शुक्रवार, 31 जुलाई 2020

ऋषि तुल्य कवि श्री बशीर अहमद मयूख

https://youtu.be/8eArFBr0z-Y

कोटा के विख्यात कवि, बशीर अहमद मयूख अब ९४ वर्ष के हैं। 
उन्होंने कविता और हिंदुत्व के क्षेत्र में मिसाल कायम की है। उन्होंने 
ऋग्वेद की ऋचाओं का हिंदी काव्यानुवाद किया है। सभी धर्मो के 
प्रमुख ग्रंथों के खास- खास सूक्तों को भी हिंदी कविता की लडि़यों 
में पिरोया है। कोटा में उनके द्वारा निर्मित शिव मंदिर में नियमित 
पूजा अर्चना होती है। बिड़ला फाउंडेशन ने उनकी पुस्तक "अवधूत 
अनहद नाद" को बिहारी पुरस्कार प्रदान किया है। जापान के एक 
विश्व विद्यालय के हिंदी विभाग में उनके द्वारा लिखी कविता पढ़ाई 
जा रही है। श्री मयूख को वर्ष २०१८ में, केंद्र सरकार की ओर से, 
प्रवासी भारतीय केंद्र नई दिल्ली में आयोजित समारोह में राष्ट्रपति 
रामनाथ कोविंद द्वारा 'विश्व हिन्दी सम्मान' से भी नवाजा गया है।

श्री मयूख गत पाँच दशकों से निरंतर सृजन रत हैं। आपके द्वारा 1973 में 
प्रकाशित ‘स्वर्ण रेख’, जिसमें ऋग्वेद की ऋचाओं का भावानुवाद है, 
उनका कवि सम्मेलनों में हजारों श्रोताओं के बीच में एक ऋषि की 
ओजस्वी वाणी में वाचन करना, अपने आपमें अद्भुद प्रयास रहा है। 
श्री मयूख ने, जैन सूक्तों का, गुरुग्रन्थ साहिब का भावानुवाद कर, 
एक मुस्लिम भारतीय सांस्कृतिक मन की जिस उदात्तता का परिचय 
दिया है, वह अद्भुद है। आपके द्वारा ‘‘मयूरवेश्वर  शिव मंदिर,’’ की स्थापना, 
तथा वहां धार्मिक, आध्यात्मिक वातावरण की संरचना के साथ सामाजिक 
चेतना का केन्द्र बनाने का प्रयास अपने आप में अभूतपूर्व है।
श्री मयूख द्वारा सृजित कृतियां हैं -

1. ‘स्वर्ण रेख’- (ऋग्वेद की ऋचा मंत्रों का काव्य रूप है- जो 1973 में 

प्रकाशित हुआ है। दो कविताएं, एन.सी. आर.टी. द्वारा प्रकाशित हिन्दी 
के 11वीं व बारवीं के पाठ्यक्रम में सम्मिलित है।
2. ‘अर्हत ’(1975) सूक्त काव्य का भाषानुवाद
3. ‘ज्योतिपथ (1984)’ वेद, उपनिषद, गीता, कुरान, गुरुग्रन्थ साहिब, 

जैन, बौद्ध आगम का भाषानुवाद
4. ‘सूर्य बीज’ (1991)
5. ‘अवधू अनहद नाद ' (1998) ...., बिहारी पुरस्कार प्राप्त।
6. संस्कृति के झरोखे से (2000) सांस्कृतिक निबन्ध संग्रह

उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् / भारत सिम्फनी / डॉ एल सुब्रमणियम / लंदन सिम्फनी

https://youtu.be/dOlf-Ho6Kw4
अयं बन्धुरयं नेति गणना लघुचेतसाम्। उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥

अर्थ-यह अपना बन्धु है और यह अपना बन्धु नहीं है,
इस तरह की गणना छोटे चित्त वाले लोग करते हैं।
उदार हृदय वाले लोगों की तो (सम्पूर्ण) धरती ही परिवार है।

Bharat Symphony is a tapestry of Indian culture in four movements,
symbolizing the four major periods of Indian (musical) heritage, namely:
Prehistoric Vedic period, Mughal period, British Raj period and
Post-Independence period.
Vasudhaiva Kutumbakam is a Sanskrit phrase which means –
“The world is one family.” The original verse appears in
Maha Upanishad (Chapter 6, verse 71) and also in the Vedas.
This is considered one of the most important moral values in Indian society. This verse of Maha Upanishad is engraved in the entrance hall of
the parliament of India.
Featuring :
Pt. Jasraj, K J Yesudas, Begum Parveen Sultana, S P Balasubrahmanyam, Usha Uthup, Kavita Krishnamurti Subramaniam, Hariharan, Anup Jalota, Suresh Wadkar, Sonu Nigam, Bindu Subramaniam, and Mahati Subramaniam. It also features Pt. Birju Maharaj and Hema Malini with the
London Symphony Orchestra, London Voices. With instrumentalists - Corky Siegel, Ernie Watts, Miya Masaoka,
Tanmoy Bose, DSR Murthy, Jeno Lisztes, Ambi Subramaniam,
and Oystein Baadsvik.
This song has over a hundred musicians in addition to the featured soloists!

बुधवार, 29 जुलाई 2020

मोहे पनघट पे नन्द लाल... / पनघट का रोमांस / संजीवनी भेलांडे

https://youtu.be/8Ztc1qxwZ28 
Mughal-e-Azam (1960): In this film directed by K. Asif, 
the famous music director Naushad engaged Flute Mastreo
 Pannalal Ghosh (Pannababuji) for the flute playback 
of the Krishna Bhajan 'Mohe Panghat Pe Nandalal Chhed 
Gayo Re' picturised on Madhubala.


Based on Raag Gara which is a late morning or early afternoon Raag, the song is credited to Shakeel Badayuni and Naushad. It brings out not only the transparent beauty of Madhubala but also faultless singing by Lata Mangeshkar. But not many know that the song is not an original one (including the music and lyrics). It is said that this thumri was written by Raghunath Brahmbhatt ‘Raskavi’ from Gujrat for a play from 1920s called Chhatra Vijay. But there is also a controversy of this song being a traditional bandish for thumri.
It is thus mentioned in the book Encyclopedia Of Hindi Cinema – In Hindustani films, the tabla and the harmonium were used to provide the effects for chase scenes and then to play the sad and the happy melodies acquired from classical ragas and folk songs. At times they were played with words and the bandish, or the phrase of the raga. For instance Kalka Bindadin used to sing Mohe Panghat Pe Nandlal Chhed Gayo Re in Wajid Ali Shah’s court.
फिल्म : मुग़ल-ए-आज़म (1960)
संगीत : नौशाद अली
गीत : शकील बदायुनी
गायिका : लता मंगेशकर

मोहे पनघट पे नन्दलाल छेड़ गयो रे
मोरी नाजुक कलईया मरोर गयो रे
मोहे पनघट पे...

कंकरी मोहे मारी, गगरिया फोर डारी
मोरी सारी अनारी भिगोय गयो रे
मोहे पनघट पे...

नैनों से जादू किया, जियरा मोह लिया
मोरा घूँघटा नजरियो से तोड़ गयो रे
मोहे पनघट पे...

मंगलवार, 28 जुलाई 2020

मैत्रीं भजत अखिलहृज्जेत्रीम्.../ जगद्गुरु श्री चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती / श्रीमती एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी


https://youtu.be/az9zYiC3JHo

मैत्रीं भजत अखिलहृज्जेत्रीम्.../ 
रचना : कांची के परमाचार्य जगद्गुरु श्री चन्द्रशेखरेन्द्र सरस्वती (१८९४-१९९४) / 
गायन : भारतरत्न श्रीमती एम. एस. सुब्बुलक्ष्मी अम्मा (१९१६-२००४) / 
प्रस्तुति : संयुक्त राष्ट्र (१९६६) 


मैत्रीं भजत अखिलहृज्जेत्रीम् 
आत्मवदेव परानपि पश्यत ।
युद्धं त्यजत स्पर्धां त्यजत
त्यजत परेषु अक्रमम् आक्रमणम् ॥
जननी पृथिवी कामदुघाऽऽस्ते
जनको देवः सकलदयालुः ।
दाम्यत दत्त दयध्वं जनताः
श्रेयो भूयात् सकलजनानाम् ॥

भावानुवाद :
सबका हृदय जीतने वाला  
मैत्री-भाव भजो। 
स्वयं सरीखा सब को देखो,
त्यागो अनुचित आक्रामकता; 
स्पर्धा-युद्ध तजो।। 

