शनिवार, 13 मार्च 2021

ग़ज़ल के दिलरुबा लहज़े में बोलूँ.../ अज़हर इनायती

https://youtu.be/YpVTcgH-BcQ

ग़ज़ल के  दिलरुबा लहज़े में बोलूँ 
वो आ जाये  तो मैं  फूलों में तोलूँ 

बदल जाते हैं  मंज़र  एक पल में 
अभी मैं  बंद आँखों को  न खोलूँ 

तेरी आँखें नहीं क्या  मेरी आँखें 
तेरी आँखों से मैं कुछ देर सो लूँ 

जिसे  खोया है  मैंने  कहकहों में 
वो मिल जाये तो मैं जी भर के रो लूँ 

मज़ा  देने लगे  जब  ख़ुद-कलामी 
तो फिर काहे को मैं तुझ-मुझ से बोलूँ 

दिलरुबा - हृदयग्राही 
मंज़र - दृश्य 
ख़ुद-कलामी - खुद से बातचीत 

अज़हर इनायती
15 अप्रैल 1946 को उत्तर प्रदेश के रामपुर में जन्मे अज़हर इनायती को बचपन 
से ही शायरी का शौक था। 12 साल की उम्र में ही रामपुर के ख्याति नाम शायर 
जनाब महशर इनायती को उन्होंने अपना उस्ताद मान लिया और अपना नाम भी 
अज़हर अली खां से 'अज़हर इनायती' रख लिया। निहायत सलीकेदार और उम्दा 
शायरी करने वाले अज़हर साहब ग़ज़ल को टूट कर चाहने वाले शायर हैं। अमेरिका, 
क़तर, दुबई, अबूधाबी , शारजाह और दुनिया के कोने- कोने में जाकर अज़हर साहब 
ने शायरी की है। 

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