सोमवार, 22 जुलाई 2019

"बरदो न बान्हए गौरा तोर भंगिया."........ महाकवि विद्यापति.

 शिव भक्ति गीत : नचारी 

                                    
बरदो न बान्हए गौरा तोर भंगिया
अंगने अंगने खाए पथार
रोमए गेलहुँ तँ झुकि झुकि मार ।
एक मोन होएये सिव के दियनि उपराग
देहरि बैसल छथिन बासुकि नाग ।
कातिक गणपति दुइ चरबाह
इहो दुनू बालक बरद हराह ।
भनइ विद्यापति सुनू हे समाज
इहो दुनू बेकति के एको नहिं लाज ।

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