माँ है, सकल कामदा पृथ्वी 
सर्व-दयालु पिता है ईश्वर।
सकल जनों के हेतु श्रेय हैं, 
सयंम, दान, दया के शुभ वर।।
-अरुण मिश्र 

दाम्यत दत्त दयध्वं :
Mythological Reference: The Brihadaaranyaka Upanishad has the parable of the three da’s. When the divine beings, humans and demons approached their creator, Lord Brahma and asked for a lesson, he uttered the word “da“. The Devas understood it to be dāmyata, the humans understood it as datta and the Asuras took it to mean dayadhvaṃ.

dāmyata – Restrain yourself
datta – Give 
dayadhvaṃ – Be kind

ENGLISH TRANSLATION :
maitrīṃ bhajata akhilahṛjjetrīm - Cultivate Friendship and Humanity, which will conquer the Hearts of Everyone.
ātmavadeva parānapi paśyata - Look upon others as similar to yourself.
yuddhaṃ tyajata - Renounce war
spardhāṃ tyajata - Forsake (unhealthy) competition
tyajata pareṣu akramam ākramaṇam - Forgo unrightful aggression or acquiring by force
jananī pṛthivī kāmadughā(ā)ste - Mother Earth yields all that we require
janako devaḥ sakaladayāluḥ - God, our father, is most compassionate

dāmyata - practice Restraint
datta - be kind and give unto others
dayadhvaṃ - Be Kind to others
janatāḥ - Oh People of the World
śreyo bhūyāt sakalajanānām - May All People attain all goodness (happiness and prosperity in this world as well as spiritual upliftment)

अवधी दिवस कै बधाई

Tulsidas Jayanti || Kethoda.com

अवधी भाषा दिवस प्रत्येक वर्ष को रामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास 
जयंती पर मनाई जाती है। अवध की संस्कृतिभाषासाहित्यलोककलानृत्य-संगीत 
व परम्पराओं को फिर से प्रतिष्ठा दिलाने के उद्देश्य से श्रीरामचरित मानस के रचयिता 
महाकवि तुलसीदास की जयंती को हर वर्ष ‘अवधी दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।

हमरे पुरखन कै भाषा अवधी...
(फेस बुक से साभार)
हमरे पुरखन कै भाषा अवधी
दुख-सुख कै परिभाषा अवधी
देस अवध कै माटी चन्नन
गट्टा खील बताशा अवधी !

मंद मंद पुरवाई अवधी
पुरइन अस हलराई अवधी
चिरइन कै कचपच कचपच सुर
भोरे कै अउँहाई अवधी!
पुरबी सूक तरइया अवधी
पाछे पियर जोन्हइया अवधी
अम्मा के चूल्हा चौका मा
सोंधी गील कनइया अवधी !
दतुइन दूध कलेवा अवधी
तपता घामै सेवा अवधी
चना चबैना खरमिटाव का
घुघुरी सिखरन मेवा अवधी !
गरमा गरम रजाई अवधी
सगरौ देह ओढ़ाई अवधी
आजी कै कथरी जस गुलगुल
ओढ़ी अउर बिछाई अवधी !
अमरख लाग रोवायी अवधी
पीरा कै गहराई अवधी
आकुल मन चिग्घार परै जब
'हे माई !' गोहराई अवधी
अँगना चलै बकइयाँ अवधी
दउरै पइयाँ पइयाँ अवधी
गवना के धूरी माटी मा
मइया लेय बलइया अवधी !
ढुकवल, सुर्र, कबड्डी अवधी
गुल्ली-डंडा, लँगड़ी अवधी
झाबर, गुट्टी एकड़ा दुकड़ा
बाग सियारे क डंडी अवधी !
फरा, गुलगुला, लपसी अवधी
तलखा, अमचुर, अरसी अवधी
गुड़धनिया, गोझिया औ मुचुकी
रिकवछ, सहिना तरसी अवधी
हर मन कै अभिलाषा अवधी।
फगुआ बारहमासा अवधी।
नहछू, सोहर, गावैं नित नित
अमर होय ई भाषा अवधी।।

दीवाना हुआ बादल.../ अनन्या सबनीस

https://youtu.be/CQGcbHeKJ3M


She is 14 years old Ananya Sabnis daughter of Manisha Sabnis
from Kandivali Mumbai.

फिल्म : कश्मीर की कली (१९६४)
संगीत : ओ.पी.नैय्यर
गीत : एस.एच.बिहारी
गायक : मो.रफ़ी, आशा भोंसले

ये देख के दिल झूमा
ली प्यार ने अंगड़ाई
दीवाना हुआ बादल
सावन की घटा छाई
ये देखके दिल झूमा
ली प्यार ने अंगड़ाई
दीवाना हुआ बादल
ऐसी तो मेरी तक़दीर न थी
तुमसा जो कोई महबूब मिले
दिल आज खुशी से पागल है
दिल आज खुशी से पागल है
ऐ जान-ए-वफ़ा तुम खूब मिले
ऐ जान-ए-वफ़ा तुम खूब मिले
दिल क्यूँ ना बने पागल
क्या तुमने अदा पाई
ये देखके दिल झूमा
ली प्यार ने अंगड़ाई
दीवाना हुआ बादल
जब तुमसे नज़र टकराई सनम
जज़्बात का इक तूफ़ान उठा
तिनके की तरह मैं बह निकली
तिनके की तरह मैं बह निकली
सैलाब मेरे रोके न रुका
सैलाब मेरे रोके न रुका
जीवन में मची हलचल
और बजने लगी शहनाई
ये देखके दिल झूमा
ली प्यार ने अंगड़ाई
दीवाना हुआ बादल
है आज नये अरमानों से
आबाद मेरे दिल की नगरी
बरसों से खिज़ां का मौसम था
बरसों से खिज़ां का मौसम था
वीरान बड़ी दुनिया थी मेरी
वीरान बड़ी दुनिया थी मेरी
हाथों में तेरा आँचल
आया के बहार आई
ये देखके दिल झूमा
ली प्यार ने अंगड़ाई
दीवाना हुआ बादल
सावन की घटा छाई
ये देखके दिल झूमा
ली प्यार ने अंगड़ाई
दीवाना हुआ बादल
सावन की घटा छाई
ये देखके दिल झूमा
ली प्यार ने अंगड़ाई
दीवाना हुआ बादल




सोमवार, 27 जुलाई 2020

लपक झपक तू आ रे बदरवा.../ शैलेन्द्र / मन्ना डे / शंकर-जयकिशन

https://youtu.be/yDr9g_x2nYk
"Lapak jhapak tu aare badarwaa" from the film 'Boot Polish' (1953).

This is supposed to be a comedy song sung by a lesser actor 
in the movie, and comedy is sought to be introduced by singing 
a semi classical song.

Under such circumstances, Manna Dey was the singer to turn to. 
And Manna Dey was, who sang this song.This song based on 
raag Darbari kanada in carnatic music is brilliantly sung by 
Manna Dey.The singer has combined the elements of rasa (style) 
and hasya (humour) with elan. Composed in the style of a raagmala 
(multiple ragas strung together) from the Kanada and Malhar 
families, the song combines the stoic tradition of classical music to 
evoke a hilarious result. 

But as things stand now, this song, that was there to provide 
comic relief to the audience is perhaps the most remembered 
part of this movie.This song has indeed effortlessly entered into 
the hall of fame of immortal Bolywood songs. Such a classical 
magic with such comic lyrics so well performed by David & Co  
in the film.


The lyrics were written by Shailendra and the music was 
composed by Shankar Jaikishan. And their collaboration 
with Manna Dey led to this unforgettable song. And it is 
difficult to believe that this song is 67 years old. This song 
still sounds as fresh and refreshing as it has always sounded.


गाना : लपक झपक तू आ रे बदरवा 
चित्रपट : बूट पॉलिश (१९५३)
संगीतकार : शंकर - जयकिशन
गीतकार : शैलेन्द्र
गायक : मन्ना डे 

लपक जपक तू आ रे बदरवा...
सर की खेती सूख रही है
बरस बरस तू आ रे बदरवा...

झगड़ झगड़ कर पानी ला तू

अकड़ अकड़  बिजली चमका तू
तेरे घड़े में पानी नहीं तो
पनघट से भर ला
रे बदरवा   ...

बन में कोयल कूक उठी है

सब के मन में हूक उठी है
भूदल से तू बाल उगा दे
झट पट तू बरसा
रे बदरवा...

रविवार, 26 जुलाई 2020

दिल धड़कने का सबब याद आया.../ नासिर काज़मी (१९२३-१९७२) की मशहूर ग़ज़ल / नूर जहाँ

https://youtu.be/WagZhH9qPdU

दिल धड़कने का सबब याद आया 
वो तिरी याद थी अब याद आया 

आज मुश्किल था सँभलना ऐ दोस्त 
तू मुसीबत में अजब याद आया 


दिन गुज़ारा था बड़ी मुश्किल से 
फिर तिरा वादा-ए-शब याद आया 

तेरा भूला हुआ पैमान-ए-वफ़ा 
मर रहेंगे अगर अब याद आया 

फिर कई लोग नज़र से गुज़रे 
फिर कोई शहर-ए-तरब याद आया


हाल-ए-दिल हम भी सुनाते लेकिन 
जब वो रुख़्सत हुआ तब याद आया 

बैठ कर साया-ए-गुल में 'नासिर' 
हम बहुत रोए वो जब याद आया 

गुरुवार, 23 जुलाई 2020

रूदादे-सितम कह कर जब मैंने कहा समझे.../ हफ़ीज़ जालन्धरी (१९००-१९८२) / वहादत रमीज़

https://youtu.be/xOdyD1P8s2U
रूदादे-सितम कह कर जब मैंने कहा समझे
मुंह फेर के फ़रमाया  झूठे को खुदा समझे 

वो मेरी दुआओं को समझे कि शिक़ायत है 
क्यों मैंने शिकायत की इज़ उनकी बला समझे 

जो मुझपे मुसीबत है सब दिल की बदौलत है 
इस दिल ने मुझे खोया इस दिल को खुदा समझे 

सोचो तो इमाम दिल में जो क़द्र है वफ़ा की 
जो चाहने वाले को मजबूरे-वफ़ा समझे 


मंगलवार, 21 जुलाई 2020

मैं ने शायद तुम्हें पहले भी कहीं देखा है.../ साहिर लुधियानवी / प्रस्तुति : राजेश पवार

https://youtu.be/5pY0kvFutgc
गीत : मैं ने शायद तुम्हें, पहले भी कहीं देखा है 

फिल्म : बरसात की रात (१९६०)

संगीतकार : रोशन 
गीतकार : साहिर लुधियानवी 
गायक : मोहम्मद रफ़ी

मैं ने शायद तुम्हें पहले भी कहीं देखा है

अजनबी सी हो मगर गैर नहीं लगती हो
वहम से भी जो हो नाज़ुक वो यकीं लगती हो
हाय ये फूल सा चेहरा ये घनेरी ज़ुल्फ़ें
मेरे शेरों से भी तुम मुझको हंसीं लगती हो

देखकर तुमको किसी रात की याद आती है
एक ख़ामोश मुलाक़ात की याद आती है
जहाँ में हुस्न की ठंडक का असर जगता है
आंच देती हुई बरसात की याद आती है

जिसकी पलकें मेरी आँखों पे झुकी रहती हैं
तुम वही मेरे ख़यालों की परी हो कि नहीं
कहीं पहले की तरह फिर तो न खो जाओगी
जो हमेशा के लिये हो वो खुशी हो कि नहीं

मैं ने शायद तुम्हें पहले भी कहीं देखा है

सोमवार, 20 जुलाई 2020

I wandered lonely as a Cloud.../ William Wordsworth (1770-1850)

https://youtu.be/d5-KMRUxyug
This video tells the story of how William Wordsworth's poem
'I wandered lonely as a Cloud' was composed. The most famous poem in the English language was written in 1804,
two years after William Wordsworth saw the daffodils while walking by
the shores of Ullswater on a stormy day with Dorothy, his sister.
Wordsworth's inspiration for the poem came from an account written
by Dorothy in her journal.

I wandered lonely as a cloud


I wandered lonely as a cloud
That floats on high o'er vales and hills,
When all at once I saw a crowd,
A host, of golden daffodils;
Beside the lake, beneath the trees,
Fluttering and dancing in the breeze.

Continuous as the stars that shine
And twinkle on the milky way,
They stretched in never-ending line
Along the margin of a bay:
Ten thousand saw I at a glance,
Tossing their heads in sprightly dance.

The waves beside them danced; but they
Out-did the sparkling waves in glee:
A poet could not but be gay,
In such a jocund company:
I gazed—and gazed—but little thought
What wealth the show to me had brought:

For oft, when on my couch I lie
In vacant or in pensive mood,
They flash upon that inward eye
Which is the bliss of solitude;
And then my heart with pleasure fills,
And dances with the daffodils.