मंगलवार, 5 जुलाई 2022

श्री सुमङ्गल स्तोत्र / वाचन : श्री बल राम पाण्डेय

 https://youtu.be/TDpz1YXchOE    

श्रीविष्णुचित्तस्वामी कृत दिव्य प्रबन्ध तिरुपल्लाण्डु का संस्कृत अनुवाद
सुमङ्गल स्तोत्र

सुमङ्गलं मङ्गलमीश्वराय ते सुमङ्गलं मङ्गलमच्युताय ते ।
सुमङ्गलं मङ्गलमन्तरात्मने सुमङ्गलं मङ्गलमब्जनाभ ते ॥
सुमङ्गलं श्रीनिलयोरुवक्षसे सुमङ्गलं पद्मभवादिसेविते ।
सुमङ्गलं पद्मजगन्निवासिने सुमङ्गलं चाश्रितमुक्तिदायिने ॥
चाणूरदर्पघ्नसुबाहुदण्डयोः सुमङ्गलं मङ्गलमादिपूरुष ।
बालार्ककोटिप्रतिमाय ते विभो चक्राय दैत्येन्द्रविनाशहेतवे ॥
शङ्खाय कोटिन्दुसमानतेजसे शार्ङ्गाय रत्नोज्ज्वलदिव्यरूपिणे ।
खड्गाय विद्यामयविग्रहाय ते सुमङ्गलं मङ्गलमस्तु ते विभो ॥
तदावयोस्तत्त्व विशिष्टशेषिणे शेषित्वसम्बन्धनिबोधनाय ते ।
यन्मङ्गलानां च सुमङ्गलाय ते पुनः पुनर्मङ्गलमस्तु सन्ततम् ॥


रंगनाथ भगवान
(1) बंगाल की खाड़ी के तट पर स्थित राज्य तमिलनाडु भारत के खूबसूरत राज्यों में से एक है, पर्यटन के स्तर पर यहां काफी कुछ देखने लायक है। एक से बढ़कर एक नायाब ऐतिहासिक धरोहर यहां देखने को मिलती है। यहां पर कई तरह के भव्य मंदिर भी हैं। इन्हीं मंदिरों में से एक रंगनाथ स्वामी मंदिर है। यह मंदिर सृष्टि के पालनहार नारायण भगवान विष्णु के स्वरूप रंगनाथ भगवान का है। भगवान रंगनाथ को विष्णु का ही अवतार माना जाता है। यह मंदिर तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली के श्रीरंगम में कावेरी नदी के तट पर स्थित है। मंदिर में एक 1000 साल पुरानी ममी भी संरक्षित है। मंदिर की भव्यता और विष्णु के रंगनाथ रूप के दर्शन के लिए भारत से ही नहीं, बल्कि विश्वभर से लाखों की संख्या में सैलानी आते हैं। जितना खूबसूरत इस मंदिर दिखने में है उतना ही दिलचस्प इसका इतिहास और निर्माण गाथा भी है। (2) यह भी माना जाता है कि इस मंदिर में भगवान राम ने लंबे समय तक देवताओं की आराधना की थी। त्रेतायुग में रावण को पराजित करने के बाद भगवान राम जब लंका से वापस लौट रहे थे तब यह स्थान उन्होने विभिषण को सौंप दिया था।ऐसी मान्यता है कि यहां पर भगवान राम विभिषण के सामने अपने वास्तविक स्वरूप विष्णु रूप में प्रकट हुए थे और यहां रंगनाथ के रूप में निवास करने की इच्छा प्रकट की थी। उस समय से ही यहां भगवान विष्णु श्री रंगनाथस्वामी के रूप में यहां वास करते हैं। (3) तिरुचिरापल्ली के श्रीरंगम में स्थित होने के कारण श्रीरंगम मंदिर के नाम से भी प्रसिद्ध है। मंदिर की खास बात यह भी है कि यह गोदावरी और कावेरी नदी के मध्य बना हुआ है। हर मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को यहां रंग जयंती उत्सव का आयोजन होता है। जो कि आठ दिन तक धूमधाम से चलता है। मान्यता है, कृष्ण दशमी के दिन कावेरी नदी में स्नान करने से आठ तीर्थ में नहाने के समान फल प्राप्त होता है। मंदिर को धरती के बैकुंठ के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर में भगवान विष्णु की अद्भुत मूर्ति है।

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