काव्यभावानुवाद :
-अरुण मिश्र
श्वेत अंग हैं, श्वेत वस्त्र हैं, श्वेत पुष्प- चन्दन से पूजित ।
रत्नसिंहासन क्षीरसिंधु-तट, रत्नदीप से सुर-नर अर्चित ।
चंद्रमौलि, त्रिनेत्र, अभय-वर दाता, अंकुश-पाश- कमल कर ;
शुभ-लक्ष्मी, गणपति-प्रसन्न का, शांति हेतु निज ध्यान सदा धर । ।
रत्नसिंहासन क्षीरसिंधु-तट, रत्नदीप से सुर-नर अर्चित ।
चंद्रमौलि, त्रिनेत्र, अभय-वर दाता, अंकुश-पाश- कमल कर ;
शुभ-लक्ष्मी, गणपति-प्रसन्न का, शांति हेतु निज ध्यान सदा धर । ।
*
मूल संस्कृत :
श्वेताङ्गम् श्वेतवस्त्रम् सितकुसुमगणैः पूजितं श्वेतगन्धैः
क्षीराब्धौ रत्नदीपैः सुरनरतिलकं रत्नसिंहासनस्थम् ।
दोर्भिः पाशाङ्कुशाब्जाभयवरमनसं चन्द्रमौलिं त्रिनेत्रं
ध्यायेच्छान्त्यर्थमीशं गणपतिममलं श्रीसमेतं प्रसन्नम् ।।
*
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें