सोमवार, 22 अप्रैल 2019

हे! हिरण्यगर्भा धरती माँ ....पृथ्वी दिवस पर विशेष


पृथ्वी दिवस पर विशेष 
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हे! हिरण्यगर्भा धरती माँ ...


  ‘‘स्वर्ग   कल्पना   मात्र;
    स्वर्ग का, कल्पित वैभव।
    पृथुल  सम्पदा,   सुख,
    केवल पृथ्वी पर सम्भव।।’’


हे!  हिरण्यगर्भा  धरती माँ 
अन्नपूर्णा,   शस्य-श्यामला।
मोदमयी  है  गोद  तुम्हारी,
तेरे सम्मुख स्वर्ग क्या भला? 
     
     रोम-राजि  सब वृक्ष-वनस्पति,
     पर्वत-सागर   अंग   सलोने।
     हरा-भरा  है   तेरा   ऑचल,
     जीव-जन्तु  सब,  तेरे  छौने।।

जब से  चक्षु खुले,  मॉ तेरे
वैभव  का  वैविध्य  निहारा।
तेरे  स्तन-नद-जल से  है,
निर्मित  सारा  रक्त  हमारा।।

         तेरे  श्वांसों का समीर  ही,
लगा  रहा  प्राणों  में  फेरे।
जिस रजकण से तू निर्मित मॉ,
वह  क्षिति-तत्व, देह में मेरे।।

हे!  ममतामय   महाधरित्री,
तू जग को धारण करती है।
अन्न-वायु-जल के अमृत से,
हम सब में जीवन भरती है।।

अमर रहे भू पर जीवन-क्रम,
हों सुपाच्य सब धान्य और फल।
हृष्ट-पुष्ट हों जीव-जन्तु सब,
वायु स्वच्छ हो, जल हो निर्मल।।

धरा, पवन, जल करे प्रदूषित
जो, वह सब अविवेक हटाओ।
माँ ! अपनी करुणा से, सन्तति
के मन में,  श्रद्धा  उपजाओ।।

*
                                                                              -अरुण मिश्र 

















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