शनिवार, 9 अक्टूबर 2021

श्रीमच्छंकराचार्यकृतं देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्.../ न मन्त्रं नो यन्त्रं.../ स्वर : विधि शर्मा

 https://youtu.be/wXiVqvHZwG4

Vidhi Sharma, a playback singer, a semi-classical vocalist has been performing around the globe for more than a decade now. She is a professionally trained singer in Indian classical and light classical music.

Vidhi Sharma is a light classical vocalist. A soulful voice full of melody, Vidhi is adept at singing across various genres ranging from devotional music, ghazals, folk to sufi. Vidhi has earned Masters of Psychology degree from Delhi University.

Vidhi got introduced to music by her father Mr. M.M. Sharma, when she was 3 years old. Vidhi started with her formal training in classical music from Gandharva Mahavidyalaya and is a Sangeet Visharad. She also received training in light music- ghazals, bhajans from Sh. Mohinder Sarin- Music composer at the All India Radio.

Apart from her solo concerts, Vidhi has worked towards creating a fusion music set- up by the name of Secret Weapon in collaboration with Pt. Aay Shankar Prasanna. The band includes fusion classical, sufi, folk and world music as well.

न मन्त्रं नो यन्त्रं तदपि च न जाने स्तुतिमहो न चाह्वानं ध्यानं तदपि च न जाने स्तुतिकथा: । न जाने मुद्रास्ते तदपि च न जाने विलपनं परं जाने मातस्त्वदनुसरणं क्लेशहरणम् ॥ 1 ॥ विधेरज्ञानेन द्रविणविरहेणालसतया विधेयाशक्यत्वात्तव चरणयोर्या च्युतिरभूत् । तदेतत्क्षन्तव्यं जननि सकलोद्धारिणि शिवे कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥ 2 ॥ पृथिव्यां पुत्रास्ते जननि बहव: सन्ति सरला: परं तेषां मध्ये विरलतरलोSहं तव सुत: । मदीयोSयं त्याग: समुचितमिदं नो तव शिवे कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥ 3 ॥ जगन्मातर्मातस्तव चरणसेवा न रचिता न वा दत्तं देवि द्रविणमपि भूयस्तव मया । तथापि त्वं स्नेहं मयि निरुपमं यत्प्रकुरुषे कुपुत्रो जायेत क्वचिदपि कुमाता न भवति ॥ 4 ॥ परित्यक्ता देवा विविधविधिसेवाकुलतया मया पंचाशीतेरधिकमपनीते तु वयसि । इदानीं चेन्मातस्तव यदि कृपा नापि भविता निरालम्बो लम्बोदरजननि कं यामि शरणम् ॥ 5 ॥ श्वपाको जल्पाको भवति मधुपाकोपमगिरा निरातंको रंको विहरति चिरं कोटिकनकै: । तवापर्णे कर्णे विशति मनुवर्णे फलमिदं जन: को जानीते जननि जपनीयं जपविधौ ॥ 6 ॥ चिताभस्मालेपो गरलमशनं दिक्पटधरो जटाधारी कण्ठे भुजगपतिहारी पशुपति: । कपाली भूतेशो भजति जगदीशैकपदवीं भवानि त्वत्पाणिग्रहणपरिपाटीफलमिदम् ॥ 7 ॥ न मोक्षस्याकाड़्क्षा भवविभववाण्छापि च न मे न विज्ञानापेक्षा शशिमुखि सुखेच्छापि न पुन: । अतस्त्वां संयाचे जननि जननं यातु मम वै मृडानी रुद्राणी शिव शिव भवानीति जपत: ॥ 8 ॥ नाराधितासि विधिना विविधोपचारै: किं रुक्षचिन्तनपरैर्न कृतं वचोभि: । श्यामे त्वमेव यदि किंचन मय्यनाथे धत्से कृपामुचितमम्ब परं तवैव ॥ 9 ॥ आपत्सु मग्न: स्मरणं त्वदीयं करोमि दुर्गे करुणार्णवेशि । नैतच्छठत्वं मम भावयेथा: क्षुधातृषार्ता जननीं स्मरन्ति ॥ 10 ॥ जगदम्ब विचित्रमत्र किं परिपूर्णा करुणास्ति चेन्मयि । अपराधपरम्परावृतं न हि माता समुपेक्षते सुतम् ॥ 11 ॥ मत्सम: पातकी नास्ति पापघ्नी त्वत्समा न हि । एवं ज्ञात्वा महादेवि यथा योग्यं तथा कुरु ॥

