https://youtu.be/96VTl_Lx_XY
आरज़ू दारम कि मेहमानत कुनम...(फ़ारसी)
कलाम : हज़रत शम्स तबरेज़ी
गायन : क़व्वाल निज़ामुद्दीन-सैफ़ुद्दीन एवं साथी
काव्य-भावानुवाद : अरुण मिश्र
आरज़ू दारम कि मेहमानत कुनम
जान-ओ-दिल ऐ दोस्त क़ुर्बानत कुनम
आरज़ू है कि तुझे मेहमाँ करूँ
औ ' दिल -ओ -जां दोस्त पर क़ुर्बां करूँ
ग़र यकीं दानम कि बर मन आशिक़ी
अज़ जमाल-ए-ख़्वेश हैरानत कुनम
ग़र यक़ीं हो तुझ को मुझसे इश्क़ है
तो मैं अपने हुस्न से हैराँ करूँ
ग़र तू तर्क़-ए-सर कुनी मर्दानावार
हम चू इस्माईल क़ुर्बानत कुनम
ग़र तू मर्दों की तरह सर वार दे
तो मैं इस्माईल सा क़ुर्बां करूँ
'शम्स तबरेज़ी' ब-मौलाना ब-गो
दफ़्तर-ए-असरार-ए-दीवानत कुनम
'शम्स तबरेज़ी' कहें मौलाना से
दफ़्तर-ए-असरार मैं दीवां करूँ
Shams-i Tabrīzī or Shams al-Din Mohammad
instructor of Mewlānā Jalāl ad-Dīn Muhammad Balkhi, also
known as Rumi and is referenced with great reverence in Rumi's
poetic collection, in particular Diwan-i Shams-i Tabrīzī (The
Works of Shams of Tabriz). Tradition holds that Shams taught
Rumi in seclusion in Konya for a period of forty days, before
fleeing for Damascus. The tomb of Shams-i Tabrīzī was recently
nominated to be a UNESCO World Heritage Site.
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