शनिवार, 27 मई 2023

सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो.../ शायर : निदा फ़ाज़ली / गायन : चित्रा सिंह

 https://youtu.be/Wd_qbSShl_0  


सफ़र में धूप तो होगी जो चल सको तो चलो 
सभी हैं भीड़ में तुम भी निकल सको तो चलो 

किसी के वास्ते राहें कहां बदलती हैं 
तुम अपने आप को ख़ुद ही बदल सको तो चलो 

यहां किसी को कोई रास्ता नहीं देता 
मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो 

कहीं नहीं कोई सूरज धुआं धुआं है फ़ज़ा 
ख़ुद अपने आप से बाहर निकल सको तो चलो 

यही है ज़िंदगी कुछ ख़्वाब चंद उम्मीदें 
इन्हीं खिलौनों से तुम भी बहल सको तो चलो 

शुक्रवार, 26 मई 2023

युगलाष्टकम् / महाप्रभु वल्लभाचार्य कृत / स्वर : आश्विन त्रिवेदी

 https://youtu.be/DaPnVKhdoio 

कृष्णप्रेममयी राधा राधाप्रेममयो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥ (१)
भावार्थ : श्रीराधारानी, भगवान श्रीकृष्ण में रमण करती हैं 
और भगवान श्रीकृष्ण, श्रीराधारानी में रमण करते हैं, इसलिये 
मेरे जीवन का प्रत्येक-क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो। (१)
कृष्णस्य द्रविणं राधा राधायाः द्रविणं हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥ (२)
भावार्थ : भगवान श्रीकृष्ण की पूर्ण-सम्पदा श्रीराधारानी हैं और 
श्रीराधारानी का पूर्ण-धन श्रीकृष्ण हैं, इसलिये मेरे जीवन का प्रत्येक-
क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो। (२)
कृष्णप्राणमयी राधा राधाप्राणमयो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥ (३)
भावार्थ : भगवान श्रीकृष्ण के प्राण श्रीराधारानी के हृदय में बसते हैं 
और श्रीराधारानी के प्राण भगवान श्री कृष्ण के हृदय में बसते हैं , 
इसलिये मेरे जीवन का प्रत्येक-क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में 
व्यतीत हो। (३)
कृष्णद्रवामयी राधा राधाद्रवामयो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥ (४)
भावार्थ : भगवान श्रीकृष्ण के नाम से श्रीराधारानी प्रसन्न होती हैं और 
श्रीराधारानी के नाम से भगवान श्रीकृष्ण आनन्दित होते है, इसलिये मेरे 
जीवन का प्रत्येक-क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो। (४)
कृष्ण गेहे स्थिता राधा राधा गेहे स्थितो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥ (५)
भावार्थ : श्रीराधारानी भगवान श्रीकृष्ण के शरीर में रहती हैं और 
भगवान श्रीकृष्ण श्रीराधारानी के शरीर में रहते हैं, इसलिये मेरे जीवन 
का प्रत्येक-क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो। (५)
कृष्णचित्तस्थिता राधा राधाचित्स्थितो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥ (६)
भावार्थ : श्रीराधारानी के मन में भगवान श्रीकृष्ण विराजते हैं और 
भगवान श्रीकृष्ण के मन में श्रीराधारानी विराजती हैं, इसलिये मेरे 
जीवन का प्रत्येक-क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो। (६)
नीलाम्बरा धरा राधा पीताम्बरो धरो हरिः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥ (७)
भावार्थ : श्रीराधारानी नीलवर्ण के वस्त्र धारण करती हैं और भगवान 
श्रीकृष्णपीतवर्ण के वस्त्र धारण करते हैं, इसलिये मेरे जीवन का 
प्रत्येक-क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो। (७)
वृन्दावनेश्वरी राधा कृष्णो वृन्दावनेश्वरः।
जीवनेन धने नित्यं राधाकृष्णगतिर्मम ॥ (८)
भावार्थ : श्रीराधारानी वृन्दावन की स्वामिनी हैं और भगवान 
श्रीकृष्ण वृन्दावन के स्वामी हैं, इसलिये मेरे जीवन का प्रत्येक-
क्षण श्रीराधा-कृष्ण के आश्रय में व्यतीत हो। (८)

बुधवार, 24 मई 2023

पाण्डुरंगाष्टकम् / आदि शंकराचार्य कृत / गायन : आर्या अम्बेकर

 https://youtu.be/Bhw1a1e7J_E


श्री शंकराचार्य कृत श्री पांडुरंगाष्टकम् 

महायोगपीठे तटे भीमरथ्या
वरं पुण्डरीकाय दातुं मुनीन्द्रैः ।
समागत्य निष्ठन्तमानंदकंदं
परब्रह्मलिङ्गं भजे पाण्डुरङ्गम् ॥ १॥