।।इति श्रीमच्छंकराचार्यकृतं देव्यपराधक्षमापनस्तोत्रम्।।

अर्थ 

हे मात ! मैं तुम्हारा मन्त्र, यन्त्र,स्तुति, आवाहन, ध्यान, स्तुतिकथा, 
मुद्रा तथा विलाप कुछ भी नहीं जनता, 
परन्तु सब प्रकारके क्लेशोंको दूर करनेवाला 
आपका अनुसरण करना ही जानता हूँ || १ || 

सबका उद्धार करनेवाली हे करुणामयी माता ! 
तुम्हारी पूजाकी विधि न जाननेके कारण, धनके अभावमें, 
आलस्यसे और
उन विधियोंको अच्छी तरह न कर सकनेके कारण, 
तुम्हारे चरणोंकी सेवा करनेमें जो भूल हुई हो उसे क्षमा करो, 
क्योंकि पूत तो कुपूत हो जाता है पर माता कुमाता नहीं होती || २ || 

माँ ! भूमण्डलमें तुम्हारे सरल पुत्र अनेकों हैं पर उनमें एक मैं विरला ही बड़ा चञ्चल हूँ, 
तो भी हे शिवे ! मुझे त्याग देना तुम्हें उचित नहीं,
क्योंकि पूत तो कुपूत हो जाता है पर माता कुमाता नहीं होती || ३ || 

हे जगदम्ब ! हे मातः ! मैंने तुम्हारे चरणोंकी सेवा नहीं की 
अथवा तुम्हारे लिये प्रचुर धन भी समर्पण नहीं किया,
तो भी मेरे ऊपर यदि तुम ऐसा अनुपम स्नेह रखती हो 
तो यह सच ही है कि पूत तो कुपूत हो जाता है 
पर माता कुमाता नहीं होती || ४ || 

हे गणेशजननि ! मैंने अपनी पचासी वर्षसे अधिक आयु 
बीत जानेपर विविध विधियोंद्वारा पूजा करनेसे घबड़ा कर
सब देवों को छोड़ दिया है, यदि इस समय तुम्हारी कृपा न हो 
तो मैं निराधार होकर किसकी शरणमें जाऊँ ? || ५ || 

हे माता अपर्णे ! यदि तुम्हारे मन्त्राक्षरोंके कानमें पड़ते ही चाण्डाल भी 
मिठाईके समान सुमधुरवाणीसे युक्त बड़ा भारी वक्ता बन जाता है 
और महादरिद्र भी करोड़पति बनकर चिरकालतक निर्भय विचरता है 
तो उसके जप का अनुष्ठान करनेपर जपनेसे जो फल होता है,
उसे कौन जान सकता है ? || ६ || 

जो चिताका भस्म लगाये हैं, विष खाते हैं, नंगे रहते हैं, 
जटाजूट बाँधे हैं, गलेमें सर्पमाल पहने हैं, हाथमें खप्पर लिये हैं, 
पशुपति और भूतोंके स्वामी हैं, 
ऐसे शिवजीने भी जो एकमात्र जगदीश्वरकी पदवी प्राप्त की है, वह हे भवानि, 
तुम्हारे साथ विवाह होनेका ही फल है || ७ || 

हे चन्द्रमुखी माता, मुझे मोक्षकी इच्छा नहीं है, 
सांसारिक वैभवकी भी लालसा नहीं है, 
विज्ञान तथा सुखकी भी अभिलाषा नहीं है, 
इसलिये मैं तुमसे यही माँगता हूँ कि मेरी सारी आयु मृडानी, 
रुद्राणी, शिव - शिव, भवानी आदि नामोंके जपते-जपते ही बीते || ८ || 

हे श्यामा, मैंने अनेकों उपचारोंसे तुम्हारी सेवा नहीं की 
अनिष्टचिन्तनमेंतत्पर अपने वचनोंसे मैंने क्या नहीं किया ? 
फिर भी मुझे अनाथपर यदि तुम कुछ कृपा रखती हो
तो यह तुम्हे बहुत ही उचित है, 
क्योंकि तुम मेरी माता हो || ९ || 

हे दुर्गे ! हे दयासागर माहेश्वरी, 
जब मैं किसी विपत्तिमें पड़ता हूँ
तो तुम्हारा ही स्मरण करता हूँ,
इसे तुम मेरी दुष्टता मत समझना, 
क्योंकि भूखे-प्यासे बालक अपनी माँको ही याद किया करते हैं || १० || 

हे जगज्जननी ! मुझपर तुम्हारी पूर्ण कृपा है, 
इसमें आश्चर्य ही क्या है ? क्योंकि अनेक 
अपराधोंसे युक्त पुत्रको भी माता त्याग नहीं देती || ११ || 

हे महादेवि ! मेरे समान कोई पापी नहीं है और
तुम्हारे समान कोई पाप नाश करनेवाली नहीं है, 
यह जानकर जैसा उचित समझो, वैसा करो || १२ || 

|| अस्तु || 

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