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प्रियकर: प्रियकरौ प्रियकरा: ...
मराठी फिल्म का संस्कृत गीत
श्लोक चयन अमरुक शतक एवं अभिज्ञान शाकुंतलम् से
मराठी फिल्म का संस्कृत गीत
श्लोक चयन अमरुक शतक एवं अभिज्ञान शाकुंतलम् से
संगीत : हृषिकेश, सौरभ एवं जसराज
गायन : केतकी मातेगांवकर
गायन : केतकी मातेगांवकर
केतकी मातेगांवकर
२२ फरवरी, १९९४ को नागपुर में जन्मीं, २८ वर्षीय केतकी मातेगांवकर,
एक गायिका, गीतकार, एवं अभिनेत्री हैं। उनके पिता श्री पराग मातेगांवकर
एक संगीत निर्देशक एवं माता श्रीमती सुवर्णा मातेगांवकर एक गायिका हैं।
२२ फरवरी, १९९४ को नागपुर में जन्मीं, २८ वर्षीय केतकी मातेगांवकर,
एक गायिका, गीतकार, एवं अभिनेत्री हैं। उनके पिता श्री पराग मातेगांवकर
एक संगीत निर्देशक एवं माता श्रीमती सुवर्णा मातेगांवकर एक गायिका हैं।
गीत (फिल्म में)
श्रुत्वा नाम प्रियस्य स्फुटघनपुलकं जायते यत्समन्तात्
दृष्ट्वा यस्याननेन्दुं भवति वपुरिदं चंद्रकान्तानुकारि।
तस्मिन्नागत्य कण्ठग्रहनिकटपदस्थायिनि प्राणनाथे
भग्ना मानस्य चिन्ता भवति मम पुनर्वज्रमय्या: कथंचित् ।।
प्रियकर: प्रियकरौ प्रियकरा: प्रथमः
प्रियकरं प्रियकरौ प्रियकरान् द्वितीयः
तव न जाने न जाने हृदयं मम पुन: कामो दिवापि रात्रावपि ।
निर्घृण तपति बलीयस्त्वयि वृत्तमनोरथाया अङगानि ॥
प्रियकर: प्रियकरौ प्रियकरा: प्रथमः
प्रियकरं प्रियकरौ प्रियकरान् द्वितीयः
इदमनन्यपरायणमन्यथा, हृदयसन्निहिते हृदयं मम ।
यदि समर्थयसे मदिरे क्षणे मदनबाणहतोऽस्मि हत: पुन: ।।
हे प्रिया हे प्रिये हे प्रिया: सुंदरि
प्रेयसी प्रेयसौ प्रेयस्य: प्रथमः
प्रेयसीं प्रेयसौ प्रेयसी: द्वितीयः
प्रियकर: प्रियकरौ प्रियकरा: प्रथमः
प्रियकरं प्रियकरौ प्रियकरान् द्वितीयः
भावार्थ संस्कृत में - श्री नागेंद्र पवन
भावार्थ हिंदी में - डॉ. विनायक रजत भट
श्रुत्वा नाम प्रियस्य स्फुटघनपुलकं जायते यत्समन्तात्
दृष्ट्वा यस्याननेन्दुं भवति वपुरिदं चंद्रकान्तानुकारि।
तस्मिन्नागत्य कण्ठग्रहनिकटपदस्थायिनि प्राणनाथे
भग्ना मानस्य चिन्ता भवति मम पुनर्वज्रमय्या: कथंचित् ।।
- अमरुक शतक - ५७
संस्कृतम्
यस्य प्रियस्य नामस्मरणमात्रेण शरीरे घनरोमाञ्चो जायते, यस्य मुखदर्शनेन, इन्दुसम्पर्केणेव चन्द्रकान्तशिला मम मनः प्रस्रवति, तादृशे प्रिये प्राणनाथे (आलिङ्गनाय) अतिनिकटमागते मम, वज्रमय्याः कोपस्य चिन्ता अपगच्छति, (अदर्शनादिजन्यः कोपः नश्यति) इति भावार्थः ।
हिन्दी
जिस प्रिय के नाम के स्मरण मात्र से शरीर में रोमाञ्च का अनुभव होता है, जिसके मुख के दर्शन से, चन्द्र के सम्पर्क से जैसे चन्द्रकान्त शिला द्रवित हो जाती है वैसे मेरा मन भी द्रवित होता है, वैसे प्रिय प्राणनाथ के (आलिङ्गन के लिये) समीप आने पर वज्र की तरह कठोर मेरे, क्रोध (अदर्शनादि से उत्पन्न) की चिन्ता दूर हो जाती है ।
तव न जाने न जाने हृदयं मम पुन: कामो दिवापि रात्रावपि ।
निर्घृण तपति बलीयस्त्वयि वृत्तमनोरथाया अङगानि ॥
-अभिज्ञान शाकुन्तलम् (३ /१४)
संस्कृतम्
हे प्रिय, निष्करुण, तव अवस्थामहं न जाने, किन्तु त्वयि सञ्जातकामायाः मम अङ्गानि कामः दिवा नक्तं च भृशं तपति ।
हिन्दी
हे प्रिय, निष्करुण ! तुम्हारी अवस्था को मैं नही जानती, परन्तु तुम्हारे प्रेम में पीडित मेरे अंग प्रेम में दिन और रात जलते हैं ।
इदमनन्यपरायणमन्यथा, हृदयसन्निहिते हृदयं मम ।
यदि समर्थयसे मदिरे क्षणे मदनबाणहतोऽस्मि हत: पुन: ।।
-अभिज्ञान शाकुन्तलम् (३ /१७)
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