श्री पांडुरंगा को नमस्कार) भीमराथी नदी के किनारे महान योग 
(महा योग पीठ) (पंढरपुर में) की सीट पर (पांडुरंगा आया है),
(वह आया है) पुंडरिका को वरदान देने के लिए; (वह आया है) 
महान मुनियों के साथ,पहुँचकर वह महान आनंद (परब्रह्मण) 
के स्रोत की तरह खड़ा है, मैं उस पांडुरंग की पूजा करता हूं, 
जो परब्रह्म की वास्तविक छवि (लिंगम) है॥१॥

तटिद्वाससं नीलमेघावभासं
रमामंदिरं सुंदरं चित्प्रकाशम् ।
वरं त्विष्टकायां समन्यस्तपादं
परब्रह्मलिङ्गं भजे पाण्डुरङ्गम् ॥ २॥

श्री पांडुरंग को नमस्कार) जिनके वस्त्र उनके नीले बादल जैसे 
चमकते रूप के खिलाफ बिजली की धारियों की तरह चमक 
रहे हैं,जिसका रूप देवी रमा (देवी लक्ष्मी) का मंदिर है, सुंदर, 
और चेतना की एक दृश्य अभिव्यक्ति, जो सबसे उत्कृष्ट और 
वरदान देने (भक्तों के लिए) का अवतार है, लेकिन (अभी है) 
एक ईंट रखकर खड़ा है उस पर उनके दोनों पैर, मैं उस 
पांडुरंग की पूजा करता हूं, जो परब्रह्म की वास्तविक छवि 
(लिंगम) है 
॥२॥
प्रमाणं भवाब्धेरिदं मामकानां
नितम्बः कराभ्यां धृतो येन तस्मात् ।
विधातुर्वसत्यै धृतो नाभिकोशः
परब्रह्मलिङ्गं भजे पाण्डुरङ्गम् ॥ ३॥

(श्री पांडुरंग को प्रणाम) सांसारिक अस्तित्व के सागर का माप 
मेरे (भक्तों) के लिए (अधिकतम) यही है,…अपनी कमर को हाथों 
से पकड़कर, ऐसा लगता है कि, जो (कमल) फूल कप को विधाता 
(ब्रह्मा) के निवास के लिए धारण कर रहा है, मैं उस पांडुरंग 
की पूजा करता हूं, जो परब्रह्म की वास्तविक छवि (लिंगम) है॥३॥

स्फुरत्कौस्तुभालङ्कृतं कण्ठदेशे
श्रिया जुष्टकेयूरकं श्रीनिवासम् ।
शिवं शांतमीड्यं वरं लोकपालं
परब्रह्मलिङ्गं भजे पाण्डुरङ्गम् ॥ ४॥

(श्री पांडुरंग को नमस्कार) जिनके गले में चमचमाते कौस्तुभ रत्न 
सुशोभित हैं,(और) जिनकी बाजूबंद श्री को प्रिय हैं (अर्थात श्री के 
वैभव से भरे हुए); जो स्वयं श्री का वास है, जो अपनी शुभ शांति 
(एक ओर) और एक महान रक्षक (दूसरी ओर) के रूप में प्रशंसा 
करता है, मैं उस पांडुरंग की पूजा करता हूं, जो परब्रह्म की वास्तविक 
छवि (लिंगम) है 
॥४॥
शरच्चंद्रबिंबाननं चारुहासं
लसत्कुण्डलाक्रांतगण्डस्थलांतम् ।
जपारागबिंबाधरं कऽजनेत्रं
परब्रह्मलिङ्गं भजे पाण्डुरङ्गम्॥ ५॥

श्री पांडुरंगा को नमस्कार) जिनका चेहरा शरद ऋतु के चंद्रमा 
की महिमा को दर्शाता है और एक मनोरम मुस्कान है 
(इस पर खेलते हुए),(और) जिनके गाल उस पर नाचते हुए 
चमकते हुए झुमके की सुंदरता से भरे हुए हैं, जिनके होंठों में 
हिबिस्कस का रंग है और बिंबा फल की उपस्थिति है; (और) 
जिनकी आंखें कमल के समान सुंदर हैं, मैं उस पांडुरंग की पूजा 
करता हूं, जो परब्रह्म की वास्तविक छवि (लिंगम) है 
॥५॥
किरीटोज्वलत्सर्वदिक्प्रांतभागं
सुरैरर्चितं दिव्यरत्नैरनर्घैः ।
त्रिभङ्गाकृतिं बर्हमाल्यावतंसं
परब्रह्मलिङ्गं भजे पाण्डुरङ्गम्॥ ६॥

