सोमवार, 11 अक्टूबर 2021

जय माँ कालरात्रि...

 


"मात्र एक वेणी है, जवाकुसुम-रक्त-कर्ण ;
गर्दभ आरूढ़, नग्न, तैल से सना शरीर ;
लम्बे ओष्ठ और कान कर्णिका-सुमन समान ;
वाम पद में जिनके लता-कंटक आभूषण। 
उन्नत ध्वज, कृष्ण वर्ण, रूप से भयंकरी 
कालरात्रि माँ, सदा हम सब की रक्षा करें।।"
(अनुवाद : अरुण मिश्र)


"एकवेणी जपाकर्ण, पूरा नग्ना खरास्थिता। 
 लम्बोष्ठी कर्णिकाकर्णी, तैलाभ्यक्तशरीरिणी। 
 वामपादोल्लसल्लोह लताकंटकभूषणा। 
 वर्धनमूर्धध्वजा कृष्णा, कालरात्रिभयंकरी।।"
(मूल श्लोक)

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