गुरुवार, 2 जुलाई 2020

कभी क़िताबों में फूल रखना.../ हसन रिज़वी (1946-2002) / नूर जहाँ

https://youtu.be/8S8AucqX1iE

कभी किताबों में फूल रखना, कभी दरख़्तों पे नाम लिखना
हमें भी याद आज तक वो नज़र से हर्फ़-ए-सलाम लिखना
वो चाँद चेहरे वो बहकी बातें सुलग़ते दिन थे महकती रातें
वो छोटे छोटे से काग़ज़ों पर मोहब्बतों के पयाम लिखना
गुलाब चेहरों से दिल लगाना वो चुपके चुपके नज़र मिलाना
वो आरज़ुओं के ख़ाब बुनना वो क़िस्सा-ए-ना-तमाम लिखना
मिरे नगर की हसीं फ़ज़ाओं कहीं जो उनका निशान पाओ
तो पूछना ये कहाँ बसे वो कहाँ है उनका क़याम लिखना 

खुली फ़ज़ाओं में साँस लेना अबस है अब तो घुटन है ऐसी                                                कि चारों  जानिब शजर खड़े हैं सलीब-सूरत तमाम लिखना 

गई रुतों में 'हसन्' हमारा बस एक ही तो ये मशग़ला था
किसी के चेहरे को सुब्ह कहना किसी की ज़ुल्फ़ों को शाम लिखना 
                                             *

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