(श्री पांडुरंग को प्रणाम) जिसके मुकुट की चमक सभी दिशाओं 
को प्रकाशित करती है, जिसकी पूजा सुरों (देवों) द्वारा सबसे 
कीमती दिव्य रत्नों से की जाती है,जो मोर पंख और मालाओं से 
सुशोभित त्रिभंग मुद्रा (तीन स्थानों पर मुड़ी हुई) में खड़ा है, मैं 
उस पांडुरंग की पूजा करता हूं, जो परब्रह्म की वास्तविक छवि 
(लिंगम) है।

विभुं वेणुनादं चरंतं दुरंतं
स्वयं लीलया गोपवेषं दधानम् ।
गवां बृन्दकानन्ददं चारुहासं
परब्रह्मलिङ्गं भजे पाण्डुरङ्गम् ॥ ७॥

(श्री पांडुरंग को नमस्कार) जिन्होंने प्रकट किया है (अपनी मर्जी 
से एक रूप लेते हुए) लेकिन सार रूप में जो हर जगह व्याप्त 
है; इसी प्रकार जिसकी बाँसुरी (स्वयं प्रकट होती है) की मधुर 
ध्वनि सर्वत्र व्याप्त है,जिसने अपनी लीला (दिव्य खेल) से एक 
गोप (गाय का लड़का) की पोशाक पहन ली, और गायों के झुंड 
(और वृंदावन में चरवाहे लड़कों को अपनी बांसुरी की मधुर ध्वनि 
के साथ) और अपनी सुंदर मुस्कान के लिए बहुत खुशी दी, मैं 
उस पांडुरंग की पूजा करता हूं, जो परब्रह्म की वास्तविक छवि 
(लिंगम) है 
॥७॥
अजं रुक्मिणीप्राणसञ्जीवनं तं
परं धाम कैवल्यमेकं तुरीयम् ।
प्रसन्नं प्रपन्नार्तिहं देवदेवं
परब्रह्मलिङ्गं भजे पाण्डुरङ्गम् ॥ ८॥

(श्री पांडुरंग को नमस्कार) जो बिना जन्म के है और जो देवी 
रुक्मिणी (अपने प्रेम से) के जीवन को जीवंत करती है, जो 
तुरीय की (चौथी) अवस्था में कैवल्य का सर्वोच्च निवास है, 
जो अपने भक्तों पर कृपा करती है, और दूर करती है 
उसकी शरण चाहने वालों का संकट; जो देवताओं के देवता 
(देवताओं के देवता) हैं। मैं उस पांडुरंग की पूजा करता हूं, जो 
परब्रह्म की वास्तविक छवि (लिंगम) है 
॥८॥
स्तवं पाण्डुरंगस्य वै पुण्यदं ये
पठन्त्येकचित्तेन भक्त्या च नित्यम् ।
भवांभोनिधिं ते वितीर्त्वान्तकाले
हरेरालयं शाश्वतं प्राप्नुवन्ति ॥

(श्री पांडुरंग को नमस्कार) श्री पांडुरंग का यह स्तव (स्तुति) जो 
पुण्य (शुभता, योग्यता) प्रदान करता है, जो एक-एक भक्ति के 
साथ प्रतिदिन पाठ करते हैं, वे वास्तव में अंत में संसार के सागर 
को पार करेंगे और शाश्वत निवास को प्राप्त करेंगे।
॥ इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यस्य
श्रीगोविन्दभगवत्पूज्यपादशिष्यस्य
श्रीमच्छङ्करभगवतः कृतौ
पाण्डुरङ्गाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

सोमवार, 22 मई 2023

शिवम् शंकरम शम्भुमीशान मीड़े.../ अष्टकं / शिव स्तुति / गायन : राहुल वेल्लाल

https://youtu.be/OFGFxUoz8Mw  

शिवम् शंकरम शम्भुमीशान मीड़े...  

॥ अथ श्री शिवाष्टकम् ॥

प्रभुं प्राणनाथं विभुं विश्वनाथं जगन्नाथनाथं सदानन्दभाजम् ।
भवद्भव्यभूतेश्वरं भूतनाथं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ १॥ 

मैं शिव, शंकर, शंभु, से प्रार्थना करता हूँ जो हमारे जीवन के भगवान 
हैं, विभु हैं, दुनिया के भगवान हैं, विष्णु (जगन्नाथ) के, भगवान हैं, जो 
हमेशा सुख में निवास करते हैं और जो हर चीज को प्रकाश देते हैं। 
जोजीवों के, भूतों के और सभी के स्वामी हैं ।।१।।

गले रुण्डमालं तनौ सर्पजालं महाकालकालं गणेशाधिपालम् ।
जटाजूटगङ्गोत्तरङ्गैर्विशालं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ २॥

मैं आपसे प्रार्थना करता हूं, शिव, शंकर, शंभु, जिसके गले में खोपड़ी 
की माला है, जिसके शरीर के चारों ओर सर्पों का जाल है, जो अपार 
विनाशक काल के संहारक हैं जो गणेश के स्वामी हैं, उनके सिर पर 
गंगा की लहरों के गिरने से उलझे हुए बाल फैले हुए हैं, और जो सभी 
के भगवान हैं ।।२।।

