महालक्ष्मी अष्टकम्
का काव्य-भावानुवाद (क्रमशः ८)
-अरुण मिश्र.
श्वेताम्बर धारे हो देवी, नानालङ्कारों से भूषित।
जगत-मात हो, जगत-व्याप्त हो,महालक्ष्मी तुम्हें नमन है।।
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(इतीन्द्रकृतं महालक्ष्म्यष्टकं सम्पूर्णम् )
मूल संस्कृत :
इन्द्र उवाच
श्वेताम्बरधरे देवि नानालङ्कार् भूषिते।
जगतिस्थते जगन्मातर्महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥
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(इतीन्द्रकृतं महालक्ष्म्यष्टकं सम्पूर्णम् )
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