चँहु-दिशि कमल खिले...
-अरुण मिश्र.
नव प्रभात है भारत-भू पर
चँहु-दिशि कमल खिले।।
जन-मानस-सर
शुचि-जल पूरित;
शुभ-संकल्प फले।।
छद्म बौद्धिकताएं,
परास्त हैं;
झूठे दम्भ जले।।
ऊर्जा, श्रम,
मेधा की जय हो;
सुख-सौभाग्य मिले।।
भारत की जय हो;
समृद्धि की
गंगा बह निकले।।
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(मई १९१४ में पूर्वप्रकाशित)
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