मुदामाकरं मण्डनं मण्डयन्तं महामण्डलं भस्मभूषाधरं तम् ।
अनादिह्यपारं महामोहहारं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ३॥

मैं आपसे प्रार्थना करता हूं, शिव, शंकर, शंभु, जो संसार में, खुशियों 
को बिखेरते हैं, जो ब्रह्मांड को अलंकृत कर रहे हैं, स्वयं विशाल 
ब्रह्मांड हैं, जो भस्म को अपने शरीर पर धारण करते हैं, जिनका कोई 
प्रारम्भ नहीं, जिनका कोई माप नहीं, जो सबसे बड़ी आसक्तियों को 
दूर करते हैं और जो सभी के भगवान हैं ।।३।।

वटाधोनिवासं महाट्टाट्टहासं महापापनाशं सदासुप्रकाशम् ।
गिरीशं गणेशं महेशं सुरेशं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ४॥

मैं आपसे प्रार्थना करता हूं, शिव, शंकर, शंभु, जो एक वट (बरगद) वृक्ष 
के नीचे रहते हैं, जिनके मुख मंडल पर प्रसन्नता है, जो सबसे बड़े पापों 
का नाश करते हैं, जिनके मुख पर तेज है, जो हिमालय के भगवान हैं, 
विभिन्न गण और अर्ध- देवताओं के भगवान हैं, जो सभी के भगवान हैं।।४।।

गिरिन्द्रात्मजासंग्रहीतार्धदेहं गिरौ संस्थितं सर्वदा सन्नगेहम् ।
परब्रह्मब्रह्मादिभिर्वन्ध्यमानं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ५॥

हिमालय की बेटी के साथ अपने शरीर का आधा हिस्सा साझा करने 
वाले शिव, शंकर, शंभू से मैं प्रार्थना करता हूं, जो एक पर्वत (कैलास) 
में स्थित है, जो हमेशा उदास लोगों के लिए एक सहारा है, जो 
अतिमानव है, जो पूजनीय है (या जो श्रद्धा के योग्य हैं) जो ब्रह्मा और 
अन्य सभी के प्रभु हैं ।।५।।

कपालं त्रिशूलं कराभ्यां दधानं पदाम्भोजनम्राय कामं ददानम् ।
बलीवर्दयानं सुराणां प्रधानं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ६॥

मैं आपसे शिव, शंकरा, शंभु, जो हाथों में एक कपाल और त्रिशूल 
धारण करते हैं , प्रार्थना करता हूं, जो अपने कमल-पैर के लिए 
विनम्र हैं, जो वाहन के रूप में एक बैल का उपयोग करते  है, जो 
सर्वोच्च और ऊपर है। विभिन्न देवी-देवता, और सभी के भगवान हैं।।६।।

शरच्चन्द्रगात्रं गुणानन्द पात्रं त्रिनेत्रं पवित्रं धनेशस्य मित्रम् ।
अपर्णाकलत्रं चरित्रं विचित्रं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ७॥

मैं आपसे प्रार्थना करता हूं, शिव, शंकर, शंभू, जिनका चेहरा शीत 
चंद्रमा जैसा है, जो गण के सुख का विषय है, जिसके तीन नेत्र हैं, 
जो शुद्ध है, जो कुबेर के मित्र हैं। जिनकी पत्नी अपर्णा (पार्वती) है, 
जिनकी शाश्वत विशेषताएं हैं, और जो सभी के स्वामी हैं ।।७।।

हरं सर्पहारं चिता भूविहारं भवं वेदसारं सदा निर्विकारम् ।
श्मशाने वसन्तं मनोजं दहन्तं शिवं शङ्करं शम्भुमीशानमीडे ॥ ८॥

मैं आपसे प्रार्थना करता हूं, शिव, शंकर, शंभु, जो “हर” के रूप में 
जाने जाते हैं, जिनके पास सर्पों की माला है, जो श्मशान घाटों में 
घूमते हैं, जो ब्रह्मांड हैं, जो वेद का सारांश हैं (या वेद द्वारा चर्चा की 
गई ) जो सदा वैराग्य हैं, जो श्मशान घाटों में निवास करते है, जो 
मन में उत्पन्न कामनाओं को प्रज्वलित करते हैं, और जो सभी के 
स्वामी हैं ।।८।।

स्तवं यः प्रभाते नरः शूलपाणे पठेत् सर्वदा भर्गभावानुरक्तः ।
स पुत्रं धनं धान्यमित्रं कलत्रं विचित्रं समासाद्य मोक्षं प्रयाति ॥ ९॥

