सोमवार, 15 मार्च 2021

चला फुलारी फूलों को...(फूलदेई गीत) / रचना : नरेंद्र सिंह नेगी / स्वर : कवीन्द्र सिंह नेगी एवं अन्य

https://youtu.be/xV7cJBIzdJQ

'फूलदेई' प्रकृति को आभार प्रकट करने वाला लोकपर्व है। चैत के महीने की 
संक्रांति (मीन संक्रांति) को, जब ऊंची पहाड़ियों से बर्फ पिघल जाती है, सर्दियों 
के मुश्किल दिन बीत जाते हैं, उत्तराखंड के पहाड़ बुरांश के लाल फूलों की चादर 
ओढ़ने लगते हैं, तब पूरे इलाके की खुशहाली के लिए फूलदेई का त्योहार मनाया 
जाता है। ये त्योहार आमतौर पर किशोरी लड़कियों और छोटे बच्चों का पर्व है। 
सर्दी और गर्मी के बीच का खूबसूरत मौसम, फ्यूंली, बुरांश और बासिंग के पीले, 
लाल, सफेद फूल और बच्चों के खिले हुए चेहरे... 'फूलदेई' से यही तस्वीरें सबसे 
पहले ज़ेहन में आती हैं। उत्तराखंड के पहाड़ों का लोक पर्व है फूलदेई। नए साल 
का, नई ऋतुओं का, नए फूलों के आने का संदेश लाने वाला है ये त्योहार।

फूलदेई के दिन लड़कियां और बच्चे सुबह-सुबह उठकर स्नान करके पास के जंगल
जाकर ताजे-ताजे फूल तोड़कर लाते हैं, जिनमें बुरांश, फ्यूंली, बासिंग, भिटौर और 
कचनार आदि के सुन्दर पुष्प होते हैं। इन्हें बच्चे रिंगाल की छोटी टोकरियों में सजाते
हैं और फिर नए कपड़े धारण कर घर-घर जाते हैं और लोगों के घरों की देहरी पर फूल
बिखेरते हुए यह कहते हैं :
' फूलदेई, फूलदेई, छम्मा देई, छम्मा देई, दैणी द्वार, भर भकार, यो देई सौं,
टोकरी में फूलों-पत्तों के साथ गुड़, चावल और नारियल रखकर बच्चे अपने गांव और 
मुहल्ले की ओर निकल जाते हैं। इन फूलों और चावलों को गांव के घर की देहरी, यानी 
मुख्यद्वार पर डालकर लड़कियां उस घर की खुशहाली की दुआ मांगती हैं।

गीत : फुलारी
रचना : नरेंद्र सिंह नेगी
स्वर : कवीन्द्र सिंह नेगी, अंजलि खरे, अनामिका वशिष्ठ, सुनिधि वशिष्ठ
अतिरिक्त अंतराएँ : डॉ. डी. आर. पुरोहित, प्रेम मोहन डोभाल संगीत : ईशान डोभाल

फुलारी गीत

चला फुलारी फूलों को सौदा-सौदा फूल बिरौला हे जी सार्यूं मा फूलीगे ह्वोलि फ्योंली लयड़ी मैं घौर छोड्यावा हे जी घर बौण बौड़ीगे ह्वोलु बालू बसंत मैं घौर छोड्यावा हे जी सार्यूं मा फूलीगे ह्वोलि चला फुलारी फूलों को सौदा-सौदा फूल बिरौला भौंरों का जूठा फूल ना तोड्यां म्वारर्यूं का जूठा फूल ना लायाँ ना उनु धरम्यालु आगास ना उनि मयालू यखै धरती अजाण औंखा छिन पैंडा मनखी अणमील चौतर्फी छि भै ये निरभै परदेस मा तुम रौणा त रा मैं घौर छोड्यावा हे जी सार्यूं मा फूलीगे ह्वोलि फुल फुलदेई दाल चौंल दे घोघा देवा फ्योंल्या फूल घोघा फूलदेई की डोली सजली गुड़ परसाद दै दूध भत्यूल अयूं होलू फुलार हमारा सैंत्यां आर चोलों मा होला चैती पसरू मांगणा औजी खोला खोलो मा ढक्यां द्वार मोर देखिकी फुलारी खौल्यां होला हिंदी अनुवाद :

चलो 'फुलारियो'! (फूल डालने वाले बच्चे) फूलों के लिए ताज़े ताज़े फूल चुन लें हे जी ! खेतों में खिल गयी होंगी 'फ्योलि' की लड़ियाँ मुझे घर छोड़ आओ हे जी ! घर और वन में लौट आया होगा सुकुमार बसन्त मुझे घर छोड़ आओ चलो 'फुलारियो'! (फूल डालने वाले बच्चे) फूलों के लिए ताज़े ताज़े फूल चुन लें भँवरों के झूठे फूल ना तोड़ना मधु-मक्खियों के झूठे फूल ना लाना ना वैसा निर्मल यहाँ का आकाश, ना स्नेहिल यहाँ की धरती अनजान लोग हैं, विपरीत मनुष्य अनमेल हैं चारों ओर छी ! अभागे परदेस में तुम्हें रहना है, रहो मुझे घर छोड़ आओ फुल फुल देवी! दाल चावल दे घोघा देवता, फ्युली के फूल घोघा फुलदेयी की डोली सजेगी गुड़ का प्रसाद, दही, दूध-भात का नैवेद्य खिले होंगे फूल हमारे उगाये हुवे आड़ू (peach), ख़ुबानी (apricot) पर होंगे चैत (महीने) का शगुन माँग रहे, औजी (drummers) आँगन आँगन में ढके हुवे दरवाजे (मोरी) देख कर 'फुलारि' (फूल डालने वाले बच्चे), ठगे रह गये होंगे

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