अब के बादल ऐसे बरसे.....
-अरुण मिश्र
अब के बादल ऐसे बरसे।
भीग गया है मन भीतर से।।
कजरायी हर बदली-बदली।
नयन-नयन काजल को तरसे।।
मौसम के कुछ हुए इशारे।
बूँदें निकल पड़ीं सब घर से।।
ढरक गयी है रस की गागर।
बूँद-बूँद छलकी अम्बर से।।
लोक-लाज सब बिसरी राधा।
चूनर सरक गयी है सर से।।
नाचे मोर पंख फैला कर।
मुग्ध मयूरी इस तेवर से।।
मन बाहर - बाहर को ललचे।
खींच रहा कोई भीतर से।।
उन्हें 'अरुन' क्या बारिश-बादल।
जो दुबके बिजली के डर से।।
*
(पूर्वप्रकाशित )
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