जो लोग हर सुबह त्रिशूल धारण किए शिव की भक्ति के साथ इस 
प्रार्थना का जप करते हैं, एक कर्तव्यपरायण पुत्र, धन, मित्र, 
जीवनसाथी और एक फलदायी जीवन पूरा करने के बाद मोक्ष को 
प्राप्त करते हैं । शिव शंभो गौरी शंकर आप सभी को उनके प्रेम का 
आशीर्वाद दें और उनकी देखरेख में आपकी रक्षा करें ।।९।।

॥ इति शिवाष्टकं सम्पूर्णम् ॥

रविवार, 21 मई 2023

मन भूल मत जइयो राधा रानी के चरण.../ गायन : शिवम् चौरसिया एवं यशी परिहार

 https://youtu.be/oemPY2x_UAA  

मन भूल मत जइयो, राधा रानी के चरण, राधा रानी के चरण, महारानी के चरण, मन भूल मत जइयो,
राधा रानी के चरण।। राधा राधा रटत ही, सब व्याधा मिट जाए, कोटि जनम की आपदा, कोटि जनम की आपदा, नाम लेत मिट जाए, मन भूल मत जइयो,
राधा रानी के चरण।। राधे तू बड़ भागिनी, कौन तपस्या किन, तीन लोक के है जो स्वामी, तीन लोक के है जो स्वामी, वो तेरे आधीन, मन भूल मत जइयो,
राधा रानी के चरण।। वृन्दावन के वृक्ष का, मरम ना जाने कोई, डार डार और पात पात पे, डार डार और पात पात पे, राधे राधे होए, मन भूल मत जइयो,
राधा रानी के चरण।।

शनिवार, 20 मई 2023

हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-निहाँ तक आ गए.../ शायर : क़ाबिल अजमेरी (१९३१ -१९६२, हैदराबाद, पाकिस्तान) / गायन : गुलाम अली

 https://youtu.be/ax_6pHBurI4  

हैरतों के सिलसिले सोज़-ए-निहां तक आ गये  
हम तो दिल तक चाहते थे तुम तो जाँ तक आ गये
ज़ुल्फ़ में ख़ुश्बू न थी या रंग आरिज़ में न था    
आप किस की जुस्तजू में गुलसिताँ तक आ गये
ख़ुद तुम्हें चाक-ए-गरेबाँ का शऊर आ जायेगातुम वहाँ तक आ तो जाओ हम जहाँ तक आ गये
उनकी पलकों पे सितारे अपने होंठों पे हँसीक़िस्सा-ए-ग़म कहते कहते हम यहाँ तक आ गये

सोज़-ए-निहां अन्दर की आग
आरिज़ गाल, कपोल
ज़ुस्तज़ू - तलाश 
गुलसितां - बाग़ीचा, उद्यान 
चाक-ए-गरेबाँ - फटेहाली, उन्माद में वस्त्र फाड़ना 
शऊर - ढंग 

शुक्रवार, 19 मई 2023

श्री नन्दकुमाराष्टकम् / सुन्दरगोपालम् उरवनमालं.../ श्री वल्लभाचार्य विरचित

 https://youtu.be/LajW3EOVRRg

श्री नन्दकुमाराष्टकम् भगवान श्री कृष्ण जी को समर्पित हैं !
श्री नन्दकुमाराष्टकम् का पाठ विशेष रूप से श्री कृष्ण जन्माष्टमी या
भगवान श्री कृष्ण जी से संबंधित अन्य कई त्योहारों पर किया जाता है ।
सुख शांति और खुशहाली के लिए अपने घर मे श्री नंदकुमार अष्टकम्
का पाठ करे या सुनते रहे और श्री नन्दकुमाराष्टकम् का नियमित रूप
से पाठ करने से भगवान श्री कृष्ण जी को आसानी से प्रसन्न किया जा
सकता है । श्री नन्दकुमाराष्टकम् के रचियत्ता श्री वल्लभाचार्य जी हैं।

सुन्दरगोपालम् उरवनमालं नयनविशालं दुःखहरम् । वृन्दावनचन्द्रमानन्दकन्दं परमानन्दं धरणिधरम् ॥ वल्लभघनश्यामं पूर्णकामम् अत्यभिरामं प्रीतिकरम् । भज नन्दकुमारं सर्वसुखसरं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥१

सुन्दरगोपाल अर्थात गौओ के पालन करने वाले ,गले मे वनमाला धारण करने वाले,
विशाल नेत्र वाले,दुख का हरण करने वाले, वृन्दावन के चन्द्र स्वरूप, आनन्द समूह
रूप, उत्कृष्ट आनंद वाले, धरा को धारण करने वाले, मेघ के समान श्याम काँति वाले,
पूरणमनोरथ वाले,अत्यन्त आह्लादक प्रीतिकारक सभी सुखो के सारूप तत्व द्वारा
विचारित, परब्रह्मानंद कुमार श्रीकृष्णचन्द्र की भक्ति करो ॥१

