https://youtu.be/l_6wuxwEnwc
यह बाबू रघुवीर नारायण कौन हैं ?
जन्म- 30 अक्टूबर 1884
जन्म स्थान- दहियावां, छपरा
पिता- जगदेव नारायण
व्यक्तित्व- 'सिर पर गोल टोपी, आंखों पर निक्कल फ्रेम का चश्मा,
उन्नत ललाट पर उभरी रेखाएं, मुखमंडल से फूटता तेज, घुटनों के
नीचे पहुंची धोती या कभी चूड़ीदार पायजामा भी। प्रतिभाशाली, मृदुभाषी, राष्ट्रवादी।
शिक्षा- विद्यालयी शिक्षा जिला स्कूल छपरा, पटना कालेज से
अंग्रेजी प्रतिष्ठा के साथ स्नातक।
1940 के बाद पूर्ण संयासी जीवन।
मृत्यु- 1 जनवरी 1955
हिंदी में रचित पुस्तकें- रघुवीर पत्र-पुष्प तथा रघुवीर रसरंग।
रंभा खंडकाव्य अप्रकाशित।
मोरा प्रान बसे हिमखोह रे बटोहिया.
एक द्वार घेरे रामा, हिम कोतवालवा से
तीन द्वारे सिंधु घहरावे रे बटोहिया.
जाहु-जाहु भैया रे बटोही हिंद देखी आऊं
जहवां कुहंकी कोइली गावे रे बटोहिया.
पवन सुगंध मंद अमर गगनवां से
कामिनी बिरह राग गावे रे बटोहिया.
बिपिन अगम धन, सघन बगन बीच
चम्पक कुसुम रंग देवे रे बटोहिया.
द्रुम बट पीपल, कदम्ब नीम आम वृक्ष
केतकी गुलाब फूल फूले रे बटोहिया.
तोता तूती बोले रामा, बोले भेंगरजवा से
पपिहा के पी-पी जिया साले रे बटोहिया.
सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसवा से
मोरे प्रान बसे गंगाधार रे बटोहिया.
गंगा रे जमुनवां के झगमग पनियां से
सरजू झमकि लहरावे रे बटोहिया.
ब्रह्मपुत्र पंचनद घहरत निसि दिन
सोनभद्र मीठे स्वर गावे रे बटोहिया.
उपर अनेक नदी उमड़ी-घुमड़ी नाचे
जुगन के जदुआ जगावे रे बटोटिया.
आगरा-प्रयाग-काशी, दिल्ली कलकतवा से
मोरे प्रान बसे सरजू तीर रे बटोहिया.
जाऊ-जाऊ भैया रे बटोही हिंद देखी आऊ
जहां ऋषि चारो वेद गावे रे बटोहिया.
सीता के बिमल जस, राम जस, कृष्ण जस
मोरे बाप-दादा के कहानी रे बटोहिया.
ब्यास, बाल्मिक ऋषि गौतम कपिलदेव
सूतल अमर के जगावे रे बटोहिया.
रामानुज रामानंद न्यारी-प्यारी रूपकला
ब्रह्म सुख बन के भंवर रे बटोहिया.
नानक कबीर गौर संकर श्री रामकृष्ण
अलख के गतिया बतावे रे बटोहिया.
विद्यापति कालीदास सूर जयदेव कवि
तुलसी के सरल कहानी रे बटोहिया.
जाऊ-जाऊ भैया रे बटोही हिंद देखी आऊ
जहां सुख झूले धान खेत रे बटोहिया.
बुद्धदेव पृथु बिक्रमार्जुन शिवाजी के
फिरी-फिरी हिय सुध आवे रे बटोहिया.
अपर प्रदेस-देस सुभग सुघर बेस
मोरे हिंद जग के निचोड़ रे बटोहिया.
सुंदर सुभूमि भैया भारत के भूमि जेहि
जन रघुबीर सिर नावे रे बटोहिया.
