं दिव्या जी, तथा प्रिय अमित जी, आप सब तक राम जी के यश गान की गूँज संप्रेषित हुई तो कविता सार्थक हो गई| आभार|
जवाब देंहटाएं- अरुण मिश्र.