सुन्दरवारिजवदनं निर्जितमदनम् आनन्दसदनं मुकुटधरम् । गुञ्जाकृतिहारं विपिनविहारं परमोदारं चीरहरम् ॥ वल्लभपटपीतं कृतउपवीतं करनवनीतं विबुधवरं । भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥२॥

सुन्दर कमल के समान जिन का श्रीमुख है,कामको विजय करने वाले,आनंद के
यथास्वरूप,मुकुट धारण करने वाले, गुँजा की माला को धारण करने वाले वृन्दावन
बिहारी, परम उदार,पीताम्बर प्रिय, उपवीताधारी,श्री हस्त मे नवनीत धारण करने
वाले,देवो मे उतम ,सर्व सुखो के सास्वरूप ,तत्वद्वारा विचारित परब्रह्म नंदकुमार
श्रीकृष्ण चन्द्र की भक्ति करो ॥२॥

शोभितमुखमूलं यमुनाकूलं निपट_अतूलं सुखदतरम् । मुखमण्डितरेणुं चारितधेनुं वादितवेणुं मधुरसुरम् ॥ वल्लभमतिविमलं शुभपदकमलं नखरुचिअमलं तिमिरहरं । भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥३॥

सुशोभित सुखों के मूलरूप,यमुना तट स्थित, अनुपमेय स्वभाव वाले,सुखदाताओ मे
श्रेष्ठ, जिनके मुखारविन्द गोधूलि से चेष्टित है,गायों को चराने वाले नखों की निर्मल
कांति वाले,अँधकार को भगाने वाले, सर्व सुखो के सार रूप, तत्व द्वारा विचारित,
परब्रह्म नंदकुमार श्रीकृष्णचन्द्र की भक्ति करो ॥३॥

शिरमुकुटसुदेशं कुञ्चितकेशं नटवरवेशं कामवरम् । मायाकृतमनुजं हलधर_अनुजं प्रतिहतदनुजं भारहरम् ॥ वल्लभव्रजपालं सुभगसुचालं हितमनुकालं भाववरं । भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥४॥

सिर पर जिन के मुकुट सुशोभित है, कुचिंत केश वाले, नटवर वेषधारी, कोटि कँदर्प-
लावण्य, निजमाया शक्ति द्वारा मनुजाकृति दर्शन वाले, श्री बलदेवजी के अनुज,दानवों
के संहारक, पृथ्वी के भार को उतारने वाले, नन्दरायजी जिन्हें प्रिय हैं, सुभगसुन्दर
गतिवाले प्रतिक्षण हितकर्ता, भाविको मे श्रेष्ठ सर्वसुखो के साररूप तत्वद्वारा विचारित
परब्रह्म नन्दकुमार श्रीकृष्णचन्द्र की भक्ति करो  ॥४॥

इन्दीवरभासं प्रकटसुरासं कुसुमविकासं वंशिधरम् । हृतमन्मथमानं रूपनिधानं कृतकलगानं चित्तहरम् ॥ वल्लभमृदुहासं कुञ्जनिवासं विविधविलासं केलिकरं । भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥५॥

कमल सदृश द्युतिवाले, प्रकट सुन्दर रासक्रीड़ा करने वाले, जिन के दर्शन कर पुष्प
प्रफुल्लित होते है, वंशीधर, महादेव के मान को नाश करने वाले, रूपनिधान, कलि में
जिन का नाम सँकीर्तन किया जाता है, चित का हरण करने वाले, प्रिय कोमल हास्ययुक्त,
कुंज में निवास करने वाले, विविध विलासकर्ता, क्रीड़ाकारी, सर्वसुखो के साररूप तत्व
द्वारा विचारित पर ब्रह्म नन्दकुमार श्रीकृष्णचन्द्र की भक्ति करो ॥५॥

अतिपरप्रवीणं पालितदीनं भक्ताधीनं कर्मकरम् । मोहनमतिधीरं फणिबलवीरं हतपरवीरं तरलतरम् ॥ वल्लभव्रजरमणं वारिजवदनं हलधरशमनं शैलधरं । भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥६॥

अति परम प्रवीण, दीनता वाले जीवो के पालनकर्त्ता मायाधीन, गोवर्धन पूजारूपी यज्ञकर्ता,
भक्तों को मोह कराने वाले, अतिधीर, बलवान कलि के निवारण करने वाले, शत्रुवीरो के
सँहारकर्ता, अतिचपल, व्रजरमण जिन्हें प्रिय है, कमल से मुख वाले, मेघ को शाँत करने वाले,
गिरिराज को धारण करने वाले, सब सुख के साररूप तत्व द्वारा विचारित परब्रह्म नन्दकुमार
श्रीकृष्णचन्द्र की भक्ति करो ॥६॥

