https://youtu.be/5wRC-zpFsZo
(मूल रचना एवं गायन में कतिपय अंतर है।)
आजु तन राधा सज्यौ सिंगार।
नीरज-सुत-सुत-बाहन को भख, स्याम अरुन रंग कौन बिचार।।मुद्रा-पति-अंचवन-तनया-सुत, ताके उरहिं बनावहि हार।
गिरि-सुत तिन पति बिबस करन कौं अच्छत लै पूजत रिपु मार।।
पंथ-पिता आसन-सुत सोभित, स्याम घटा बन-पंक्ति अपार।
सूरदास-प्रभु अंसु-सुता-तट, क्रीड़त राधा नंदकुमार।।१२०२।।
(सूरसागर / दशम स्कन्ध / पद १२०२)
यह सूरदास जी द्वारा रचित ग्रन्थ सूरसागर के दशम स्कन्ध से उद्धृत एक कूट पद है।
अर्थ : (कोई सखी दूसरे से कहती है कि,) आज राधा ने अपने शरीर का श्रृंगार किया है।
उसने ब्रह्मा के पुत्र शंकर के पुत्र कार्तिकेय के भक्ष्य सर्प जैसे केशों के काले रंग में (माँग के)
लाल रंग को बिना विचार के सजाया है।
उसने लोपमुद्रा के पति (अगस्त्य) के आचमन (समुद्र) की पुत्री सीपी के पुत्र मोतियों से
छाती का हार बनाया है, मानो पर्वत के पुत्र (शेष) के स्वामी विष्णु (कृष्ण) को वश में
करने के लिए (मुक्ता रूपी अक्षतों से कामदेव के शत्रु (महादेव / स्तनों) का पूजन कर
रही हों अथवा जल के पिता (इन्द्र) के आसन (बादल) के पुत्र बगुलों की अपार पंक्तियाँ
काली घटा (केशों) के नीचे बनी हों।
'सूरदास' के प्रभु नन्दकुमार और राधा सूर्य की पुत्री (यमुना) के तट पर क्रीड़ा कर रहे हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें