शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

ये जफ़ा-ए-ग़म का चारा.../ फ़ैज़ अहमद 'फ़ैज़' /आबिदा परवीन

https://youtu.be/c_o_m-obQ7k 
ये जफ़ा-ए-ग़म का चारा, वो नजाते-दिल का आलम 
तेरा हुस्न दस्त-ए-ईसा, तेरी याद रू-ए-मरियम

दिल-ओ-जां फ़िदा-ए-राहे, कभी आ के देख हमदम
सरे-कू-ए-दिलफ़िगारां, शबे आरज़ू का आलम

तेरी दीद के सिवा है, तेरे शौक में बहारां
वो ज़मीं जहां गिरी है, तेरी गेसूओं की शबनम

ये अजब क़यामतें हैं, तेरी रहगुज़र से गुज़रा
न हुआ कि मर मिटे हम, न हुआ कि जी उठे हम

लो सुनी गयी हमारी, यूँ फिरे हैं दिन कि फिर से
वही गोशा-ए-क़फ़स है, वही फ़स्ले-गुल का आलम


(दस्त-ए-ईसा - ईसा मसीह का हाथ
रू-ए-मरीयम -मरियम का चेहरा 
फ़िदा - कुर्बान 
दिलफ़िगारां - टूटे दिल वाले 
गोशा-ए-क़फ़स - पिंजरे का कोना)

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