*बाबू रघुवीर नारायण :
1857 की क्रांति के असफल होने के बाद भारतीयों की स्वतंत्रता-प्राप्ति की
उम्मीद मद्धिम होने लगी तो राष्ट्रकवियों ने अपनी लेखनी को हथियार बनाया।
डा. राजेन्द्र प्रसाद की प्रेरणा से, अंग्रेजी कविताओं की रचना में सिद्ध
रघुवीर नारायण के हाथों ने लेखनी उठाई और मातृ भाषा भोजपुरी में
अमर कृति 'बटोहिया' की रचना की। राष्ट्र प्रेम और भक्ति से ओत-प्रोत
कर देने वाली इस रचना की ख्याति एक ही वर्ष में 1912 में बंगलाभाषी
क्षेत्र कोलकाता की गलियों तक फैल गयी। सर यदुनाथ सरकार ने
रघुवीर बाबू को लिखा- 'आई कैन नॉट थिंक आफ यू विदाउट रिमेम्बरिंग
योर बटोहिया।' स्वतंत्रता संग्राम के समय यह गीत स्वतंत्रता सेनानियों का
कंठहार बन चुका था। इसकी तुलना बंकिमचन्द्र के 'वंदेमातरम' तथा
इकबाल के 'सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा' से हुई। बिहार प्रवास के
दौरान कई कंठों से बटोहिया का सस्वर पाठ सुन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी
बोल पड़े थे- 'अरे, यह तो भोजपुरी का वंदे मातरम है।'अंग्रेजी में तमाम
कविताएं लिखने वाले रघुवीर नारायण भोजपुरी की एक ही कविता
'बटोहिया' से अमर कवियों में शुमार हो गए। इस गीत की प्रशंसा
पंडित रामावतार शर्मा, डा. राजेन्द्र प्रसाद, सर यदुनाथ सरकार,
पं. ईश्वरी प्रसाद शर्मा, भवानी दयाल संयासी, आचार्य शिवपूजन सहाय,
डा. उदय नारायण तिवारी सहित तत्कालीन सभी राष्ट्रकवियों ने की।
सन 1905 में रघुवीर बाबू ने 'ए टेल आफ बिहार' की रचना की।
इंग्लैंड के राष्ट्रकवि अल्फ्रेड आस्टीन ने सन 1906 में पत्र लिखा और
उनकी तुलना अंग्रेजी कवियों से की। पत्रिका लक्ष्मी के अगस्त 1916 के
अंक में महनीय कवि शिवपूजन सहाय ने लिखा था- 'बटोहिया कविता का
प्रचार बिहार के घर-घर में है। शहर और देहात के अनपढ़ लड़के इसे
गली-गली में गाते फिरते हैं, पढ़े-लिखों का कहना ही क्या है। यदि एक
ही गीत लिखकर बाबू रघुवीर नारायण अपनी प्रतिभाशालिनी लेखनी को
रख देते तो भी उनका नाम अजर और अमर बना रहता।'रघुवीर बाबू की
दूसरे सबसे चर्चित कविता भारत भवानी है। यह 16 सितंबर 1917 ई. को
पाटलिपुत्रा पत्र में छपी थी। हालांकि इसकी रचना सन 1912 ई. में ही हो
चुकी थी और उस वर्ष अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के पटना अधिवेशन
में वंदेमातरम की जगह भारत भवानी का ही पाठ हुआ था। बाबू रघुवीर नारायण
के नाम तथा कृतियों का उल्लेख आचार्य नलिन विलोचन शर्मा ने
'प्रोग्रेस आफ बिहार थ्रू द एजेज' में किया है। इसके पूर्व बंगला साहित्येतिहास में
नरेन्द्र नाथ सोम ने अपनी पुस्तक 'मधुस्मृति' में उनकी कृतियों का मूल्यांकन कर
बिहारवासियों को चौंका दिया था।
उम्मीद मद्धिम होने लगी तो राष्ट्रकवियों ने अपनी लेखनी को हथियार बनाया।
डा. राजेन्द्र प्रसाद की प्रेरणा से, अंग्रेजी कविताओं की रचना में सिद्ध
रघुवीर नारायण के हाथों ने लेखनी उठाई और मातृ भाषा भोजपुरी में
अमर कृति 'बटोहिया' की रचना की। राष्ट्र प्रेम और भक्ति से ओत-प्रोत
कर देने वाली इस रचना की ख्याति एक ही वर्ष में 1912 में बंगलाभाषी
क्षेत्र कोलकाता की गलियों तक फैल गयी। सर यदुनाथ सरकार ने