जलधरद्युतिअङ्गं ललितत्रिभङ्गं बहुकृतरङ्गं रसिकवरम् । गोकुलपरिवारं मदनाकारं कुञ्जविहारं गूढतरम् ॥ वल्लभव्रजचन्द्रं सुभगसुछन्दं कृतआनन्दं भ्रान्तिहरं । भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥७॥

मेघ की कांति के समान शरीर धारण करने वाले, ललित त्रिभंगी, विविध स्वरूप रँग
से विदित होने वाले, रसिक शिरोमणि, गोसमूह जिनका परिवार है, कामदेव के समान
आकार वाले, कुँजबिहारी, गूढ़ मनुष्याकृति, प्रिय व्रज चन्द्र, सुन्दर भाग्य एव दिव्य लीलामय,
परमानंद स्वरूप,भ्रांति हरण करने वाले, सर्वसुख के साररूप तत्व द्वारा विचारित परब्रह्म
नंद कुमार, श्रीकृष्णचन्द्र की भक्ति करो ॥७॥

वन्दितयुगचरणं पावनकरणं जगदुद्धरणं विमलधरम् । कालियशिरगमनं कृतफणिनमनं घातितयमनं मृदुलतरम् ॥ वल्लभदुःखहरणं निर्मलचरणम् अशरणशरणं मुक्तिकरं । भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥८॥

जिनके चरण सुशोभित हैं, जिनके पैरों का जोड़ा सब कुछ पवित्र करता है और
दुनिया का उत्थान करता है। जब आपका चरण सर्प के सिर के ऊपर से घूमा तो
भयंकर कालिया ने अपना सिर झुकाया और नृत्य किया। आपने अपने कोमल और
कोमल शरीर के साथ घातक बंधन को नष्ट कर दिया। जो भक्तों का प्रिय है और
उनके दुखों को हर लेता है और उनके पवित्र चरण उन लोगों को शरण देते हैं जो
अंततः उन्हें मुक्ति देते हैं; पूजा शरण है, सर्वसुख के साररूप तत्व द्वारा विचारित
परब्रह्म नंद कुमार श्रीकृष्णचन्द्र की भक्ति करो ॥८॥

गुरुवार, 18 मई 2023

नन्दकुमाराष्टकम् - सुन्दरगोपालम् उरवनमालं नयनविशालं दुःखहरम्.../ श्रीमहाप्रभु वल्लभाचार्य विरचित / मंदिर संगीत, पण्डित अजय पोहनकर द्वारा

 https://youtu.be/CTK1d9djUNU 

सुन्दरगोपालम् उरवनमालं नयनविशालं दुःखहरम् ।
वृन्दावनचन्द्रमानन्दकन्दं परमानन्दं धरणिधरम् ॥
वल्लभघनश्यामं पूर्णकामम् अत्यभिरामं प्रीतिकरम् ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥१॥

ॐ नमो भगवते वासुदेव 
श्री कृष्ण गोविन्द हरे मुरारे हे नाथ नारायण वासुदेव

शेष नन्दकुमाराष्टकम् 

सुन्दरवारिजवदनं निर्जितमदनम् आनन्दसदनं मुकुटधरम् ।
गुञ्जाकृतिहारं विपिनविहारं परमोदारं चीरहरम् ॥
वल्लभपटपीतं कृतउपवीतं करनवनीतं विबुधवरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥२॥

शोभितमुखधूलं यमुनाकूलं निपट_अतूलं सुखदतरम् ।
मुखमण्डितरेणुं चारितधेनुं वादितवेणुं मधुरसुरम् ॥
वल्लभमतिविमलं शुभपदकमलं नखरुचिअमलं तिमिरहरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥३॥

शिरमुकुटसुदेशं कुञ्चितकेशं नटवरवेशं कामवरम् ।
मायाकृतमनुजं हलधर_अनुजं प्रतिहतदनुजं भारहरम् ॥
वल्लभव्रजपालं सुभगसुचालं हितमनुकालं भाववरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥४॥

इन्दीवरभासं प्रकटसुरासं कुसुमविकासं वंशिधरम् ।
हृतमन्मथमानं रूपनिधानं कृतकलगानं चित्तहरम् ॥
वल्लभमृदुहासं कुञ्जनिवासं विविधविलासं केलिकरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥५॥

अतिपरप्रवीणं पालितदीनं भक्ताधीनं कर्मकरम् ।
मोहनमतिधीरं फणिबलवीरं हतपरवीरं तरलतरम् ॥
वल्लभव्रजरमणं वारिजवदनं हलधरशमनं शैलधरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥६॥

जलधरद्युतिअङ्गं ललितत्रिभङ्गं बहुकृतरङ्गं रसिकवरम् ।
गोकुलपरिवारं मदनाकारं कुञ्जविहारं गूढतरम् ॥
वल्लभव्रजचन्द्रं सुभगसुछन्दं कृतआनन्दं भ्रान्तिहरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥७॥

