गुरुवार, 14 अक्टूबर 2021

हे ! अष्टभुजी मैय्या.../ अरुण मिश्र

माँ अष्टभुजी के चरणों में निवेदित ये दो छंद, सेवाकाल में 
अष्टभुजी पहाड़ी पर स्थिति डाक बंगले में अवस्थान के 
दौरान श्रद्धा सुमन के रूप में अर्पित हुए हैं। -अरुण 

हे ! अष्टभुजी  मैय्या...

- अरुण मिश्र 

गंगा   के   तीर   एक   ऊँची   पहाड़ी   पर ,
          अष्टभुजी  माँ   की   पताका  लहराती  है। 
विन्ध्य-क्षेत्र का है, माँ  सिद्ध-पीठ तेरा  घर ,
          आ के यहाँ भक्तों को सिद्धि मिल जाती है। 
जर्जर,   भव-सागर के  ज्वार के  थपेड़ो से ,
          जीवन के  तरनी को  पार  तू  लगाती है। 
जो है  बड़भागी,  वही  आता है  शरण तेरे ,
          तेरे चरण  छू कर ही, गंग, बंग जाती है।

     *                *                *             *

आठ भुजा वाली, हे! अष्टभुजी मैय्या, निज-
          बालक की विनती को करना स्वीकार माँ। 
जननी जगत की तुम, पालतीं जगत सारा ,
          तेरी  शरण  आ  के, जग  पाए उद्धार माँ।  
तुम ने  सुनी है सदा  सब की पुकार , आज-
          कैसे  सुनोगी   नहीं    मेरी   पुकार   माँ। 
दुष्ट -दल -दलन  हेतु , काफ़ी  है  एक भुजा ,
          शेष सात हाथन ते , भक्तन को  तार माँ 

                               *  

(पूर्वप्रकाशित)

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