रघुवीर बाबू को लिखा- 'आई कैन नॉट थिंक आफ यू विदाउट रिमेम्बरिंग
योर बटोहिया।' स्वतंत्रता संग्राम के समय यह गीत स्वतंत्रता सेनानियों का
कंठहार बन चुका था। इसकी तुलना बंकिमचन्द्र के 'वंदेमातरम' तथा
इकबाल के 'सारे जहां से अच्छा हिंदोस्तां हमारा' से हुई। बिहार प्रवास के
दौरान कई कंठों से बटोहिया का सस्वर पाठ सुन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी
बोल पड़े थे- 'अरे, यह तो भोजपुरी का वंदे मातरम है।'अंग्रेजी में तमाम
कविताएं लिखने वाले रघुवीर नारायण भोजपुरी की एक ही कविता
'बटोहिया' से अमर कवियों में शुमार हो गए। इस गीत की प्रशंसा
पंडित रामावतार शर्मा, डा. राजेन्द्र प्रसाद, सर यदुनाथ सरकार,
पं. ईश्वरी प्रसाद शर्मा, भवानी दयाल संयासी, आचार्य शिवपूजन सहाय,
डा. उदय नारायण तिवारी सहित तत्कालीन सभी राष्ट्रकवियों ने की।
सन 1905 में रघुवीर बाबू ने 'ए टेल आफ बिहार' की रचना की।
इंग्लैंड के राष्ट्रकवि अल्फ्रेड आस्टीन ने सन 1906 में पत्र लिखा और
उनकी तुलना अंग्रेजी कवियों से की। पत्रिका लक्ष्मी के अगस्त 1916 के
अंक में महनीय कवि शिवपूजन सहाय ने लिखा था- 'बटोहिया कविता का
प्रचार बिहार के घर-घर में है। शहर और देहात के अनपढ़ लड़के इसे
गली-गली में गाते फिरते हैं, पढ़े-लिखों का कहना ही क्या है। यदि एक
ही गीत लिखकर बाबू रघुवीर नारायण अपनी प्रतिभाशालिनी लेखनी को
रख देते तो भी उनका नाम अजर और अमर बना रहता।'रघुवीर बाबू की
दूसरे सबसे चर्चित कविता भारत भवानी है। यह 16 सितंबर 1917 ई. को
पाटलिपुत्रा पत्र में छपी थी। हालांकि इसकी रचना सन 1912 ई. में ही हो
चुकी थी और उस वर्ष अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के पटना अधिवेशन
में वंदेमातरम की जगह भारत भवानी का ही पाठ हुआ था। बाबू रघुवीर नारायण
के नाम तथा कृतियों का उल्लेख आचार्य नलिन विलोचन शर्मा ने
'प्रोग्रेस आफ बिहार थ्रू द एजेज' में किया है। इसके पूर्व बंगला साहित्येतिहास में
नरेन्द्र नाथ सोम ने अपनी पुस्तक 'मधुस्मृति' में उनकी कृतियों का मूल्यांकन कर
बिहारवासियों को चौंका दिया था।
इस गीत को सुनकर मन अघाता ही नहीं, बार-बार सुनने की इच्छा होती है। बाबू रघुवीर नारायण की विलक्षण प्रतिभा को देख अचंभित हूँ। सरस्वती इनकी कलम में बसती थीं। इससे सुंदर देश प्रेम के गीत की मैं कल्पना नहीं कर सकता।
जवाब देंहटाएंआपको पसंद आई तो मेरा पोस्ट करना सार्थक हुआ।
जवाब देंहटाएंअद्वितीय,महानतम राष्ट्रगीत,अतुलनीय,सामान्यतः सर्वश्रेष्ठ काल जई अनंत बार सुनने की बलवती स्पृहा उमड़ती रहती है।श्रीमान स्वर्गीय बाबू रघुबीर नारायण जी को शत शत नमन। गायिका चंदन त्रिपाठी की भूरि भूरि प्रशंसा एवम साधुवाद।
जवाब देंहटाएंसुंदर कविता
जवाब देंहटाएंThis Bhjpuri song touches the heart, so melodious and meaningful.I am forwarding to our friends.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया....
जवाब देंहटाएंबाबू रघुवीर शरण की कविता और उनका व्यक्तित्व मुझे मुंशी प्रेमचंद की याद दिलाता है।दोनों में एक सामानता थी, दोनों की रचनाएं धरती से जुड़ी और देश की संस्कृति के बारे में थी
जवाब देंहटाएं