रविवार, 28 अप्रैल 2019

"काहे रे......" बाउल गीत-संगीत की बौद्ध परंपरा / पार्वती बाउल

PARVATI TEACHES A LOT

ABOUT THE PHILOSOPHY, THE MYSTICISM, THE LANGUAGE,
THE ROOTS, THE HISTORY, THE TRADITION, THE MELODY,
THE MUSIC AND THE SPIRITUALITY WHILE SINGING.

TO LISTEN TO HER IS TO BE IN REAL 'SATSANG' .

KAHE RE.....(WHY?)

How we are rocked on the pendulum of life, swinging between hope and dread,
fear and desire! This song asks a simple but fundamental question - Why? Oh
seeker, why are you caught in this place between craving and aversion, lurching,
reeling, swinging up and down, never at peace? This poem by Bhusuku (Bhikshuk) is an example of ‘sandhya bhasha’
(twilight language) employed by Tantric Buddhist masters, who Parvathy
says were wiped out by dominant religions but are the progenitors of
Baul poetry and practice as we know it today. The language is a mix
of early Bengali, Pali and Maithili.
https://youtu.be/7JZ4__GTbjA

ABOUT THE POEM
AS NARRATED BY PARVATI HERSELF

'सांध्य भाषा'में एक कविता है जो की एक बौद्ध कविता है....सातवीं सदी से।  यह 'भुसुकू' की कविता है,
और भुसुकू पूछ रहे हैं कि, तुम क्यों पाने और ठुकराने के दायरे में जी रहे हो।

पाना और ठुकराना ? हाँ।
-या कहें स्वीकृति और अस्वीकृति के दायरे में दुनिया में जीना।

वे कहते हैं कि, हिरण......स्वयं अपना दुश्मन होता है, अपनी कस्तूरी के कारण.....और अपने मांस के कारण।
और भुसुकू ही शिकारी भी है और हिरण भी।
और उसने कभी अपना शिकार करना नहीं बंद किया।
यह हिरण न खता है, न पीता है......क्योंकि, उसको हिरणी का घर पता नहीं है।
तो वह घूमता रहता है।
एक दिन इस हिरण के सपने में देवी आती है.......और वो कहती है कि,
भुसुकू हिरण, तुम अपना समय इस दुनिया में क्यूँ बर्बाद कर रहे हो ?
अपने अंदर की कमल-वाटिका में जाओ।

फिर भुसुकू कहते हैं कि, यह सुनके वे इतनी तेज भागने लगे......
....यह भुसुकू हिरण इतनी तेजी से भागा........कि, किसी को उसके पैर दिखाई नहीं दिए।

और जो अज्ञानी है, उसे यह गीत कभी समझ नहीं आएगा।

.....'भुसुकू' कवी का नाम है ?
......जी।

यह बहुत पुरानी कविता है, पर मुझे उस समय की धुन के बारे में नहीं पता। वो खो चुकी है,
क्योंकि, इस परंपरा के ज़्यादातर कवि और संत जला के मार दिए गए।

-जला दिए गए?
-प्रबल धार्मिक आक्रमणकारियों के हाथ।
उस समय के हिन्दू और मुसलमान  शासक।
यह अफ़ग़ान आक्रमण का समय था।
 पठानों का आगमन शुरू हुआ। ......उन्होंने स्थानीय राजाओं के साथ.....
......क्योंकि, ये कवि इतने लोकप्रिय हो रहे थे.........कि, संगठित धर्म के बिना राज करना मुश्किल था।
तो फिर....इन लोगों के मठों और विहारों को जला दिया गया.......और उनको भी ज़िंदा जला दिया गया।
बस उनके कुछ ही शिष्य कुछ ताड़ के पत्तों के साथ नेपाल के राजा तक पहुँचे।
और काफ़ी अरसे तक बंगाली लोग ऐसा मानते थे कि, बंगला की पहले कोई लिपि नहीं थी.......
....सिर्फ दसवीं सदी के बाद से है, जब वैष्णव कवियों ने लिखना शुरू किया।

तो जब हरप्रसाद शास्त्री नाम के भाषाविद नेपाल गए.....राजा के पुस्तकाध्यक्ष के रूप में,
उन्हें ये ताड़ के पत्ते मिले, जो वे बंगाली में पढ़ सके।

केवल ६२ के क़रीब कवितायेँ बची हैं।
बाक़ी सारी ख़त्म !
पर उनमें राग और अन्य बातों का ज़िक्र है।
मतलब वो गायी जाती थीं।

तो मैं उनको गाने लगी, पर अपने ढंग से।
क्योंकि, मुझे ये लगता है कि, यह बाउल संगीत का मूल है।

और यह बंगाली कुछ अलग है।  मैथिली और पाली से काफ़ी मिलती-जुलती है।

THE POEM 
HINDI TRANSLATION

"काहे रे !
घृणा और तृष्णा के बीच फंसे हो।
काहे रे ?
हिरण का मांस ही
उसका बैरी है
भुसुकू शिकारी उसका पीछा
एक पल भी नहीं छोड़ता
न कुछ खाता है हिरण
और न ही पानी पीता है
वो हिरण हिरणी के घर
का रास्ता भूल गया  है
घृणा और तृष्णा के बीच फंसे हो।
काहे रे ?
हिरणी बोलती है
सुनो ओ  हिरण
यह वन छोड़ के
तुम भाग जाओ !
सुनते ही हिरण ऐसे भागा
कि, उसके पैर भी नज़र नहीं आये
कहे भुसुकू,
मूरख नहीं समझ पायेगा
घृणा और तृष्णा के बीच फंसे हो।
काहे रे ?"
      *

PARVATI EXPLAINS AFTER THE SONG 

"घिणी मिली अच्छाहू कीसा"
घिणी ( 'घिणी'  घृणा से आता है।  मतलब अस्वीकार करना।)
मिली ('मिली' का मतलब स्वीकार या ग्रहण करना ) करना /अच्छाहू कीसा (क्यों ? आप यहाँ क्यों हो ?)
एखाने आछो।  क्यों इधर हो ?
किस लिए ?
'कीसा' मतलब किसलिए 
            *


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