सोमवार, 31 जनवरी 2022

नक़ाब-ए-चश्म मुसलसल उठाई जाती है.../ शायर : जिगर मुरादाबादी / क़व्वाल : उस्ताद अख़्तर अता मुहम्मद

 https://youtu.be/RoJPIAstslw 

Ustad Akhtar Atta Muhammad Qawwal is the son
of Ustad Hafiz Atta Muhammad Qawwal, a legendary
"Qari" and Qawwal who migrated to Pakistan in 1947
from Jalandar after partition.

नक़ाब-ए-चश्म मुसलसल उठाई जाती है
मैं पी चुका था मगर फिर पिलाई जाती है

हमारे दर्द से जब तुमको वास्ता ही नहीं
तो फिर नज़र से नज़र क्यों मिलाई जाती है

तुम अपनी मस्त निगाहों को क्यों नहीं कहते
हमें शराब की तोहमत लगाई जाती है

वहीं लुटी मेरे सब्र-ओ-क़रार की दुनिया
जहां ज़माने की बिगड़ी बनाई जाती है

हमारी कश्ती-ए-हस्ती का अब ख़ुदा हाफ़िज 
संभालता हूँ मगर डगमगाई जाती है 

झलक से तूर पे बिजली गिराई जाती है
ये आग ख़ुद नहीं लगती लगाई जाती है

क़रीब मंज़िल-ए-मक़्सूद अल-फ़िराक़ जिगर
सफ़र तमाम हुआ नींद आई जाती है

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