https://youtu.be/W8PqFwH2uN0
15 अप्रैल 1946 को उत्तर प्रदेश के रामपुर में जन्मे अज़हर इनायती को बचपन
से ही शायरी का शौक था। 12 साल की उम्र में ही रामपुर के ख्याति नाम शायर
जनाब महशर इनायती को उन्होंने अपना उस्ताद मान लिया और अपना नाम भी
अज़हर अली खां से 'अज़हर इनायती' रख लिया। निहायत सलीकेदार और उम्दा
शायरी करने वाले अज़हर साहब ग़ज़ल को टूट कर चाहने वाले शायर हैं। अमेरिका,
क़तर, दुबई, अबूधाबी , शारजाह और दुनिया के कोने- कोने में जाकर अज़हर साहब
ने शायरी की है।
घर तो हमारा शो'लों के नर्ग़े में आ गया
घर तो हमारा शो'लों के नर्ग़े में आ गया
लेकिन तमाम शहर उजाले में आ गया
ये भी रहा है कूचा-ए-जानाँ में अपना रंग
आहट हुई तो चाँद दरीचे में आ गया
होंटों पे ग़ीबतों की ख़राशें लिए हुए
ये कौन आइनों के क़बीले में आ गया
आँधी भी बचपने की हदों से गुज़र गई
मुझ को भी लुत्फ़ शम्अ जलाने में आ गया
कुछ देर तक तो उस से मिरी गुफ़्तुगू रही
फिर ये हुआ कि वो मिरे लहजे में आ गया
घर तो हमारा शो'लों के नर्ग़े में आ गया
लेकिन तमाम शहर उजाले में आ गया
ये भी रहा है कूचा-ए-जानाँ में अपना रंग
आहट हुई तो चाँद दरीचे में आ गया
होंटों पे ग़ीबतों की ख़राशें लिए हुए
ये कौन आइनों के क़बीले में आ गया
आँधी भी बचपने की हदों से गुज़र गई
मुझ को भी लुत्फ़ शम्अ जलाने में आ गया
कुछ देर तक तो उस से मिरी गुफ़्तुगू रही
फिर ये हुआ कि वो मिरे लहजे में आ गया
नरग़े - घेरे / कूचा-ए-जानां - प्रेमिका की गली / दरीचे - खिड़की /
ग़ीबतों - पीठ पीछे की बुराई / खराशें - खरोंचें
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें