नन्दलाल निहार लिये जबते,
निज देह न गेह सभांरन दे..!
धरि धीरज बोल उठी बरुनी,
पद नीरज की रज झारन दे॥
पुतली कहे सामने से हट जा,
अँसुआ कहे पांय पखारन दे।
पलकें कहें झांप ले मोहन को,
अँखियां कहें और निहारन दे।।
बरुनी - बरौनी
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें