महालक्ष्मी अष्टकम्
का काव्य-भावानुवाद ( क्रमशः २ )
-अरुण मिश्र.
नमन तुम्हें हे गरुड़ारूढ़ा ! कोलासुर के हेतु भयङ्करि !
देवि ! समस्त पाप हरती हो; महालक्ष्मी तुम्हें नमन है।।२।।
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मूल संस्कृत :
इन्द्र उवाच
नमस्ते गरुडारूढे कोलासुरभयङ्करि।
सर्वपापहरे देवि महालक्ष्मि नमोस्तु ते॥२।।
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