- अरुण मिश्र
दश्त-ओ-सह्रा में भी चुपचाप खिला करते हैं |
ग़ुल कहाँ , किस के तगाफुल का गिला करते हैं??
हज़ार साल भी नर्गिस कहाँ मायूस हुई |
दीदावर, हुस्न को तय है कि, मिला करते हैं ||
कोई समझे न ग़र, इन हीरों की असली कीमत|
तो ये पत्थर हैं, ख़दानों में मिला करते हैं ||
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हज़ार साल भी नर्गिस कहाँ मायूस हुई |
जवाब देंहटाएंदीदावर, हुस्न को तय है कि, मिला करते हैं ||
--बहुत खूब!!
फितरत-ऐ-तगाफुल बसी रग रग में ज़माने की
जवाब देंहटाएंचाहत-ऐ-अमित कि छूटे ना तफ़ज्जुल गुल की
हज़ार साल भी नर्गिस कहाँ मायूस हुई |
जवाब देंहटाएंदीदावर, हुस्न को तय है कि, मिला करते हैं ||
कोई समझे न ग़र, इन हीरों की असली कीमत|
तो ये पत्थर हैं, ख़दानों में मिला करते हैं ||
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Bahut hi achchha bhaawman sandesh. Thanks
प्रिय समीर जी एवं आदरणीय डॉ.तिवारी जी,सहृदयता के लिए धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंप्रिय अमित जी,आपकी चाहत भरी दुआ का शुक्रगुजार हूँ|आपने एक उम्दा शेर' कहा है|
- अरुण मिश्र.