शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010

विजय दशमी की प्रतीक्षा में

                                                                              
 



 राम तुम्हारा चरित स्वयं ही काव्य है |      
 कोई कवि बन जाय सहज संभाव्य है || 
                                          - मैथिली शरण गुप्ता 
  





लहरों में सरजू के है तेरी अदा...

- अरुण मिश्र 


कहते  हैं  जब मिलते  या  होते जुदा ,  'जय राम जी' |
सदियों से   भारत में   गूंजे  है   सदा ,  'जय राम जी' ||

सद्गुणों   की   खान ,  धीर ,  सुजान ,  वीर ,  महान हैं |
शत्रु   भी  श्री राम  के  गुन  पे  फ़िदा ;  'जय राम जी' ||

बाल - लीला  से   तेरे,   गलियां   अवध  की   झूमतीं |
लहरों   में   सरजू   के  है,  तेरी  अदा ;  'जय राम जी'||

पितुवचन हित राज तज अति सहज ही वन को चले |
रोती  है  हर  आँख,  यूँ   करते  विदा ;  'जय राम जी' ||

सीस  दस ,  भुज  बीस  काटे,  भूमि  दसकंधर  गिरा |
जय  कहें   हनुमंत,  कर  ऊँची  गदा ;  'जय राम जी' ||

राम  का  ही  नाम  ले ,  करता  'अरुन'  हर  काम  हूँ |
राम  जानें    भाग्य  में,  जो  हो  बदा ,  'जय राम जी' ||
                                   *

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