बुधवार, 3 मार्च 2021

यूं ही बे-सबब न फिरा करो.../ बशीर बद्र की ग़ज़ल / ओस्मान मीर

 https://youtu.be/DPoW67ZGUjs 

Doctor Bashir Badr (born Syed Muhammad Bashir; 15 February 
1935) is an Indian poet and the former lecturer of Aligarh Muslim University.
He primarily writes in Urdu language particularly ghazals. He also wrote 
a couplet titled Dushmani Jam Kar Karo in 1972 during Shimla Agreement 
that revolves around the partition of India. Badr's most of unpublished literary 
work, including uncertain poems was lost during the 1987 Meerut communal 
riots, and later he moved to BhopalMadhya Pradesh.

Osman Mir is an Indian playback singer who has been singing in
Hindi Movies since 2013. His songs have been featured mainly in
Hindi, Urdu, Gujarati, Punjabi and Sindhi.

यूं ही बे-सबब न फिरा करो कोई शाम घर में रहा करो 
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है उसे चुपके चुपके पढ़ा करो 

कोई हाथ भी न मिलाएगा जो गले मिलोगे तपाक से 
ये नए मिज़ाज का शहर है ज़रा फ़ासले से मिला करो 

अभी राह में कई मोड़ हैं कोई आएगा कोई जाएगा 
तुम्हें जिस ने दिल से भुला दिया उसे भूलने की दुआ करो 

मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियां 
जो कहा नहीं वो सुना करो जो सुना नहीं वो कहा करो 

कभी हुस्न-ए-पर्दा-नशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास में 
जो मैं बन संवर के कहीं चलूं मेरे साथ तुम भी चला करो 

नहीं बे-हिजाब वो चांद सा कि नज़र का कोई असर न हो 
उसे इतनी गर्मी-ए-शौक़ से बड़ी देर तक न तका करो 

ये ख़िज़ां की ज़र्द सी शाल में जो उदास पेड़ के पास है 
ये तुम्हारे घर की बहार है उसे आंसुओं से हरा करो 

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