पृथ्वी दिवस पर विशेष
हे! हिरण्यगर्भा धरती माँ ...
‘‘स्वर्ग कल्पना मात्र;
स्वर्ग का, कल्पित वैभव।
पृथुल सम्पदा, सुख,
केवल पृथ्वी पर सम्भव।।’’
हे! हिरण्यगर्भा धरती माँ
अन्नपूर्णा, शस्य-श्यामला।
मोदमयी है गोद तुम्हारी,
तेरे सम्मुख स्वर्ग क्या भला?
रोम-राजि सब वृक्ष-वनस्पति,
पर्वत-सागर अंग सलोने।
हरा-भरा है तेरा ऑचल,
जीव-जन्तु सब, तेरे छौने।।
जब से चक्षु खुले, मॉ तेरे
वैभव का वैविध्य निहारा।
तेरे स्तन-नद-जल से है,
निर्मित सारा रक्त हमारा।।
तेरे श्वांसों का समीर ही,
लगा रहा प्राणों में फेरे।
जिस रजकण से तू निर्मित मॉ,
वह क्षिति-तत्व, देह में मेरे।।
हे! ममतामय महाधरित्री,
तू जग को धारण करती है।
अन्न-वायु-जल के अमृत से,
हम सब में जीवन भरती है।।
अमर रहे भू पर जीवन-क्रम,
हों सुपाच्य सब धान्य और फल।
हृष्ट-पुष्ट हों जीव-जन्तु सब,
वायु स्वच्छ हो, जल हो निर्मल।।
धरा, पवन, जल करे प्रदूषित
जो, वह सब अविवेक हटाओ।
माँ ! अपनी करुणा से, सन्तति
के मन में, श्रद्धा उपजाओ।।
*
-अरुण मिश्र
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