वन्दितयुगचरणं पावनकरणं जगदुद्धरणं विमलधरम् ।
कालियशिरगमनं कृतफणिनमनं घातितयमनं मृदुलतरम् ॥
वल्लभदुःखहरणं निर्मलचरणम् अशरणशरणं मुक्तिकरं ।
भज नन्दकुमारं सर्वसुखसारं तत्त्वविचारं ब्रह्मपरम् ॥८॥

।। इति श्रीमहाप्रभु वल्लभाचार्य विरचितं श्रीनन्दकुमाराष्टकं सम्पूर्णं।।

बुधवार, 17 मई 2023

लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में.../ बहादुर शाह 'ज़फर' / गायक : मोहम्मद रफ़ी

 https://youtu.be/ha3V_87LvR0 

लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में...
शायर : बहादुर शाह 'ज़फर'
गायक : मोहम्मद रफ़ी
संगीत : एस. एन. त्रिपाठी
फिल्म ; लाल क़िला (१९६०)

लगता नहीं है दिल मेरा उजड़े दयार में 
किसकी बनी है आलम-ए-नापायेदार में 

कह दो इन हसरतों से कहीं और जा बसें 
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़दार में 

उम्र-ए-दराज़ माँग के लाये थे चार दिन
दो आरज़ू में काट गए दो इन्तज़ार में
कितना है बद-नसीब 'ज़फर' दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में

मंगलवार, 16 मई 2023

डुग्गू-सम्यक / हैप्पी बर्थ-डे टु सम्यक ! / कविता / अरुण मिश्र




















डुग्गू-सम्यक

जन्म दिवस है डुग्गू जी का 
हुए साल भर के ये आज। 
चहल-पहल है, शोर-शराबा, 
सजे-धजे डुग्गू महराज।। 

एक साल तक कूदे-मचले 
तब जाकर इनके पर निकले 
कहते बात-बात पर अग्गुं 
इसीलिए कहलाते डुग्गू।।

अब, धीरे-धीरे बड़े हो रहे। 
कभी-कभी हैं खड़े हो रहे। 
इनको नयी उड़ान मिली है। 
एक नयी पहचान मिली है।। 

डुग्गू की हर बात है सम्यक।
डुग्गू के दिन-रात हैं सम्यक।  
खिल-खिल सम्यक, गिल-गिल सम्यक 
दाँत दूध का, झिल-मिल सम्यक।।

सम्यक हँसना, सम्यक रोना। 
सम्यक काजल और डिठौना। 
सम्यक इनकी हर शैतानी ;
सब पर करते जादू-टोना।।

बिना बात के हँस देते हैं 
बिना बात के रो लेते हैं  
पुचकारो, चुप हो जाते हैं 
दुद्धू पी कर सो जाते हैं।। 

यही हैं डुग्गू , यही हैं सम्यक।
जो हैं डुग्गू , वही हैं सम्यक ।।
नया नाम है, नयी शान है ।  
गंगाधर ही, शक्तिमान है ।। 

सम्यक डुग्गू , डुग्गू सम्यक। 
डुग्गू-डुग्गू , सम्यक सम्यक। 
सब मिल बोलो, सम्यक-सम्यक। 
सम्यक-सम्यक, सम्यक-सम्यक।।

हैप्पी बर्थडे टु सम्यक ! 

(टिप्पणी : मेरी बेटी के छोटे बेटे आज साल भर के पूरे हुए। 
अभी तक इन्हें प्यार से डुग्गू कहा जाता है। आज से इन्हें 
नया नाम , 'सम्यक' मिला है। इस अवसर पर भेंट स्वरुप 
यह कविता , मेरी तरफ से प्यार व आशीर्वाद के साथ। 
-अरुण मिश्र )

तेरे दर से कोई कहाॅं जाए.../ फिल्म : मी वसंतराव / गीतकार : वैभव जोशी / गायन : हिमानी कपूर एवं राहुल देशपाण्डे

 https://youtu.be/7ibfvY4s-LY  

तेरे दर से कोई कहाॅं जाए...
फिल्म : मी वसंतराव
गीतकार : वैभव जोशी
संगीत : राहुल देशपाण्डे
गायन : हिमानी कपूर एवं राहुल देशपाण्डे

तेरे दर से कोई कहाॅं जाए तू ही तू है नजर जहाॅं जाए दश्त ही दश्त हो निगाहों में फिर कहीं भी ये कारवाॅं जाए तेरे कूचे से बेजुबाॅं निकले अब जहाॅं से भी बेनिशाॅं जाए

ऐसे निकली है दिलसे आह नयी जैसे महफिल से उठ के जाॅं जाए चंद यादें बटोर लेने दो फिर मकीं जाए या मकां जाए हमसफर हो न हो कोई लेकिन साथ अपने ये कहकशाॅं जाए