शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

महालक्ष्मी अष्टकम्



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महालक्ष्मी अष्टकम्

"हंस मर रहे भूखे , उल्लुओं की  पौ बारह,
 लक्ष्मी मैया की भी सुरसती से क्या ठनी ॥"

                                         

                                           -अरुण मिश्र

शरद् पूर्णिमा बीत गयी है।
दीपावली का पक्ष प्रारम्भ हो गया है।
इस दीपावली में सरस्वती मइया की कृपा से,
इन्द्रकृत लक्ष्मी अष्टकम् (जो संभवतः पद्मपुराण में है)
का भावानुवाद करने को ठाना है।
लक्ष्मी मैया और सरस्वती मैया का बैर जग जाहिर है।
अब भगवान ही बेड़ा पार करें। (और ये दोनोँ देवियाँ भी
क्षमाशील एवं कृपालु होवें।)

काव्य-भावानुवाद (क्रमशः) :

तुम्हें प्रणाम  महामाया हे ! श्रीपीठ-स्थित, सुरगण-पूजित।
शंख, चक्र औ’ गदा लिये कर,   महालक्ष्मी   तुम्हें  नमन है।।१॥


मूल संस्कृत  :

                        इन्द्र उवाच

नमस्तेस्तु  महामाये   श्रीपीठे   सुरपूजिते।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥१॥


   

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