शनिवार, 9 अक्तूबर 2010
शुभ नवरात्रि
हे ! अष्टभुजी मैय्या...
- अरुन मिश्र
गंगा के तीर एक ऊँची पहाड़ी पर ,
अष्टभुजी माँ की पताका लहराती है |
विन्ध्य-क्षेत्र का है, माँ सिद्ध-पीठ तेरा घर ,
आ के यहाँ भक्तों को सिद्धि मिल जाती है |
जर्जर, भव-सागर के ज्वार के थपेड़ो से ,
जीवन के तरनी को पार तू लगाती है |
जो है बड़भागी, वही आता है शरण तेरे ,
तेरे चरण छू कर ही, गंग, बंग जाती है ||
* * * *
आठ भुजा वाली, हे! अष्टभुजी मैय्या, निज-
बालक की विनती को करना स्वीकार माँ |
जननी जगत की तुम, पालतीं जगत सारा ,
तेरी शरण आ के, जग पाए उद्धार माँ |
तुम ने सुनी है सदा सब की पुकार , आज-
कैसे सुनोगी नहीं मेरी पुकार माँ |
दुष्ट -दल -दलन हेतु , काफ़ी है एक भुजा ,
शेष सात हाथन ते , भक्तन को तार माँ ||
*
टिप्पणी : वर्ष १९९५ में इन छंदों की रचना माँ अष्टभुजी देवी, (विन्ध्याचल,उ.प्र.) के चरणों में हुई थी |
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जवाब देंहटाएंदुष्ट -दल -दलन हेतु , काफ़ी है एक भुजा ,
शेष सात हाथन ते , भक्तन को तार माँ ||
बेहद सुन्दर प्रस्तुति।
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@ अरुण जी
जवाब देंहटाएंबेहद सुन्दर अनुभव है इन छंदों को पढना और आपके ब्लॉग पर आना
इस रचना के लिए आपका आभार
हमारे प्रिय अमित भाई ने आपके सुन्दर ब्लॉग तक पहुचाया
उन्हें धन्यवाद
आदरणीया ज़ील जी,एवं प्रिय गौरव जी,सराहना हेतु आभारी हूँ|अष्टभुजी मैय्या आप पर सदा कृपालु हों|
जवाब देंहटाएंइस ब्लाग तक गौरव जी को पहुंचाने के लिए प्रिय अमित जी का भी बहुत-बहुत आभार|
- अरुण मिश्र.